जैन साध्वियों ने शिवपुरी से किया पदविहार, समाज ने अगले चार्तुमास की उनसे की विनती
शिवपुरी। जब तक जीवन में ज्ञान नहीं है, तब तक पुण्य कार्य भी पाप के कारण बन जाते हैं। ज्ञान से ही जीवन में धर्म का जन्म होता है। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी हेमप्रभा श्रीजी ने आराधना भवन में श्रृद्धालुओं को संबोंधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर उन्होंने बहिर आत्मा और अंतर्रात्मा का अंतर भी बताया। प्रवचन के पश्चात जैन साध्वियों के सानिध्य में पाश्र्वनाथ जैन मंदिर में दादा गुरूदेव का पूजन हुआ। जिसके लाभार्थी शिखरचंद्र कोचेटा परिवार रहे। शाम साढ़े 4 बजे जैन साध्वियों ने शिवपुरी से ग्वालियर की ओर पदविहार कर दिया।
जैन साध्वी हेमप्रभा श्रीजी ने अपने उदबोधन में बताया कि जब तक धार्मिक क्रियाएं धर्म से युक्त नहीं है, तब तक उनका कोई अर्थ नहीं है। व्रत, उपवास, सामायिक और प्रतिक्रमण करने से सिर्फ अहंकार की ही पुष्टि होगी। इसीलिए जीवन में अच्छे कार्य करने से पहले ज्ञान तत्व को जानना और समझना अत्यंत आवश्यक है। साध्वी हेमप्रभा श्रीजी ने बताया कि बहिर आत्मा से प्रभावी लोगों की दृष्टि सिर्फ बाहर पर केन्द्रित होती है। उनसे परिचय पूछा जाए तो कोई कहता है, दुकानदार, कोई अधिकारी तो कोई अपने आप को डॉक्टर, वकील और जज बताता है। लेकिन यह असली परिचय नहीं है। बहिर दृष्टि वाला सिर्फ संसार सृजन करने में ही संलग्र रहता है। जबकि अंतर्रात्मा से प्रभावी लोग अपनी बाहरी पहचान से अविचलित रहते हैं और समझते हैं कि उनका असली परिचय उनकी आत्मा से है। शरीर तो यहीं पड़ा रह जाता है। लेकिन आत्मा की अनंत जन्मों की यात्रा होती है। जिसका न तो जन्म होता है और न ही मृत्यु। चाहें तो आत्मा का हम उत्थान कर सकते हैं और चाहें तो पतन। लेकिन जीवन का चरम लक्ष्य मौक्ष है।
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जैन साध्वी जी ने यह भी बताया
सूर्य दिन में तपता है और शाम को अस्त होते समय उसकी तपन कम होती जाती है। उसी तरह से जवानी में भले ही गुस्सा आए लेकिन जीवन के उत्तराध में व्यक्तित्व में शीतलता आनी चाहिए।
ताश के पत्ते फेंटकर जिस तरह से वितरित किए जाते हैं, उसी तरह से परमात्मा ने सभी को अलग-अलग ताश के पत्ते दिए और उन पत्तों को ही अपनी नियती मानकर हमें अपना कार्य करना चाहिए। जिंदगी में भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता।
घर से निकलते समय क्रोध नहीं करना चाहिए और न ही घर में प्रवेश करते समय क्रोध करना चाहिए। भोजन भी हमें प्रसन्नचित अवस्था में करना चाहिए।
सकारात्मक सोच से ही जीवन सरस बनता है। हर घटना में हमें नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक सोच रखना चाहिए।
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