भोपाल खंडवा में जिन्होंने दंगल लड़ने का जमाने में ऐलान कर दिया, वे अखाड़े में उतरने से पहले 'अपनों के सियासी दांव' से हो गए चित्त। दोनों को यह इल्म भी नहीं था कि उनका पत्ता कट जाएगा। हो भी क्यों न, एक को अपने पिता की विरासत पर गुमान था, तो दूसरे ने खुद को सबसे बड़ा पहलवान समझ लिया। इसी ओवर कॉन्फिडेंस ने दोनों को अखाड़े से बाहर कर दिया। अब इन्हें कौन समझाए कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। कब किससे समीकरण बन जाए और किससे बिगड़ जाए।
खंडवा सांसद नंद किशोर चौहान के निधन के बाद से पूरी सहानुभूति उनके बेटे हर्ष सिंह चौहान के साथ थी। भाजपा को भी लगा कि वे इस लहर पर सवार होकर झंडा फहरा देंगे। बड़े उस्ताद ने शुरू में पीठ भी ठोक दी मगर इस दौरान हर्ष को बहुत सारे उस्ताद मिल गए। वे खुद को ही पहलवान समझने लगे। वे शायद भूल गए कि राजनीति के अखाड़े में उतरने के लिए सिर्फ पहलवान का बेटा होना ही काफी नहीं है,दावपेंच इसकी पहली पाठशाला है। हर्ष तक तो ठीक था, लेकिन अरुण यादव तो अनुभवी पहलवान थे। आखिर उनसे कहां गलती हो गई। चर्चा है कि वह खुद ही उस्ताद बन गए। पार्टी के मंझे हुए खिलाड़ी को उस्ताद मानने से इनकार ही नहीं किया, बल्कि पंगा भी ले लिया।
सिंधिया का कद बढ़ने से किसके लिए खतरे की घंटी
आमतौर पर माना जाता है कि भाजपा में जो लोग संघ से नहीं होते हैं, उन्हें कोई बड़ा पद नहीं मिलता है, लेकिन मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़कर आए ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद बीजेपी में लगातार बढ़ता जा रहा है। अब उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी गई। सिंधिया के समर्थक मानते हैं कि उन्होंने राकेट की तरह उड़ान भर दी है। दूसरी तरफ मूल भाजपा नेताओं ने गुणा-भाग लगाना शुरू कर दिया है कि सिंधिया किसके लिए खतरे की घंटी हैं? ऐसे में सवाल है कि संघ का उनके पास कोई बैकग्राउंड भी नहीं है, फिर भी 18 महीने में चौथा प्रमोशन।
सिंधिया का ग्राफ बढ़ने से भाजपा के ऐसे नेता खुश भी हैं, जिन्होंने कभी सिंधिया को सार्वजनिक तौर पर आड़े हाथों लिया था। वजह यह है कि वे बहुत कोशिशों के बावजूद "सरकार"का कुछ बिगाड़ नहीं पाए। इनमें से एक नेता ने सिंधिया के भविष्य को लेकर तर्क दिया है- बीजेपी के प्रति भले ही यह धारणा है कि बाहर से आने वाले लोगों को संगठन में कोई बड़ा पद नहीं मिलता है। मगर हाल के दिनों में कुछ परिस्थितियां बदली हैं। असम में हेमंत बिस्वा सरमा को सीएम बनाकर बीजेपी ने अलग संदेश दिया है। हेमंत भी बाहरी हैं। यानी उनका इशारा किस तरफ है, आप समझ ही गए होंगे....
ना खुदा ही मिला, ना विसाल-ए-सनम
एमपी कॉडर के एक अपर मुख्य सचिव स्तर के आईएएस अफसर अपनी कार्यप्रणाली को लेकर माननीयों के निशाने पर हमेशा रहे हैं। वे हाल ही में केंद्र की प्रतिनियुक्ति से वापस लौटे। इस दौरान उनकी शैली थोड़ी बदली-बदली सी दिखी। उन्हें उम्मीद थी कि बड़े विभाग की कमान मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्हें दूसरा झटका तब लगा, जब उन्हें मंत्रालय की ओल्ड बिल्डिंग में वह चैंबर नहीं मिला, जिसमें मुख्य सचिव बैठा करते थे, जबकि इस चैंबर में उनसे पहले पदस्थ अपर मुख्य सचिव बैठते थे, जिनकी जगह उनकी पोस्टिंग हुई।
पता चला है कि उन्हें तीसरा झटका दे दिया गया है। दरअसल, वे पिछले माह रिटायर हुए एसीएस राधेश्याम जुलानिया का बंगला आवंटित करना चाहते थे, लेकिन 'सरकार' ने यह बंगला उस अफसर को अलॉट कर दिया, जिन पर सरकार की छवि बनाने की जिम्मेदारी है। इसको लेकर एक अफसर ने शेर के माध्यम से प्रतिक्रिया दी- ना खुदा ही मिला, ना विसाल-ए-सनम।
मंत्री व विभाग प्रमुख में पंगा, अफसर परेशान
इन दिनों केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे के एक मंत्री और विभाग के प्रमुख सचिव के बीच बड़ा पंगा हो गया है। प्रमुख सचिव मंत्री जी की सुनते ही नहीं है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट की बैठक तक में मंत्री की कार्यप्रणाली का अनुसरण करने अन्य मंत्रियों को सलाह दे चुके हैं। ऐसे में विभाग के अफसर असमंजस में है कि किसकी सुनें, मंत्री या फिर प्रमुख सचिव?
दरअसल, मंत्री ने शिकायतों के लिए अपने आफिस में अघोषित कॉल सेंटर बना लिया है। जहां शिकायत आने पर प्रमुख सचिव को ई-मेल से भेजी गई, लेकिन रिस्पॉन्स नहीं मिला। ऐसे में मंत्री के स्टाफ ने शिकायतें सीधे जिलों में भेजकर एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगना शुरू कर दिया। इससे हुआ यह कि प्रमुख सचिव मैदानी अफसरों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। दो दिन पहले एक कलेक्टर ने 'सरकार के दूत' के संज्ञान में पूरा मामला लाया है। अब इंतजार है कि सरकार का एक्शन क्या होता है।
और अंत में
प्रमुख सचिव का 'टेबल' पर आया दिल, दूसरे हो गए बीमार
भोपाल के लिंक रोड नंबर एक पर वन विभाग का औषधि केंद्र है। जहां पंचकर्म चिकित्सा से उपचार किया जाता है। शरीर में औषधीय तेलों से मसाज की जाती है। इस केंद्र में बड़े अफसर पहुंच रहे हैं। बताया जाता है कि यहां एक टेबल है, जिसमें लेट कर मसाज कराने से तकलीफ खत्म हो जाती है। जब एक प्रमुख सचिव को यह जानकारी मिली तो वे केंद्र में पहुंचे और उसी टेबल पर लेट कर पंचकर्म चिकित्सा से उपचार कराया। यहां तक तो ठीक था, लेकिन अफसर को यह टेबल इतनी पसंद आई कि एक दिन बाद ही अपने घर बुलावा ली। अब दूसरे अफसर केंद्र के कर्ताधर्ताओं पर दबाव बना रहे हैं कि वे टेबल वापस बुलवाएं। बता दें कि ये वही अफसर हैं, जिनका 2018 तक शिवराज सरकार में इकबाल बुलंद था।
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