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छींक आने पर मनुष्य की आँखें बंद क्यों हो जातीं हैं

क्यों बंद हो जाती है छींकते समय आँखे ...

 8 साल का बच्चा हो या 60 साल का अनुभवी व्यक्ति, यदि उसे छींक आती है तो उसकी आंखें अपने आप बंद हो जाती हैं। पलक झपक जाती है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है। भारत के बुजुर्ग कहते हैं कि छींकते समय यदि आंखें बंद नहीं की तो आंखों की पुतलियां निकल कर गिर सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के प्रोफेसर डॉ रॉबर्ट नेक्लेरिओ का दावा है कि छींक का आंखों से कोई रिश्ता नहीं होता। काफी प्रेक्टिस के बाद कुछ वैज्ञानिकों ने आंखें खुली रख कर छींककर बताया लेकिन फिर भी मनुष्य के शरीर की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसके पीछे कोई ना कोई लॉजिक तो होगा। आइए जानते हैं:-

मनुष्य को छींक क्यों आती है

सत्याग्रह की पत्रकार एवं ब्लॉगर सुश्री अंजलि मिश्रा बतातीं हैं कि इसका कारण समझने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि हमें छींक क्यों आती है। होता यूं है कि सांस लेने के रास्ते में जब कोई बाहरी कण जैसे धूल या महीन रेशा वगैरह अटक जाता है तो उसे साफ करने के लिए शरीर जो प्रक्रिया अपनाता है वह छींकना कहलाती है। जब इस तरह का कोई अवरोध श्वासनली में अटकता है तो दिमाग की ट्राइजेमिनल नर्व (तंत्रिका) को अव्यवस्था का एक संदेश जाता है। इसके बाद दिमाग शरीर को यह अवरोध हटाने का आदेश देता है जिसकी प्रतिक्रिया में फेंफड़े ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन इकट्ठी कर उसे जोर से बाहर निकालते हैं। दबाव के साथ हवा बाहर निकलने के चलते अवरोध पैदा कर रहे घटक भी बाहर चले जाते हैं।

झींकते समय आंखें बंद क्यों हो जातीं हैं

जहां तक छींकने के दौरान पलकें झपकने का सवाल है इसके लिए वैज्ञानिक ट्राइजेमिनल नर्व को ही जिम्मेदार बताते हैं। ट्राइजेमिनल नर्व, तंत्रिका तंत्र का वह हिस्सा होती है जो चेहरे, आंख, नाक, मुंह और जबड़े को नियंत्रित करती है। दरअसल छींकने के दौरान अवरोध हटाने का दिमागी संदेश यह तंत्रिका आंखों तक भी पहुंचा देती है और इसकी प्रतिक्रिया में ही हमारी पलकें झपक जाती हैं। यानी कि छींकने के समय पलकों के झपकने का कोई खास मतलब है नहीं। इसलिए जरूरत पड़ने पर इससे जुड़े मिथकों को छोड़ें और जब भी छीकें बस रूमाल थामकर छींकें

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