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समाज का सबसे घिनौना रूप क्या है? आइए जानते हैं एंटी करप्शन न्यूज़ का कुछ विशेष विश्लेषण


बलात्कार की कोई घटना आते ही दुःखद प्रतिक्रियाओं का सैलाब आ जाता है। #वीभत्स तस्वीरें वायरल होने लगती हैं। स्वाभाविक है क्योंकि हम ये सब देखते पढ़ते समय तुरन्त अपने #परिवार और #बच्चों के बारे में सोचने लगते हैं। हमें पीड़ित में अपने बच्चे दिखने लगते हैं।
#मनोवैज्ञानिक रूप से ये पीड़ितों के प्रति संवेदना से ज्यादा खुद के बच्चों के बारे में भय के कारण होता है।
जितनी दूर की घटना होती है उसके प्रति संवेदना उतना कम होता है, क्योंकि #अचेतन में आपको लगता है ये हमसे दूर है।
बलात्कारी को #फांसी दो, #गोली से उड़ा दो, इत्यादि शुरू कर देते हैं। #सऊदी_अरब के कानूनों की दुहाई देने लगते हैं।( वहां #बलात्कार की शिकार महिला को खुद# पर हुए बलात्कार को साबित करने के लिए 4 पुरूष गवाह जुटाने पड़ते हैं, उसके बाद ही उसे बलात्कार माना जाता है, यदि वह ऐसा करने में असमर्थ हुई तो उसे ही दंड दिया जाता है, सोच लीजिये कितनी बलात्कार की घटनाएं सामने नहीं आती होंगी।)
बलात्कारी कोई 70 के दशक की फिल्मों से दूर से ही नहीं पहचान लिए जाते, वो बिल्कुल आपकी हमारी तरह की शक्ल के होते हैं। अधिकतर वे घर के अंदर , पड़ोस या मित्र भी होते हैं।
तकरीबन 2 साल पहले मैंने और मेरे एक मित्र ने एक #सोशल_एक्सपिरेमेन्ट किया ( मैं सोशल मीडिया और बच्चों तथा परिवार पर उसके #परिणाम और #तकनीक द्वारा उसे किस तरह कंट्रोल किया जाए इसपर सेमिनार्स लेता रहता हूँ, स्कूलों में, अभिभावकों के लिए)
हमने 4 फेक आईडी बनाई #शादीशुदा महिलाओं की। #प्रोफाइल में टीवी सीरीयल में काम करने वाली #अभिनेत्रियों के चित्र रखे।
कई पेज़ और ग्रुप में गए।
2 से 4 दिन में फ्रेंड रिक्वेस्ट्स की बाढ़ आई। सबको एक्सेप्ट किया।
इनबॉक्स भरने लगा। कुछ सिर्फ हाय हेलो , फूल पत्ती से शुरू करते थे।
जब हम लोग कई लोगो को कहते कि इनबॉक्स मत करो, तो कहते #फेसबुक पर किसलिए आई हो तब। जैसे लगता था कि ये एक #जंगली कुत्तो का पिंजरा है और यहाँ आने पर ये स्वीकारना ही होगा।
कुछ ने वीडीओ कॉलिंग शुरू कर दी
लगभग सभी #प्रोफाइल्स उनके #धार्मिक चिन्हों से भरी पड़ी थी। बड़े बड़े #सुविचार।
कई बुजुर्ग थे। कई जवान। कई शादीशुदा।
हमने चुनकर 30 लोगों को टारगेट किया। सभी धर्म, उम्र, पार्टियों के लोग थे।
सभी केटेगरी के लोग थे। फोन नम्बर के बदले वो कुछ भी करने को तैयार थे। हमने सबको नँगा करवाया ऑनलाइन।
जो जो बोला सब किया सभी ने।
सबके सर्च की आदतें जानीं। कीवर्ड्स गजब के मिले।
फोन नम्बर दिया, एप द्वारा आवाज और नम्बर चेंज। सभी को लगा लाइफ सेट फेसबुक से अब तो।
#पैसे भी भेजने को तैयार। हम उनसे उनके फेंटेसी के बारे में उकसाते। जानबूझकर उन्हें उनके परिवार के बारे में फेंटेसी के लिए कहते। एक भी आदमी ने ना नहीं कहा। अपनी माँ, बहन, बेटी,भाभी, बहु, चाची, ताई कोई भी रिश्ता उनके अंतर्मन में मात्र एक देह साबित हुई।
हम और आगे जाकर ब्लात्कार के बारे में बात करते। वे उसमे भी सुख लेना चाहते थे।
ये सब #अलार्मिंग था। स्थिति यहाँ तक आ चुकी थी कि उकसाने पर वे किसी अबोध बच्ची को कैमरे के सामने शोषण करने के लिए तैयार हो जाते।
हम लोग टूट गये और सारे #एकाउंट डिलीट कर दिया।
सबको खूब आईना हमने दिखाया उसके बाद , असलीयत बताकर। कुछ शर्मिंदा हुए, कुछ ढीट खुद को सही साबित करने में लगे रहे।
लेकिन सब डरे हुए थे क्योंकि उन्हें लगता था उनके वीडियो हमारे पास थे।
ये आपमे से कोई भी करके देख ले, #रिजल्ट आज भी यही आएगा।
देश मे जिस तरह घर घर #पोलियो ड्राप के लिए आज भी लोग जाकर मुहिम चलाते हैं, सरकार को घर घर जाकर काउंसिलिंग करवानी चाहिए। परमानेंट। ये भी पोलियो ही है।
अपने बच्चों को GPS से लैस कर दो। जरा भी शक होने पर ढूंढ लो।
हर घर के हर #पुरूष को पोलियो ड्राप पिलाने की तरह हर हफ्ते #काउंसिलिंग करवाओ। बजट बनाओ ,कहीं से भी पैसे लाकर। उन्हें बताओ तरीके बीमारी से कैसे बाहर आ सकते हो।
बाकी कोई #मोर्चा #आंदोलन से कुछ नहीं होगा।


अगर आप यह जवाब पूरा पढ़ रहे हैं और आपको लगता है कि इस सामाजिक प्रयोग के नतीजे समाज को थोड़ा बहुत आत्मचिंतन पर मजबूर करेंगे तो इसे शेयर और upvote करना न भूलें।
धन्यवाद।

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