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श्रीलंका में गोटाभाया के राष्ट्रपति चुने जाने से मुसलमान क्यों चिंतित हैं?



गोटाभाया के पोस्टरइमेज कॉपीरइटEPA
Image captionश्रीलंका में दशकों लंबा गृह युद्ध जब ख़त्म हुआ तब गोटाभाया राजपक्षे देश के रक्षा मंत्री थे

श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में जैसे ही गोटाभाया राजपक्षे के जीतने की
 ख़बर आई, उनके समर्थक और पार्टी कार्यकर्ता पार्टी मुख्यालय पर इकट्ठा
 हो गए. लोगों के भाव सतर्कता से भरे थे लेकिन अधिकतर इस बात को
 लेकर संतुष्ट थे कि राजपक्षे परिवार फिर से सत्ता में आ गया है.
यह एक परिवार का मामला रहा है. गोटाभाया के भाई और पूर्व राष्ट्रपति
 महिंदा राजपक्षे 10 सालों तक यहां रहे और ऐसा अनुमान है कि वह अगले
 प्रधानमंत्री बन सकते हैं. दोनों भाई पोस्टर्स और बैनर्स में एक साथ नज़र
 आते हैं.
राजपक्षे के लिए अभियान चलाने वाले वकीलों के एक समूह में शामिल
सगाला अभयाविक्रमे कहती हैं, "ये हमारी जीत का दिन है. मैंने इसके लिए
 चार साल से अधिक समय तक काम किया है."
वो साफ़तौर पर कहती हैं कि गोटाभाया ही ऐसे व्यक्ति हैं जो चीज़ें ठीक कर
सकते हैं.
"हमने उन्हें रक्षा मंत्री के तौर पर देखा है, उन्होंने 30 साल तक चलने वाले
 युद्ध को ख़त्म किया."

राजपक्षे की एक दूसरी समर्थक जनाका अरुणाशंथा कहती हैं, "मुझे लगता
 है कि यह श्रीलंका के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ है."
"अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा पर मेरा मानना है कि अगले पांच सालों
 में देश हर मामले में बेहतर होगा. हमारी उनसे बहुत सारी उम्मीदें हैं."

गोटाभाया राजपक्षेइमेज कॉपीरइटAFP
Image captionगोटाभाया राजपक्षे के समर्थकों का कहना है कि ये उनके लिए 'विजयी' परिणाम हैं

अल्पसंख्यक समुदाय में बेचैनी

सात महीने पहले इस्लामी चरमपंथियों द्वारा किए गए सिलसिलेवा
र बम धमाकों से श्रीलंका अभी भी दहला हुआ है. इन हमलों ने उसकी
 अर्थव्यवस्था को ही नहीं बल्कि इस द्वीप के नाज़ुक सांप्रदायिक
 संबंधों के भी तहस-नहस कर दिया था. इस घटना ने सरकार में
 जनता के विश्वास में अंतिम कील का काम किया.
हालांकि, गोटाभाया राजपक्षे के जीतने की ख़बर इस देश के अल्पसंख्यक समुदाय के लिए बेचैनी भरी रही होगी जिन्होंने उनके प्रतिद्वंद्वी सजीता प्रेमदासा को वोट दिया था.
श्रीलंका का मुस्लिम समुदाय सजीता प्रेमदासा को अधिक उदार मानते हैं. श्रीलंका का उत्तरी इलाक़ा जो तमिल बहुसंख्यक है, वहां प्रेमदासा को वोट मिले हैं. विभिन्न समुदायों को एकजुट रखना और युद्ध के बाद मेल-मिलाप की कोशिश करना एक कठिन काम होगा.
बीते सात महीनों में कई मुसलमानों का कहना है कि कट्टरपंथी बौद्ध समुदायों ने हाल के सालों में उनके ख़िलाफ़ अभियान चलाया है जो अब खुलकर दिखाई दे रहा है.
मुसलमानों का कहना है कि उनकी दुकानों और व्यवसायों का बहिष्कार किया जा रहा है और सड़कों पर खुलेआम उन्हें अपमानित किया जाता है, उनके बच्चों को स्कूलों में ख़ास नामों से बुलाया जाता है.

इमेज कॉपीरइटमतदाताGETTY IMAGES
Image captionअधिकतर श्रीलंका के मुसलमानों का मानना है कि राजपक्षे की जीत ने उन्हें 'डरा' दिया है

मुस्लिम विरोधी चरमपंथियों को बचाने का आरोप

बहुत से लोग सरेआम बोलने से घबराते हैं लेकिन वो विश्वास से कहते हैं
कि वो राजपक्षे की जीत से डरे हैं. राजपक्षे बहुसंख्यक बौद्ध समुदायों के
 हितों को बढ़ावा देते नज़र आए हैं. साथ ही उनके आलोचक उन पर
 मुस्लिम विरोधी चरमपंथियों को बचाने का आरोप लगाते हैं.
एक मुस्लिम महिला ने अपनी चिंता ज़ाहिर की. मुसलमानों की
 इस बेचैनी को मैंने चुनाव के दौरान लगातार महसूस किया है.
वो महिला कहती हैं, "गोटाभाया राजपक्षे अगर जीतते हैं तो मैं हिंसा

 और नस्लवाद देखूंगी. कई नस्लवादी समूह इस पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं."
रविवार को जब चुनावी नतीजे आए तो राजधानी कोलंबो की सड़कें
सुनसान और शांत थीं. अधिकारियों ने प्रदर्शनों और लोगों के इकट्ठा
 होने पर प्रतिबंध लगाया हुआ था. नेता शांति की अपील कर रहे थे.
साथ ही राजपक्षे भी एकता बनाए रखने का वादा कर चुके हैं. यह
 प्रतिक्रिया उस डर के बाद आई है जो अल्पसंख्यक समुदायों ने बताया
 है. उनका कहना है कि नागरिक स्वतंत्रता की कीमत पर सुरक्षा को
 लेकर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
भले ही राजनीतिक इरादा वास्तविक हो लेकिन चुनावी परिणामों ने
 दिखाया है कि यह देश कितना ध्रुवीकृत है. इसलिए एकता हासिल करना कठिन दिखता है.

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