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यदि कहीं कोहनी टकरा जाए तो करंट सा क्यों लगता है

कोहनी के टकराने पर करंट क्यों लगता ...

 मनुष्य कई बार ठोकर खाता है, अक्सर किसी ना किसी चीज से टकरा जाता है। हमारे शरीर का कोई भी हिस्सा यदि किसी से टकरा जाए तो उस हिस्से में एक दर्द होता है, चोट का एहसास होता है परंतु यदि हाथ की कोहनी का एक विशेष भाग किसी भी चीज से टकरा जाए तो करंट का एहसास होता है। झनझनाहट महसूस होती है। एक अजीब सी अनुभूति होती है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है, जबकि कोहनी भी तो शरीर का ही एक हिस्सा है।  आइए इसका जवाब जानने की कोशिश करते हैं:-

कोहनी की जिस हड्डी के टकराने से करंट का एहसास होता है, उसे क्या कहते हैं

फ़ैज़ाबाद के शास्वत मिश्रा बताते हैं कि कोहनी की जिस हड्डी के कहीं टकराते ही हमें तेज करंट लगता है या हंसी सी आती है, उसे सामान्य बोलचाल में फनी बोन कहा जाता है। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में बात करें तो फनी बोन असल में अल्नर नर्व (तंत्रिका) होती है। यह नर्व हमारी गर्दन (कॉलर बोन), कंधे और हाथों से होते हुए जाती है और कलाई के पास से बंटकर अनामिका (रिंग फिंगर) और छोटी उंगली पर खत्म होती है। यहां पर आपको बताते चलते हैं कि नर्व्स का काम मस्तिष्क से मिलने वाले संदेशों को शरीर के बाकी अंगों तक लाना, ले जाना होता है।


शरीर के संपूर्ण तंत्रिका तंत्र की तरह अल्नर नर्व का भी ज्यादातर हिस्सा हड्डियों, मज्जा और जोड़ों के बीच सुरक्षित होता है लेकिन कुहनी से गुजरने वाला हिस्सा केवल त्वचा और फैट से ढका होता है। ऐसे में जैसे ही कुहनी कहीं से टकराती है तो सीधे इस नर्व पर झटका लगता है। इसे दूसरी तरह से कहें तो फनी बोन पर चोट लगने का सीधा मतलब है अल्नर नर्व का हड्डी और उस बाहरी चीज, जिससे वह टकराती है, के बीच दब जाना। सीधे नर्व पर पड़ने वाला यह दबाव आपको एक तेज झनझनाहट, गुदगुदी और दर्द का मिलाजुला अनुभव देता है। यही वजह है कि कोहनी पर कभी भी, कैसे भी चोट लगे, हर बार आपको उतना ही अजीब महसूस होता है।

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