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डॉ आंबेडकर हमेशा नीले रंग के कपड़े क्यों पहनते थे, पढ़िए | GK

रंगो का वर्गीकरण दशकों पहले हो चुका है। सफेद रंग ईसाइयों का तो भगवा रंग हिंदुओं का, हरे रंग पर मुसलमानों का पेटेंट है। रंग देखते ही हम समझ जाते हैं कि कौन व्यक्ति किस धर्म का है लेकिन दलित तो कोई धर्म नहीं है फिर दलित समाज की पहचान नीले रंग से क्यों होती है। जवाब आसान है, क्योंकि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर हमेशा नीला रंग पहनते थे परंतु सवाल यह है कि विदेश से उच्च शिक्षा ग्रहण करके लौटे डॉक्टर अंबेडकर नीले रंग के कपड़े क्यों पहनते थे। क्या वो अपनी कोई अलग पहचान बनाना चाहते थे या इसके पीछे कोई बड़ा संदेश छुपा हुआ है।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर छुआछूत के खिलाफ थे या भेदभाव के

यह तो सभी जानते हैं कि जैसे-जैसे डॉक्टर अंबेडकर उच्च शिक्षित होते गए वैसे-वैसे वह छुआछूत के खिलाफ अभियान को तेज करते चले गए। इस पोस्ट में आपको एक बड़ी बात पता चलेगी और वह यह कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भारत की जातिगत छुआछूत के खिलाफ ही नहीं बल्कि दुनिया भर में सभी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ थे। डॉक्टर अंबेडकर जब लंदन में पढ़ रहे थे तब उन्होंने देखा कि यहां भारत की तरह जातिगत छुआछूत नहीं है लेकिन भेदभाव तो यहां भी है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने देखा कि लंदन में व्हाइट कॉलर जॉब और ब्लू कॉलर जॉब प्रचलित हैं। व्हाइट कॉलर जॉब में लोग आराम से कुर्सी पर बैठकर मजे करते हैं और किसी प्रकार का कठिन परिश्रम नहीं करना पड़ता। लोग उनको को सलाम करते हैं। जबकि ब्लू कॉलर जॉब वाले व्यक्ति दिन-रात परिश्रम करते हैं धूप में रहते हैं और ऐसा करने के बाद भी सलाम करते हैं।

यह व्हाइट कलर जॉब और ब्लू कॉलर जॉब जाति व्यवस्था पर आधारित नहीं थी। यह योग्यता पर आधारित थी। जब भीमराव अंबेडकर अपनी शिक्षा पूर्ण करके भारत वापस आए तो उन्होंने भारत में उच्च पद पर रहते हुए और भारत का संविधान लिखते हुए नीले रंग को अपनाया ताकि अंग्रेजों की तरह भारत में भी नीले कलर के कपड़े पहनने वाले व्यक्तियों को लन्दन की तरह भेदभाव का सामना ना करना पड़े। भारत के संविधान निर्माता ने जब ब्लू कलर के कपड़े पहने भारत की प्रोफेशनल सोसाइटी में ब्लू कलर के साथ लंदन जैसा भेदभाव नहीं हुआ। यहां मजदूरों को नीले रंग की यूनिफार्म नहीं पहननी पड़ती है।

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