Wednesday, 02 January 2019 08:04 AM
नई दिल्ली:
कुम्भपर्व का मूलाधार पौराणिक आख्यानों के साथ-साथ खगोल विज्ञान भी है. ग्रहों की विशेष स्थितियां कुम्भपर्व के काल का निर्धारण करती हैं. कुम्भपर्व एक ऐसा पर्व विशेष है जिसमें तिथि, ग्रह, मास आदि का अत्यन्त पवित्र योग होता है. कुम्भपर्व का योग सूर्य, चंद्रमा, गुरू और शनि के सम्बध में सुनिश्चित होता है. ऐसे में कुंभ में स्नान करना अत्यंत लाभप्रद माना बताया गया है. शरीर की शुद्धि के लिए मुख्य चार प्रकार के स्नान बताएं गए हैं. जिनके नाम हैं भस्म स्नान, जल स्नान, मंत्र स्नान और गोरज स्नान.
आग्नेयं भस्मना स्नानं सलिलेत तु वारुणम्।
आपोहिष्टैति ब्राह्मम् व्याव्यम् गोरजं स्मृतम्।।
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मनुस्मृति के अनुसार भस्म स्नान को अग्नि स्नान, जल से स्नान करने को वरुण स्नान, आपोहिष्टादि मंत्रों द्वारा किए गए स्नान को ब्रह्म स्नान तथा गोधूलि द्वारा किए गए स्नान को वायव्य स्नान कहा जाता है.
प्रयागराज में स्नान करना माना गया है महत्वपूर्ण
कहा जाता है प्रयागराज के पवित्र स्थान पर सबसे पहले भगवान ब्रह्मा जी ने पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए हवन किया था. तभी से इसका नाम प्रयाग पड़ गया. मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि कुंभ के पावन सम्मेलन में पुण्यलाभ अर्जित करने का अवसर केवल उन भाग्यशालियों को ही प्राप्त होता है जिन पर महाकाल बाबा भोलेनाथ की कृपा होती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार पवित्र नदियों में स्नान करना महान पुण्यदायक माना गया है. शास्त्रों की मान्यता है कि इनमें स्नान करने से पापों का क्षय होता है.
त्रिवेणी संगम
भारत की तीन महान धार्मिक नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है. जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है. यहां के स्नान को सबसे पवित्र बताया गया है.
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