Anticorruotionnews > मध्यप्रदेश में कानून-व्यवस्था संभालने वाली पुलिस पर ही जब आपराधिक मामलों का साया पड़ जाए, तो सवाल सिर्फ व्यवस्था पर नहीं, पूरे सिस्टम की जड़ों पर उठते हैं। पिछले दो सालों में प्रदेश में 329 पुलिसकर्मियों पर एफआईआर दर्ज हुई हैं, और यह चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये है यहा सव विधानसभा में खुद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पेश किए हैं।
हम आप को बता दे की सबसे विस्फोटक खुलासा राजधानी भोपाल को लेकर सामने आया है—यहाँ अकेले 48 पुलिसकर्मी अपराध के दाग से घिरे हुए हैं। इनमें दुष्कर्म के 5 आरोप, मारपीट और शारीरिक प्रताड़ना के 9 मामले शामिल हैं। सवाल ये कि जब राजधानी के रक्षक ही भक्षक बनने लगें, तो आम नागरिक किसके भरोसे जिए?
इंदौर भी पीछे नहीं है। इंदौर सिटी और देहात में कुल 17 पुलिसकर्मियों पर दहेज प्रताड़ना के 7, मारपीट के 4 और धोखाधड़ी के 2 गंभीर मामले दर्ज हुए हैं। सिवनी में 18 और गुना में 17 पुलिसकर्मी आपराधिक प्रकरणों में उलझे पड़े हैं।
लेकिन सबसे बड़ा झटका महिला अपराधों के आंकड़ों पर आया है। सरकार के दो आधिकारिक स्रोत ही एक-दूसरे से मेल नहीं खा रहे। एनसीआरबी दुष्कर्म के 6857 मामले बताती है, जबकि विधानसभा में उपलब्ध आंकड़ा 8120 का है। यानी 1263 मामलों का रहस्यमय अंतर, जो सवाल खड़ा करता है— आख़िर सच किसके पास है? आंकड़ों में गड़बड़ी है या जमीनी हकीकत कहीं ज्यादा भयावह?
प्रदेश की पुलिस पर ऐसे गंभीर आरोपों और उलझे आंकड़ों ने सुरक्षा व्यवस्था की सच्चाई को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जब अपराधी और पुलिस की पहचान धुंधली होने लगे, तब समझना चाहिए कि कहीं न कहीं सिस्टम गहरी चोट खा चुका है।

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