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सरकार-सिस्टम नहीं मिटा पाए कुपोषण का कलंक तो खुद निकल पडे पंकज



ग्वालियर कुपोषण के कलंक को मिटाने के लिए करोड़ाें के बजट और सरकारी योजनाओं का ढ़ेर, तब भी जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदलता हैं । नौनिहालों के बेहतर भविष्य की तस्वीर यहां अधूरी रह जाती है। सरकार और सिस्टम के सफल-असफल जैसे भी प्रयास रहे, लेकिन इसी कुपोषण के कलंक को मिटाने के लिए समाज से भी एक पहल हुई है। ग्वालियर के डाइटिशियन पंकज तिवारी कुपोषण से लडने के लिए निकल पडे हैं। खुद अपने स्तर पर अनाज को अलग-अलग तरह से प्रसंस्करण किया और एक ऐसा मिश्रण तैयार किया जो बच्चों को कुपोषण के शिकंजे से बाहर भी लाया। ग्वालियर की गरीब बस्तियों में पिछले तीन माह का यह प्रयोग सफल हुआ। 9 बच्चे कुपोषण के काल से बाहर आए और अब दूसरे बच्चों की तरह स्वस्थ्य हैं। प्रयोग के अच्छे नतीजे आए तो भिंड के गोहद में भी पंकज ने यह प्रयोग अक्टूबर में शुरू कर दिया है ।खुद महिला एवं बाल विकास विभाग के दरवाजे खटखटाए और अपना प्लान बताया और डाइट का खर्च भी खुद ही पंकज उठाते हैं।अब विभाग भी पंकज का आगे आकर सहयोग कर रहा है

वजन बढ़ता गया तो सामने ही मिलते गए प्रमाण

पेशे से डायटिशियन पंकज तिवारी ने कुपोषित बच्चों के लिए यह प्रयास खुद किया है ।बस्तियों में गरीब कमजोर बच्चों को देखकर तय किया कि इनके लिए कुछ करना बहुत जरूरी है। विभाग या सरकार करें न करें पंकज ने अनाज को पांच तरह की स्टेज से गुजारकर बिना किसी रसायनिक पदार्थ का उपयोग किए प्रोसेसिंग की और मिश्रण तैयार किया। ग्वालियर की खजांची बाबा की दरगाह इलाके में आने वाली आंगनबाडी में गरीब बस्ती में 6 माह पहले 6 बच्चों पर प्रयोग किया । प्रयोग में यह देखने में आया कि मिश्रण का असर बच्चों पर हुआ और स्वजनों को समझाने के बाद उन्हाेंने उसका पालन भी किया । तीन माह पहले इसी इलाके के 14 बच्चों पर ट्रायल की तो 9 बच्चों का वजन बढा और वे कुपोषण की स्थिति से बाहर भी आ गए । पंकज ने प्रति बच्चा 800 रुपये मासिक का खर्च किया।

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