ग्वालियर जिले के अस्पतालाें के हाल बेहाल है। यहां कागजाें में ताे अस्पतालाें में ढेराें स्ट्रेचर हैं, लेकिन मरीजाें के लिए मिलते नहीं है। हालत ये है कि मरीजाें काे स्वजन गाेद या कंधे पर उठाकर ले जाने काे मजबूर हैं। जबकि स्ट्रेचर पर दवाएं ढाेई जा रही हैं। एेसे में अस्पताल पहुंचने वाले मरीजाें काे खासी परेशानी झेलना पड़ती है।
मंत्री या काेई वरिष्ठ अफसर अस्पतालाें के निरीक्षण पर पहुंचते हैं ताे यहां गेट पर ही स्ट्रेचर सजाकर रख दिए जाते हैं। जबकि आम दिनाें में जिला अस्पताल मुरार हाे या सिविल अस्पताल डबरा कहीं स्ट्रेचर नहीं मिलता है। अटेण्डेंट जब कैजुअल्टी पहुंचते हैं ताे काफी देर ताे स्ट्रेचर की खाेज में ही इधर-उधर भटकते रहते हैं। परेशान हाेकर मरीज काे गाेद या कंधे पर उठाकर ही अस्पताल में ले जाना पड़ता है।
वार्ड बॉय भी नदारद
सिविल अस्पताल डबरा में करीब पच्चीस वार्ड बॉय हैं, लेकिन इमरजेंसी में एक भी नजर नहीं आता है। मरीज के स्वजनाें काे वार्ड बॉय काे बुलाने के लिए गुहार लगाना पड़ती है। डबरा सिविल अस्पताल में मरीजाें काे ढाेने के लिए वार्ड बॉय की ड्यूटी लगाई गई है, लेकिन यहां वार्ड बॉय ताे दूर स्ट्रेचर ही नहीं मिलते हैं।
केस-एक
माेहनगढ़ निवासी सुधा पत्नी मानसिंह बाथम पटिया से गिर जाने से चाेटिल हाे गईं थी। स्वजन जब अस्पताल लेकर पहुंचे ताे महिला काे अंदर वार्ड में ले जाने के लिए स्ट्रेचर ही नहीं मिला। स्वजन खुद ही महिला काे उठाकर अस्पताल तक ले गए।
केस-दाे
आदिवासी महिला रामदेवी पत्नी पहलू आदिवासी उम्र सत्तर साल निवासी खाेर मुसाहरी झगड़े में घायल हाे गई थी। स्वजन जब उसे अस्पताल लेकर पहुंचे ताे स्ट्रेचर आैर वार्ड बॉय दाेनाें ही नदारद थे। एेसे में स्वजन खुद ही महिला काे गाेदी में उठाकर कैजुअल्टी में ले गए।
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