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दर्द होने पर लोग कराहते क्यों है, कोई लॉजिक है या देखा-देखी

इन घरेलू तरीकों से 2 दिन में मिल ...

आपने अक्सर देखा होगा, सिर्फ एक प्रकार का दर्द छोड़कर शेष सभी प्रकार के दर्द में लो तब तक कराहते रहते हैं जब तक कि दर्द पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता है। सवाल यह है कि दर्द या शारीरिक कष्ट होने पर लोग कराहते क्यों हैं। क्या इससे कोई फायदा होता है या फिर बस एक दूसरे की देखा-देखी लोग कराहते रहते हैं और बताते रहते हैं कि वह कष्ट में है।
दिल्ली की प्रसिद्ध ब्लॉगर अंजली मिश्रा ने 2017 में अपने ब्लॉग में इसके बारे में विस्तार से बताया था। उन्होंने बताया कि 'अगर इंसानी व्यवहार को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि चोटिल होने पर इलाज या दर्द निवारक दवा मिलने के बाद भी व्यक्ति कराहता रहता है। ऐसा तब तक होता है जब तक उसे पूरी तरह से दर्द महसूस होना बंद नहीं हो जाता। इसी तथ्य ने वैज्ञानिकों इस सवाल के जवाब में किसी सटीक परिणाम पर पहुंचने से रोके रखा था और इस पर लगातार प्रयोग जारी थे। साल 2015 में जरनल ऑफ पेन में इस पर एक रिसर्च प्रकाशित हुई है। इसमें पहली बार कहा गया कि दर्द होने पर कराहने से राहत महसूस होती है, इसलिए व्यक्ति चोट लगने पर चीखता या कराहता है। यानी यह स्वाभाविक होने के साथ-साथ जरूरी भी है।

रिसर्च के दौरान करीब पचास लोगों पर अलग-अलग प्रयोग किए गए। एक प्रयोग के दौरान शामिल लोगों को बहुत ठंडे पानी में हाथ डालने को कहा गया। पानी में हाथ डालते ही कुछ लोगों ने खुद कराहने की (स्वाभाविक) आवाज निकाली। कुछ को कराहने की (उनकी खुद की या किसी दूसरे व्यक्ति की भी) रिकॉर्डेड आवाज सुनाई गईं। वहीं लोगों के एक समूह को किसी भी तरह की आवाज नहीं सुनाई गई और न ही उन्हें किसी तरह की आवाज निकालने दी गई।

प्रयोग के बाद पाया गया कि कराहने वाले लोगों ने बाकी दोनों तरह के लोगों की तुलना में टास्क को तीन मिनट ज्यादा देर तक किया। जिन्होंने अपनी या दूसरे की रिकॉर्डेड आवाज सुनीं और जिन्होंने कोई आवाज नहीं सुनी वे लगभग बराबर समय तक ही पानी में हाथ डाले रह सके। शोधकर्ताओं के अनुसार रिकॉर्डेड आवाज सुनने वालों की सहनशक्ति में कोई बढ़त नहीं होना बताता है कि कराहने की आवाज का उद्देश्य केवल संवाद करना नहीं है।

कुल मिलाकर दर्द में कराहने से कई तरह के फायदे होते हैं 

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