ग्वालियर ।मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ की युगल पीठ में सोमवार को नगर निगम ने नामांतरण शुल्क के मामले में अपना जवाब पेश कर दिया। नगर निगम की ओर से तर्क दिया गया कि प्रशासक ने नामांतर शुल्क के नियम में संसोधन कर दिया है। शल्क की राशि 5 हजार से घटाकर 2 हजार रुपये कर दिए हैं। अगर व्यक्ति खुद विज्ञापन छपवाना चाहता है तो वह प्रकाशित कराकर नगर निगम में कॉपी पेश कर सकता है। जिस उद्देश्य से याचिका दायर की गई थी, वह पूरा हो गया है। हाई कोर्ट ने निगम का तर्क सुनने के बाद अगले हफ्ते सुनवाई की तारीख निर्धारित की है।
सामाजिक कार्यकर्ता रामभरोसे शर्मा ने जनहित याचिका दायर कर नामांतरण शुल्क वसूली के नगर निगम के फैसले को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता का कहना है कि नगर निगम ने नामांतरण के नाम पर 5 हजार रुपये शुल्क जमा कराना शुरू किया है। नगर पालिका अधिनियम के तहत इस तरह के टैक्स लगाने का अधिकार निगम के पास नहीं है, लेकिन निगम ने शहर में वसूली शुरू कर दी है। वर्ष 1991 में नगर निगम ने नामांतरण शुल्क लगाया था। इस फैसले को उस वक्त हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने नामांतरण शुल्क की वसूली के आदेश को निरस्त कर दिया था। जब हाई कोर्ट एक आदेश को निरस्त कर चुका है, उसके बाद फिर से उसी शुल्क को कैसे लगाया जा सकता है। कोर्ट ने इस मामले में अंतरिम आदेश पारित कर अलग खाते में नामांतरण शुल्क का पैसा जमा कराने का आदेश दिया था। यदि हाईकोर्ट नगर निगम की टैक्स वसूली को अवैध ठहराते हुए निरस्त करता है तो पूरा पैसा लौटाना पड़ेगा। इससे जनता को पैसा लौटाने में आसानी होगी। नगर निगम के अधिवक्ता दीपक खोत ने ने प्रशासन के संसोधन फैसले की जानकारी कोर्ट में दी। जिस उद्देश्य से याचिका लगाई गर्ई थी, पूरी हो गई है।
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