शिवपुरी। अब तो मतदान हो चुका है। वोट प्रभावित नहीं होंगे। अत: अब यह संदेह जताया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा से टिकट लेकर चुनाव मैदान में उतरे चौकीदार डॉ केपी यादव रुसल्ला दरअसल एक डमी कैंडिडेट थे। इस संदेह को पुख्ता करने के लिए पर्याप्त प्रमाण एवं तर्क भी उपस्थित हैं। शिवपुरी एवं पिछोर विधानसभा की ज्यादातर पोलिंग पर केपी यादव का पोलिंग ऐजेंट तक तैनात नहीं किया गया था। हालात यह थे कि केपी यादव ने भाजपा के जिलाध्यक्ष सुशील रघुवंशी के निवास वाली पोलिंग तक पर ऐजेंट नियुक्त नहीं किया था। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने भाजपा नेताओं से व्यक्तिगत स्तर पर कोई बातचीत नहीं की। निष्क्रीय भाजपा नेताओं की प्रदेश चुनाव समिति के सामने कोई शिकायत नहीं की। पार्टी से मिले चुनाव प्रचार फंड में भी गोलमाल की खबरें आ रहीं हैं।
क्या बसपा की तरह बीजेपी कैंडिडेट भी फिक्स था
विधानसभा चुनाव में केपी यादव ने सिंधिया से बगावत की थी। वो मुंगावली से टिकट चाहते थे परंतु नहीं मिला तो बागी हो गए। लोकसभा चुनाव के लिए केपी यादव के नाम का विचार तक भाजपा कार्यकर्ताओं के जहन में नहीं था। अचानक दिल्ली में नाम चलना शुरू हुआ और टिकट भी फाइनल हो गया। चुनाव प्रचार के बीच बीएसपी उम्मीदवार लोकेंद्र सिंह राजपूत अचानक कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कहा जा रहा है कि लोकेंद्र सिंह राजपूत तो पहले से ही सिंधिया समर्थक थे। खास रणनीति के तहत सिंधिया ने उन्हे बसपा का टिकट दिलाया और फिर इस तरह सरेंडर करवाया कि मायावती के पास कोई रास्ता ही ना बचे। सवाल यह है कि क्या केपी यादव के साथ भी ऐसी ही कोई फिक्सिंग हुई है।

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