Music

BRACKING

Loading...

ददुआ डकैत के एक इशारे पर MP-UP के 20 विधायक बनते थे , 9 कत्ल कर बना था डाकू

 यही अप्रैल का महीना था। साल 2007 में UP की सत्ता बदली। मायावती सूबे की नई मुखिया बन गईं। सत्ता हाथ आते ही उनका पहला फैसला था- ‘ऑपरेशन ददुआ’। मायावती सरकार जिन्दा या मुर्दा किसी भी हालत में ददुआ को पकड़ना चाहती थी। तत्काल प्रभाव से STF का गठन किया गया और इस पूरे ऑपरेशन की जिम्मेदारी यूपी के जांबाज पुलिस अफसर अमिताभ यश को दे दी गई।

आज डकैत की कहानी 2 में, कहानी उसी ददुआ डाकू की जिसने 32 साल में 200 से ज्यादा हत्याएं कीं। मायावती का सबसे बड़ा दुश्मन कैसे बन गया? आइए जानते हैं…

पिता को नंगा कर पूरे गांव में घुमाया, फिर कुल्हाड़ी से काट दिया गया
साल 1955 में चित्रकूट के पास दवेदली गांव में शिव कुमार पटेल का जन्म हुआ। बचपन ठीकठाक बीता। वह 17 साल का ही हुआ था कि उसके जीवन में एक बड़ा हादसा हो गया।

जमींदार जगन्नाथ की तस्वीर।
जमींदार जगन्नाथ की तस्वीर।

साल 1972 में पड़ोस के गांव रायपुर के जमींदार ने शिव कुमार के पिता को नंगा करके पूरे गांव में घुमाया और फिर कुल्हाड़ी मार कर उनकी हत्या कर दी। शिव कुमार को इस बात की जानकारी लगी तो उसका खून खौल गया। उसने कुल्हाड़ी उठाई और रायपुर जाकर उस जमींदार जगन्नाथ और उसके 8 लोगों को काट डाला। एक ही दिन में 9 कत्ल करके शिव कुमार पटेल बागी बन गया और पुलिस आती उससे पहले ही चित्रकूट के बीहड़ों की तरफ भाग गया।

डाकू गया कुर्मी ने हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी
शिव कुमार के पास घर वापस जाने का कोई ऑप्शन नहीं बचा था। गांव में पुलिस थी। कुछ दिनों बाद बीहड़ में उसकी मुलाकात डाकू राजा रंगोली से हुई। उसकी बहादुरी की कहानी सुन राजा ने उसे ददुआ नाम दे दिया। राजा रंगोली के राइट हैंड गया कुर्मी ने उसे बंदूक समेत कई हथियारों को चलाने की ट्रेनिंग दे दी। ददुआ ने गया को अपना गुरु मान लिया। ट्रेनिंग के बाद ददुआ गिरोह का खास मेंबर बन गया। लूट, अपहरण और हत्याएं करने लगा। 10 साल बीत गए, लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लगी कि ये आपराधिक घटनाएं कर कौन रहा है।

फाइल फोटो
फाइल फोटो

साल 1983 आया, राजा रंगोली की गैंग की पुलिस से मुठभेड़ हुई। राजा मारा गया और उसके राइट हैंड गया ने सरेंडर कर दिया। ददुआ किसी तरह वहां से भाग निकला। अब वही गैंग का मुखिया बन चुका था, लेकिन गैंग के पास पैसे की कमी थी।

ददुआ का आतंक शुरू, तेंदू पत्ता ठेकेदारों का जीना हराम कर दिया गया
ददुआ की गैंग ने जिस बीहड़ को अपना अड्डा बनाया था, वहां तेंदू के पत्ते का लाखों करोड़ों रुपए का व्यापर होता था। व्यापारी ठेका लेते थे। मजदूर लगाकर तेंदू पत्ते तुड़वाते और उन्हें बीड़ी समेत कई चीजें बनाने के लिए बेचा जाता। ददुआ ने इन्हीं ठेकेदारों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। पहले किडनैपिंग करता फिर फिरौती मांगता। पैसा ना मिलने पर जान से मार देता। ददुआ ने ठेकेदारों के अंदर इतना खौफ भर दिया कि मांगने से पहले उस तक पैसा पहुंचाया जाने लगा था।

तेंदू पत्ते वाले जंगल का जायजा लेते हुए पुलिस, ये तस्वीर ददुआ के समय की नहीं है।
तेंदू पत्ते वाले जंगल का जायजा लेते हुए पुलिस, ये तस्वीर ददुआ के समय की नहीं है।

इसके साथ ही ददुआ लगातार लूट, अपहरण और हत्याएं करता रहा। अब उसके पास पैसा ही पैसा था। एक समय तो ऐसा आ गया था कि सारे ठेकेदार वो जंगल छोड़ भाग गए थे। ददुआ की इजाजत के बिना कोई एक तेंदू के पत्ते को भी हाथ नहीं लगा सकता था। इन घटनाओं के बाद ददुआ पुलिस की नजर में आया। पुलिस उसे तलाशने लगी।

गरीबों ने अपना मसीहा मान लिया, उसके पास फरियाद लेकर जाने लगे
ददुआ बीहड़ के आसपास बसे गांवों में आया-जाया करता था। उसको जानकारी मिली कि तेंदू पत्ता तोड़ने वाले मजदूरों को पूरे पैसे नहीं मिलते। उसने ठेकेदारों से कहकर सबकी मजदूरी बढ़वा दी। लोगों के बीच उसका भरोसा बढ़ा। लोग उसके पास अपनी फरियाद ले कर जाने लगे। उसने कई गरीब बेटियों की शादी करवाई। गरीबों की जमीन हड़पने वालों को उनकी जमीन वापस दिलाई। लाचार लोगों की पैसे से लेकर हर तरह की मदद करने लगा। अमीरों को लूटता और गरीबों में बांटता। लोग उसे अपना मसीहा मानने लगे।

मुखबिरों को ऐसे मारता था कि देखने वाले की रूह कांप जाए
गरीबों के लिए ददुआ जितना कोमल दिल का इंसान था। मुखबिरों और पुलिस के लिए उतना ही निर्दयी। ददुआ के टाइम में मुखबिरी का मतलब मौत होता था। ददुआ सबसे कहा करता था, “जिस दिन मेरी मुखबिरी करने का ख्याल भी दिल में आये समझ लेना तुम्हारी मौत हो चुकी है।”

2020 में ददुआ की जिंदगी पर बनी तानाशाह फिल्म का पोस्टर
2020 में ददुआ की जिंदगी पर बनी तानाशाह फिल्म का पोस्टर

20 जून 1986 को ददुआ की निर्दयता का एक ऐसा ही मामला सामने आया था। ददुआ अपनी 72 लोगों की गैंग के साथ पुलिस के इन्फॉर्मर बन चुके शम्भू सिंह के गांव गया। बीच सड़क पर शम्भू सिंह का गला काटा और फिर उसका कटा हुआ सिर बांस में बांधकर कई गांवों में घुमाया। शम्भू सिंह के अलावा ददुआ ने उसके साथ 9 और लोगों की हत्या कर दी थी। मुखबिरी के शक में एक बार उसने लधौहा गांव के जमींदार की दोनों आंखें निकाल कर उसे जिन्दा छोड़ दिया था। इन बड़ी घटनाओं के बाद बुंदेलखंड के कई गांव सहम गए थे। सरकार प्रेशर में आ गई थी और पुलिस के ऊपर दबाव बढ़ चुका था।

ददुआ की इंटेलिजेंस पुलिस से भी तेज थी, अपने साथ हमेशा एक हिरण रखता था
अब तक ददुआ के ऊपर 600 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हो चुके थे। इनमें से 200 मुकदमे तो सिर्फ हत्याओं के थे। पुलिस के पास ददुआ की एक तस्वीर भी नहीं थी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की पुलिस दिन-रात ददुआ को ढूंढ रही थी, लेकिन उसकी परछाई तक नहीं छू पा रही थी।

बीहड़ों के चक्कर काटती हुई पुलिस
बीहड़ों के चक्कर काटती हुई पुलिस

दरअसल, ददुआ की इंटेलिजेंस पुलिस से भी तेज थी। ददुआ के पास पुलिस से ज्यादा मुखबिर हुआ करते थे। यहां तक कि पुलिस में शामिल लोग भी ददुआ के लिए मुखबिरी किया करते थे। पुलिस को ददुआ की खबर लगने से पहले ददुआ को पुलिस की खबर लग जाती थी। इसके साथ ही ददुआ अपने साथ हमेशा हिरण और कुत्ता रखता था। दोनों जानवर सूंघ कर ऐसे एक्ट करने लगते थे, जिससे ददुआ को पता लग जाता था कि कोई आ रहा है और वो अपना अड्डा बदल लेता था।

ददुआ खुद को मरा मान चुका था फिर उसने एक मन्नत मांगी
साल 1994 में ददुआ धाता थाना क्षेत्र के घटईपुर गांव आया। ये गांव ददुआ की ससुराल थी। उसके ससुराल आने की जानकारी लगते ही पुलिस के कई जवानों ने उसे घेर लिया। पुलिस से बचते-बचाते वह ससुराल से 1 किलोमीटर दूर कबरहा गांव में बने हनुमान मंदिर में जा कर छिप गया। ददुआ को अपनी मौत सामने दिख रही थी, क्योंकि उसके साथ उसकी पूरी गैंग भी नहीं थी और हथियार भी कम थे।

पुलिस पूरी जान लगाकर चप्पे-चप्पे पर उसे ढूंढ रही थी। ददुआ के प्राण हलक में अटके हुए थे। तभी ददुआ ने एक मन्नत मांगी कि आज अगर उसकी जान बच जाती है तो वो नरसिंहपुर में एक भव्य मंदिर बनवाएगा। उस दिन उसके कई साथी मारे गए, लेकिन ददुआ किस्मत से बच निकला।

मंदिर बनवाया, ऐलान किया कि उद्घाटन करने खुद आएगा
जान बचने के 2 साल बाद यानी साल 1996 में ददुआ ने फतेहपुर के पास नरसिंहपुर में 1 करोड़ रूपए से ज्यादा खर्च कर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। फिर ऐलान किया कि वो उस मंदिर के उद्घाटन में शामिल होगा। पुलिस के लिए इससे आसान मौका कुछ नहीं हो सकता था। पुलिस ने चप्पे-चप्पे पर अपने लोग बैठा दिए। ददुआ आया उसने पूजा की और चला गया, पुलिस को भनक तक नहीं लगी। दरअसल, ददुआ भेष बदल कर आया था। बताते चलें, उस मंदिर का नाम शिव हरेश्वर मंदिर है। यह मंदिर तीन मंजिल का है।

ददुआ की असली और इकलौती तस्वीर
ददुआ की असली और इकलौती तस्वीर

अब ददुआ की राजनीति में एंट्री होती है, MP और UP के 20 विधायक उसके इशारे पर बनते थे
जनता के बीच अपना खौफ बढ़ता देख ददुआ ने उसका राजनीतिक फायदा उठाने की बात सोची। ददुआ खुद तो कभी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन, UP और MP की करीब 20 विधानसभा सीटों में अपना दबदबा कायम कर लिया।

बांदा, चित्रकूट, फतेहपुर और प्रतापगढ़ जैसे जिलों की 20 विधानसभा सीटों के नतीजे उसके एक इशारे से बदल जाते थे। कुर्मी समाज तो उसे अपना भगवान मान ही चुका था। अन्य लोग भी उसके कहने पर ही वोट देने लगे।

मुहर लगेगी हाथी पर, वरना गोली पड़ेगी छाती पर
सत्ता के लोभ में कई राजनीतिक पार्टियां ददुआ से कांटैक्ट करने लगीं। साल 2002 के UP विधानसभा चुनावों में ददुआ ने मायावती का साथ दिया। उस समय ददुआ ने गांवों में पोस्टर लगवाए थे। उन पर लिखा था- मुहर लगेगी हाथी पर, वरना गोली पड़ेगी छाती पर। ददुआ के प्रभाव वाली सीटों पर तो बसपा को सफलता हाथ लगी। मायावती मुख्यमंत्री बन गईं।

मायावती (फाइल फोटो)
मायावती (फाइल फोटो)

साल 2004 में सत्ता बदली उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह बन गए। ददुआ ने बिना देरी किए बसपा छोड़ मुलायम का दामन थाम लिया। अपने पूरे परिवार को सपा में शामिल करवा दिया और मायावती का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया। उसने एक के बाद एक कई बसपा नेताओं की हत्या करनी शुरू कर दीं।

ददुआ की तलाश से लेकर एनकाउंटर तक में 100 करोड़ रुपए खर्च
2007 में UP में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। प्रदेश मुखिया मायावती बनीं। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने ऑपरेशन ददुआ चलाने का आदेश दिया। स्पेशल टास्क फोर्स यानी STF का गठन किया गया। इसकी जिम्मेदारी जांबाज अफसर अमिताभ यश को दी गई।

ददुआ को किसी ने नहीं देखा था। उसकी कोई तस्वीर नहीं थी इसलिए मुखबिरों की मदद से पुलिस ने उसका स्केच तैयार करवाया। पहले वो 5 लाख का इनामी था, अब उस पर 10 लाख रुपए का इनाम रख दिया गया। 3 महीनों की कड़ी मेहनत के बाद पुलिस ने मानिकपुर थाना क्षेत्र के आल्हा गांव के पास झलमल के जंगल में 22 जुलाई, 2007 को मुठभेड़ में ददुआ को मार गिराया। चर्चित क्राइम रिपोर्टर शम्स ताहिर ने अपनी एक रिपोर्ट में जिक्र किया था कि ददुआ की तलाश में चलाए गए कुल ऑपरेशन्स में यूपी सरकार ने 100 करोड़ से ज्यादा रूपए खर्च कर दिए थे।

2016 में ददुआ के नाम पर मंदिर बना
यूपी के फतेहपुर जिले के नरसिंहपुर में ददुआ ने जो शिव हरेश्वर मंदिर बनवाया था। उसी मंदिर के एक हिस्से में ददुआ के बेटे वीर सिंह ने उसका मंदिर भी बनाया है। साल 2016 में उसकी मूर्ति स्थापना हुई थी। उस मंदिर में ददुआ की मूर्ति के साथ उसकी पत्नी कृष्णा देवी की मूर्ति एक साथ स्थापित की गई है।

मंदिर में ददुआ और उनकी पत्नी की मूर्ति
मंदिर में ददुआ और उनकी पत्नी की मूर्ति

मंदिर के पुजारी बताते हैं, "भगवान के बाद हर रोज ददुआ और उनकी पत्नी की मूर्ति की माला बदली जाती है और सफाई की जाती है।"

ददुआ का परिवार राजनीति में आज भी सक्रिय है
ददुआ का भाई बाल कुमार पटेल 2009 में मिर्जापुर से सांसद बना था। बेटा वीर सिंह पटेल 2012 में चित्रकूट के कर्वी से विधायक बना था। बहू ममता पटेल जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। भतीजा राम सिंह पटेल भी पट्टी से विधायक बना। ये सभी अभी भी राजनीति में सक्रिय हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ