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एक महान योद्धा, नायक, विद्वान और समाजसेवी थे बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर -- प्रेमचंद जायसी


जांजगीर - छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी के प्रदेश उपाध्यक्ष एव जिला बलौदाबाजार भाटापारा के जिला प्रभारी माननीय डॉ० प्रेमचंद्र जायसी  ने बाबा साहेब आंबेडकर जी को श्रंद्धाजलि अर्पित करते हुए कहा की हमारे बाबा साहब अद्वितीय प्रतिभा अनुकरणीय है। वे एक मनीषी, योद्धा, नायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी थे। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में उत्सर्ग कर दिया। खासकर भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. आंबेडकर का जीवन संकल्प था।

डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू में सूबेदार रामजी शकपाल एवं भीमाबाई की संतान के रूप में हुआ था। उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता, प्रचंड संग्रामी स्वभाव का मणिकांचन मेल था।

संयोगवश भीमराव सातारा गांव एक शिक्षक को बेहद पसंद आए। वे अत्याचार और लांछन की तेज धूप में टुकड़ा भर बादल की तरह भीम के लिए मां के आंचल की छांव बन गए।
बाबा साहब ने कहा- वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा। समाजवाद के बिना दलित-मेहनती इंसानों की आर्थिक मुक्ति संभव नहीं।
डॉ. आंबेडकर की रणभेरी गूंज उठी, 'समाज को श्रेणीविहीन और वर्णविहीन करना होगा क्योंकि श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया। जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं है वे दलित समझे जाते थे।'

बाबा साहेब ने संघर्ष का बिगुल बजाकर आह्वान किया, 'छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है।' उन्होंने ने कहा है-

बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने भीमराव आंबेडकर को मेधावी छात्र के नाते छात्रवृत्ति देकर 1913 में विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेज दिया।

अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति का गहन अध्ययन बाबा साहेब ने किया। वहां पर भारतीय समाज का अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी। इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नई दुनिया के दर्शन किए।

डॉ. आंबेडकर ने अमेरिका में एक सेमिनार में 'भारतीय जाति विभाजन' पर अपना मशहूर शोध-पत्र पढ़ा, जिसमें उनके व्यक्तित्व की सर्वत्र प्रशंसा हुई।

डॉ. आंबेडकर के अलावा भारतीय संविधान की रचना हेतु कोई अन्य विशेषज्ञ भारत में नहीं था। अतः सर्वसम्मति से डॉ. आंबेडकर को संविधान सभा की प्रारूपण समिति का अध्यक्ष चुना गया। 26 नवंबर 1949 को डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित (315 अनुच्छेद का) संविधान पारित किया गया।

 डॉ० आंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। 6 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु दिल्ली में नींद के दौरान उनके घर में हो गई। परंतु लोग बाबा साहब के मृत्यु को सन्देहात्मक के रूप में देखते है परंतु आज तक इनकी पुष्टि नही हो पायी  है !  1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

डॉ. आंबेडकर का लक्ष्य था- 'सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना।' डॉ. आंबेडकर ने गहन-गंभीर आवाज में सावधान किया था, '26 जनवरी 1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी। जल्द से जल्द हमें इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगी। वर्ना जो असमानता के शिकार होंगे, वे इस राजनीतिक गणतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे।'

आधुनिक भारत एवं संविधान के निर्माता, समस्त नारीजाति के मुक्तिदाता, विश्व रत्न, बोधिसत्व, परमपूज्य, महामानव, सिम्बल ऑफ़ नॉलेज, बाबा साहब डा भीमराव अम्बेडकर जी की 129वीं जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन एवं आप सभी को मंगलकामनाएं।

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