प्रेम और आनंद से बना नाम उनका..
हर किसी के आनंदित कर दे ऐसा होता हर काम उनका।
संस्कृत के श्लोंको के साथ साथ ,
हमें वो जीवन का पाठ भी तो पढा़ते हैं।
हर किसी से प्रेम व्यवहार कर ,
जरूरत के वक्त सबकी मदद करके,
जीवन के हर दुख में भी मुस्कुराकर,
जीवन का महत्व हमें बताते हैं।
सहने को तो सब कुछ सह जाते हैं,
पर बात आत्मसम्मान की हो तो,
शांत कहाँ वो रह पाते हैं..!!
अपने नाम के अनुरूप दुनिया,
में प्रेम और आनंद फैलाते हैं।
अपने आप सदा जैसे हैं वैसी ही ,
दिखाना उन्हें अच्छा लगता है ।
दिखावा करना नाही कभी उनको भाता है।
और ना ही कभी दिखावा करने की उनकी चाहत है।
किसी का दुख उनसे देखा नहीं जाता,
हर किसी की मदद हेतु तत्पर रहना उनकी आदत है। कभी प्यार से तो कभी डाँट कर ,
कभी गुस्से से तो कभी मजाक मजाक में ही,
हमें पढा़ते रहते हैं।
अपने बच्चों की तरह हमें हमारी लाख गलतियों पर भी सिखाते रहते हैं ।
ना जाने और ऐसे और कितने गुन हैं उनके अंदर समायें,
निशब्द हूँ उनके प्रेम और ज्ञान के आगे,
लिखते लिखते कम पड़ जाये कागज और स्याही ...
और नाही उनके गुणों का वर्णन मेरे शब्दों से हो पाये।।
जितने भी लूँ जन्म इच्छा यही है ,
कि हर जन्म में आप मेरे गुरू बन कर आयें।
अपने आदरणीय प्रेमानंद सर जी जिनसे होता सिखना अपना शुरू जी..
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ मेरे प्रिय गुरू जी।
–बबीता
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