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जिसका मुझे था इंतजार, जिसके लिये दिल था...

जिसका मुझे था इंतजार, जिसके लिये दिल था...

                  श्रीगोपाल गुप्ता

'जिसका मुझे था इंतजार, जिसके लिये दिल था बेकरार.... वो घड़ी आ गई.. आ गई। सातवें दशक के सन् 1978 में अमिताभ बच्चन और जीनत अमान को लेकर बनी सुपर हिट "डाँन" फिल्म का यह गाना आज अचानक सम्पूर्ण देश के विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कांग्रेसियों के जुवान पर आ गया है और छा भी गया है। कारण है कांग्रेस का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक मगर निहायत ही 'रिस्की दांव भी, अगामी लोकसभा चुनाव 2019 को देखते हुए प्रियंका गांधी को भारतीय राजनीति में सीधे तौर पर उतारना। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गत दिवश अचानक मगर गुप्त रुप से एक विज्ञप्ति जारी कर प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव घोषित करते हुये सनसनी फैला दी। प्रियंका गांधी जिनका वरास्ता कांग्रेस के देश की राजनीति में उतारने की मांग लगभग देश का प्रत्येक कांग्रेसी लम्बे समय से कर रहा था। उसकी मांग थी कि यदि इस बुरे समय में कांग्रेस और देश को बचाना है तो पूर्व प्रधानमंत्री और दबंग कांग्रेसी इंदिरा गांधी जैसी दिखने वाली उनकी पोती और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी और यूपीऐ की चेयरपर्सन सोनिया गांधी की पुत्री और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी बाड्रा को राजनीति में लाना ही होगा। इंदिरा गांधी की शक्ल से मिलती प्रियंका की शक्ल और उनके हावभाव और जनता से मिलकर तुरंत घुलमिल कर अपना आंतरिक रिस्ता कायम कर लेने वाली प्रियंका ही कांग्रेस का खोया जनाधार वापिस ला सकती हैं। ऐसे में जब कांग्रेस अपने गढ़ रहे उत्तर प्रदेश में बहुत ही बुरी स्थिति में है और कांग्रेस को दरकिनार करते हुये बहुजन समाज पार्टी की मुखिया सुश्री मायावती और समाजवादी पार्टी सुप्रीमों अखिलेश यादव ने अगले लोकसभा चुनाव साथ में लड़ने के लिये कांग्रेस से इतर अपना गठबंधन कायम कर लिया है और अभी भी तमाम कयासों के बीच भाजपा दिग्गज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का करिस्मा अभी भी कुछ हद तक कायम है। उसका सामना करने के लिए अब कांग्रेस के पास प्रियंका गांधी बाड्रा को मैदान में उतारने के अलावा कोई बिकल्प कांग्रेस के पास बचा ही नहीं है। ऐसे में यह जरुरी हो गया था कि कांग्रेस अपने तुरुप के पत्ते को सामने लाये और सन् 1999 से अभी तक उत्तर प्रदेश के अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीटों तक अपने भाई राहुल गांधी व मां सोनिया गांधी के प्रचार-प्रसार तक सीमित प्रियंका के प्रचार-प्रसार के  दायरे को बढ़ाकर विस्तृत रुप दे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गत दिवश अचानक सनसनी फैलाते हुये प्रियंका को पार्टी का महासचिव बनाते हुये पूर्वी उत्तर प्रदेश जहां 43 लोकसभा सीट हैं, जिनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बनारस और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर लोकसभा सीट भी शामिल है, का प्रभारी घोषित कर दिया।

देश की 134 साल पुरानी कांग्रेस के 100 वर्ष पुराने नेहरु-गांधी परिवार की 12 वे सदस्य के रुप में भारतीय राजनीति में सीधे तौर पर आने वाली प्रियंका गांधी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उनकी शक्ल अपनी दादी व देश की सबसे दबंग प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलती-जुलती है। इतना ही नहीं उनके हाव-भाव, चलने का तरीका, सार्वजनिक सभाओं और जनता के बीच सूती की साड़ी पहनना व जनता के बीच सादगी के साथ जाकर जनता से तत्काल घुलमिल जाना और चिर-परिचित मोहक मुस्कराहट में भी इंदिरा गांधी का प्रतिबिंव दिखाई देता है। प्रियंका भी इंदिरा गांधी की तरह कम बोलती हैं मगर मौके पर बोलना नहीं भूलती, वे भी अपने राजनीतिक विरोधियों को शलीके के साथ जबाव आक्रमण के अंदाज में बिलकुल इंदिरा गांधी की शैली में ही देती हैं ।प्रियंका गांधी कहती भी हैं कि मेरी दादी कहती थीं कि जब-जब उनके परिवार पर राजनीतिक हमले हुये तब-तब उनका परिवार मजबूती के साथ खड़ा हुआ है और उन्होने लड़ना भी अपनी दादी इंदिरा गांधी से ही सीखा है। बहरहाल प्रियंका गांधी के राजनीति में आने पर जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा का वही घिसा-पिटा और पुराना हो चुका परिवार बाद का लेबल बिना कोई नाम लिये चुपकाने का काम किया है तो वहीं जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने प्रियंका गांधी को बधाई देते हुए उनके आगमन को साकारत्मक दृष्टींकोण बताया और उम्मीद जाहिर की है कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस को फायदा पंहुचेगा। मगर इसके साथ अब अगामी लोकसभा चुनाव में यह देखना भी काफी दिलचस्प रहेगा कि पूर्वाचल उत्तर प्रदेश ने जिसने आठ प्रधानमंत्री देश को दिये हैं ,जिसमें छह कांग्रेस के, एक वीपी सिंह व भाजपा के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शामिल हैं।आज कांग्रेस के लिये बंजर भूमि हो चुका 43 लोकसभा सीट वाले इस क्षेत्र में कांग्रेस मात्र राहुल गांधी के रुप में अमेठी और सोनिया गांधी के तौर पर रायबरेली में ही जिंदा है।यदि पूरे उत्तर प्रदेश की और देखा जाय तो वहां भी कांग्रेस दूर तलग कीर्तन में गायब है। ऐसे प्रियंका गांधी और उनके साथ ही महासचिव बनाये गये पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश के युवाओं की धड़कन ज्योतिरादित्य सिंधिया जिन्हें पश्चिम उत्तर प्रदेश का प्रभार देकर 37 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराने की जिम्बेदारी सौंपी गई है ,क्या करिस्मा कर दिखाते हैं? क्योंकि समय और दम दोनों बहुत कम हैं।उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में मध्यप्रदेश में भाजपा को हराकर कांग्रेस को स्थापित करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस का लोकप्रिय चेहरा हैं।

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