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पीडि़ता बोली जबरदस्ती पहनाई माला,मेरा पति से नहीं हुआ राजीनामा

*पीडि़ता बोली जबरदस्ती पहनाई माला,मेरा पति से नहीं हुआ राजीनामा*

*-पति और ससुरालीजनों की प्रताडऩा से तंग आकर दर्ज कराई थी शिकायत*

*-पीडि़ता ने एसपी के समक्ष लगाई गुहार,महिला प्रकोष्ठ और परिवार परामर्श में नहीं हुई मेरी सुनवाई*

शिवपुरी
मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली है, सौतन से मेरी बात भी हो गई है। पति और सौतन हैदराबाद में रहते हैं। जबकि मैं शिवपुरी में ससुरालीजनों के साथ रहकर ससुरालीजन और पति की प्रताडऩा झेल रही हूं। वह मुझे मायके से रूपए लाने के लिए कहते हैं। अन्यथा की स्थिति में उनके द्वारा मेरे साथ मारपीट की जाती है। मेने यह पूरी बात पुलिस कंट्रोल रूम में चलने वाले परिवार परामर्श केन्द्र के सदस्यों से रो-रो कर कही। बावजूद इसके मेरी सुनवाई नहीं की गई और मेरे ऊपर दबाव डालते हुए जबरदस्ती मुझे माला पहनाकर पति के साथ खड़ाकर फोटो खींचवा लिए। जबकि मेरा पति से किसी तरह का कोई राजीनामा नहीं हुआ है। मैं अपने पति के साथ उसकी दूसरी पत्नी होने के कारण रहना नहीं चाहती हूं। क्योंकि वह मेरी हत्या भी करवा सकता है। जो राजीनामा हुआ है, उसे निरस्त किया जाए। यह शिकायत नरवर निवासी साहिस्ता खान ने पिछले दिनों पुलिस अधीक्षक राजेश हिंगणकर को दर्ज कराते हुए महिला प्रकोष्ठ और परिवार परामर्श केन्द्र के द्वारा किए जाने वाले उन दावों की पोल खेाल दी है। जिनमें उनके द्वारा बिना किसी दबाव के टूटते हुए परिवारों को जोडऩे की बात कही जाती रही है। जो मामला सामने आया है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि महिला प्रकोष्ठ परिवार परामर्श द्वारा मनगढ़ंत अंदाज में कुछ भी तो कार्रवाईयां की जा रहीं हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार नरवर के वार्ड क्र.10 निवासी साहिस्ता पुत्र इब्राहिम खांन का विवाह पुरानी शिवपुरी निवासी समीर पुत्र रज्जाक खान से 12 अक्टूबर 2014 को हुआ था। विवाह के बाद से 6 माह तक पति-पत्नी के बीच सबकुछ ठीक चला। बताया जाता है कि बाद में साहिस्ता का पति समीर हैदराबाद में रहकर एक फैक्ट्री में काम करने लगा। जबकि साहिस्ता अपने ससुरालीजनों के साथ शिवपुरी में ही रहती थी। साहिस्ता ने बताया कि उसके पति ने शिवपुरी में दुकान खोलने के लिए ससुरालीजनों से 50 हजार रुपये लिए थे। लेकिन इन पैसों से उसके द्वारा दुकान न खोली जाकर इस राशि को खर्च कर दिया गया। महिला के पिता द्वारा पूर्व में मकान बेचा गया था। साहिस्ता का आरोप है कि उसके ससुरालीजन एवं पति की नजर मकान बेचने से आये रुपयों पर थी और वह आये दिन उस पर दबाव बनाने लगे कि वह मायके से रुपये लेकर आए। ऐसा न करने पर ससुरालीजनों द्वारा महिला को प्रताडि़त किया जाने लगा। ससुरालीजनों की प्रताडऩा से परेशान होकर साहिस्ता ने 7 अगस्त 2018 के दिन अपने पति और ससुरालीजनों के खिलाफ दहेज के लिए प्रताडि़त किए जाने की शिकायत महिला प्रकोष्ठ ने दर्ज कराई थी। इस मामले में सुनवाई के लिए दोनों पक्षों को 9 सितंबर के दिन पुलिस कंट्रोल रुम में लगने वाले परिवार परामर्श केन्द्र पर बुलाया गया था। जहां इनके बीच राजीनामा कराये जाने की बात कही जा रही है। साहिस्ता के अनुसार पति-पत्नी के बीच राजीनामे जैसी कोई बात नहीं हुई। बल्कि जबरदस्ती मुझे समीर के साथ माला पहनाकर खड़ा कर दिया गया। इस दौरान मैंने परिवार परामर्श केन्द्र एवं महिला प्रकोष्ठ यह भी बताया था कि मेरे द्वारा कुटुम्ब न्यायालय में अपने पति के खिलाफ केश भी लगाया है। लेकिन उक्त लोगों ने मेरी कोई सुनवाई नहीं की। अब इस मामले में साहिस्ता खांन द्वारा 11 सितंबर के दिन पुलिस अधीक्षक को शिकायत दर्ज कराई गई है। जिसमें जबरदस्ती कराये गये राजीनामें को निरस्त किए जाने  एवं ससुरालीजनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। यह बतादें कि इस प्रकरण में 17 जुलाई के दिन रज्जाक खांन द्वारा भी एक शिकायत दर्ज कराई गई थी। जिसमें उल्लेख किया गया था कि साहिस्त उन्हें झूठे मामले में फसा सकती है।
*मामले में यह लगाई गई टीप*
पुलिस कंट्रोल रुम में संचालित होने वाले परिवार परामर्श केन्द्र में साहिस्त और समीर के मामले में जो टीप लागई गई है उसमें उल्लेख किया गया है कि ''लड़के ने वादा किया कि वो मारपीट नहीं करेगा व अपने साथ हैदराबाद ले जायेगा व अच्छे से रखेगा। पति-पत्नी एक साथ रहने के लिए सहमत है। समीर ने कहा है वो कोई भी मांग (रुपये) नहीं करेगाÓÓ जबकि स्थिति इससे उलट दिखाई दे रही है। 
*परिवार कल्याण समितियों का काम खत्म,नहीं करेगें सुनवाई*
दहेज उत्पीडऩ का केश दर्ज होने के तुरंत बाद अब फिर से पीडि़ता के पति और ससुराल वालों को गिरफ्तार किया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में आदेश जारी कर दहेज के मामलों की जांच परिवार कल्याण समितियों को सौंप दी थी। इनकी रिपोर्ट से पहले पति और रिश्तेदारों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई थी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने शुक्रवार 14 सितंबर को इस फैसले में बदलाव कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दहेज पीडि़ता की सुरक्षा के लिए यह जरुरी है। कोर्ट इस तरह कानून की खामियां नहीं भर सकता। इसके लिए विधायिका को कानून बनाना होगा। कोर्ट नहीं चाहता कि पति-पत्नी में झगड़ा हो। यह भी चाहते कि कानून का दुरुपयोग हो। अदालतें किसी से प्रभावित नहीं होती। कई बार जांच ऐजेंसी प्रभावित होकर काम करती है। जिससे सामाजिक आपदा आती है। अदालतों का फर्ज है कि ऐसे सामाजिक खतरे पहचान करके दूर करे।
*सर्वोच्च न्यायालय ने किया बदलाव*
जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने 27 जुलाई 2017 को कहा था कि दहेज प्रताडऩा से जुड़ी आईपीसी की धारा 498ए का दुरुपयोग होता है। आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी जरुरी नहीं। लीगल सर्विसेस अथॉरिटी हर जिले में परिवार कल्याण समिति गठित करें। समिति महीने भर में रिपोर्ट देगी। तब तक गिरफ्तारी नहीं की जायेगी। 14 सितंबर 2018 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले की जांच किसी समिति को सौंपना और उसी आधार पर केश निपटाना अस्वीकार्य है। कोर्ट ऐसा आदेश नहीं दे सकता। यह काम विधायिका का है। ऐसे मामलों की जांच पुलिस ही करेगी,गिरफ्तारी भी कर सकते है। समझौते के आधार पर केश रद्द करने का अधिकार सिर्फ हाईकोर्ट का है। कोई कमेटी ऐसा नहीं कर सकती। 
*इनका कहना है*
महिला द्वारा जो शिकायत दर्ज कराई गई है उसकी जांच कराई जायेगी। सुप्रीम कोर्ट के जो आदेश आए है उनका पूरी तरह से पालन भी कराया जायेगा।
*राजेश हिंगणकर*
*पुलिस अधीक्षक शिवपुरी*

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