इंदौर नगर निगम में बिल्डिंग परमिशन के लिए आने वाले आवेदनों में से ज्यादातर प्रकरण आर्किटेक्ट या कंसल्टेंट के पास लंबित हैं। प्रक्रिया ढंग से पूरी नहीं करने या आधी-अधूरी जानकारी देने की वजह से ज्यादातर प्रकरण उलझे हैं। निगम अधिकारियों ने इनकी गलतियों में सुधार के लिए पिछले दिनों आर्किटेक्टों और कंसल्टेंटों को बुलाकर उनकी क्लास ली है। इसमें उन्हें बताया गया है कि कैसे छोटे-छोटे कारणों के कारण उनके आवेदन अटके रहते हैं और कैसे उनमें सुधार हो सकता है?
फिलहाल निगम में 2100 प्रकरण लंबित हैं, जिनमें से 1100 प्रकरण केवल आर्किटेक्ट व कंसल्टेंट के कारण उन्हीं के कंसोल में पेंडिंग हैं। 500 से ज्यादा प्रकरण स्क्रूटनी और बाकी के आवेदन बिल्डिंग ऑफिसर या बिल्डिंग इंस्पेक्टर के पास लंबित हैं। पिछले हफ्ते निगम ने दो दिन की कार्यशाला आयोजित कर आर्किटेक्ट और कंसल्टेंट को बिल्डिंग परमिशन के ऑनलाइन सॉफ्टवेयर सिस्टम ऑटोमैटिक बिल्डिंग प्लान अप्रूवल सिस्टम-2 की बारीकियां बताई हैं। निगम के अपर आयुक्त एसके चैतन्य के अनुसार इसका उद्देश्य यही है कि पहली ही बार में आवेदन या नक्शा इतना सही बने कि कहीं भी तकनीकी त्रुटि या अन्य मामूली गलती के कारण आवेदन अटके नहीं।6
अभी 30 दिन है समय सीमा
अभी आवेदन आने के बाद उसके निराकरण की समय सीमा 30 दिन है। यदि किसी कमी या गलती की वजह से आवेदन शुरुआती चरण में ही आर्किटेक्ट के पास लौटता है, तो उसे फिर प्रक्रिया में आने में आठ से 10 दिन का समय लगता है। इससे देरी और परेशानी बढ़ती है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि कभी ड्राइंग सही नहीं होने, कमरे का आकार या ऊंचाई गलत बताने, पूरे दस्तावेज नहीं होने, फॉर्म ढंग से नहीं भरने, फीस जमा नहीं करने जैसे कारणों की वजह से आवेदन फिर आर्किटेक्ट के कंसोल में चला जाता है। कार्यशाला में उन्हें प्रशिक्षण देकर समझाया गया कि वे आवेदन भले ही एक दिन बाद सबमिट करें, लेकिन यह सुनिश्चित कर लें कि उसमें सारे नियम-शर्तों का पालन किया गया है।
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