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गणगौर की पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त



गणगौर का अर्थ है,'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है। शिव-पार्वती की पूजा का यह पावन पर्व आपसी स्नेह और साथ की कामना से जुड़ा हुआ है। इसे शिव और गौरी की आराधना का मंगल उत्सव भी कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती है। इस दिन सुहागन महिलाएं सौभाग्यवती की कामना के लिए गणगौर माता यानि माता गौरा की पूजा करती हैं। इस बार गणगौर तीज 4 अप्रैल 2022 दिन सोमवार को मनाई जाएगी। 

गणगौर पूजा 2022  शुभ मुहूर्त / GANGAUR POOJAN 2022 Shubh Muhurat

गौरी पूजा समाप्त- 04 अप्रैल 2022 दिन सोमवार

तृतीया तिथि आरंभ- 03 अप्रैल 2022 को 12 बजकर 38 मिनट से 

तृतीया तिथि समाप्त- 04 अप्रैल 2022 को 01 बजकर 54 मिनट तक 

गणगौर पूजन विधि / GANGAUR POOJA VIDHI

वसंत और फाल्गुन की रुत में श्रृंगारित धरती और माटी की गणगौर का पूजन प्रकृति और स्त्री के उस मेल को बताता है जो जीवन को सृजन और उत्सव की उमंगों से जोड़ती है। गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं व विवाहित स्त्रियां ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर और पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर चौकी पर स्थापित करती हैं।

शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन,अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। सौभाग्य की कामना लिए दीवार पर सोलह -सोलह बिंदियां रोली,मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं। एक बड़ी थाली में चांदी का छल्ला और सुपारी रखकर उसमें जल, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़कती हैं। अंत में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है। 

गणगौर पूजा का महत्व / GANGAUR POOJAN KI IMPORTANCE

नवरात्रि के तीसरे दिन यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का त्यौहार स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। विवाहित स्त्रियां इसे अपने पति की मंगल कामना और अखंड सौभाग्य का वरदान पाने के लिए मनाती हैं। अविवाहित गौर माता से मन चाहा वर पाने की मनोकामना लिए सोलह दिन गणगौर की पूजा करती हैं। शास्त्रों के अनुसार माँ पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के प्रताप से भगवान शिव को पाया। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। माना जाता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरम्भ हुई।

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