कुछ दिन पहले की ही बात है, मैं अपने परिवार के साथ कार में कहीं जा रहा था। रास्ते में कई कारों, स्कूटरों आदि को धीमा होते और एक ओर रुकते हुए देखा, तो अपनी गाड़ी भी धीमी और एक ओर कर ली। दो कारें आपस में टकरा गई थीं, पर कोई जान-माल का नुक्सान ना हुआ देखकर मैं वहाँ से आगे चल पड़ा।
आपने भी सड़क पर चलते हुए अक्सर एक तरफ भीड़ देखी होगी और अक्सर किसी व्यक्ति को लहू-लुहान अवस्था में बैठे हुए अथवा लेटे हुए देखा होगा। ऐसे में, ज़्यादातर लोग अपने मोबाइल पर वीडियो बनाते हुए और बातें करते हुए देखेंगे, परन्तु ऐसे व्यक्ति कम ही देखे होंगे, जो उसे लहू-लुहान व्यक्ति को किसी अस्पताल ले जाने की कोशिश करे।
औरों की क्या कहूँ, कुछ साल पहले तो मैं भी यही सोचता था, कि "कोई और इसे अस्पताल पहुंचा देगा। अगर मैं इसे वहाँ ले गया, तो पुलिस मुझी से पूछ-ताछ करेगी और बाद में भी घर आकर परेशान करेगी।"
अब जब से दिल्ली सरकार ने "फ़रिश्ते दिल्ली के" योजना के बारे में दिल्ली की जनता को जागरूक करना शुरू है, तो लोगों का दुर्घटना में घायल हुए जनों के प्रति हम सब का रवैया ज़रूर बदलेगा, ऐसा मेरा मानना है। साथ ही, पुलिस को भी अब अपनी कार्य-प्रणाली बदलने की ज़रुरत महसूस होगी।
- इस योजना के अंतर्गत, यदि कोई नागरिक दुर्घटना में घायल व्यक्ति को पास के किसी अस्पताल पहुंचा देता है, तो
- उस अस्पताल को उस घायल व्यक्ति को तुरंत दाखिल कर, उसका इलाज शुरू कर देना होगा।
- इस बारे में दिल्ली सरकार ने दिल्ली के सभी सरकारी और गैर-सरकारी अस्पतालों को सूचित भी कर दिया है।
- वह अस्पताल कितना महँगा है, इसकी किसी को चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि घायल व्यक्ति के इलाज का पूरा खर्च उठाने का ज़िम्मा दिल्ली सरकार ने अपने ऊपर ले लिया है।
- पुलिस भी अब इस बात को जानती है, कि उसे इस दुर्घटना को अंजाम देने वाले को खोजना है, ना कि घायल की सहायता करने वाले को परेशान।
दिल्ली सरकार की ऐसी ही परिवर्तनात्मक (Innovative) योजनाओं का परिणाम है, कि अब तक लगभग 3,000 व्यक्तियों की दुर्घटना का शिकार होने के बावजूद जान बच पायी।
नीति आयोग ने ऐसी योजनाओं को अंजाम देने के कारण दिल्ली को भारत के सभी केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक परिवर्तनात्मक (Innovative) माना है।[1]
फोटो साभार गूगल से ली गयी है।
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