मप्र के खाद्य मंत्री प्रधुम्न सिंह तोमर ने गत दिवश मुरैना में किसानों से समर्थन मूल्य पर सरसों, गेहूं आदि खाद्यों को खरीदने वाले सोसायटी,मार्केटिंग सोसायटियों व कृषि मण्डी का निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होने पाया कि तमाम सरकारी आदेशों के बावजूद मजबूर और लाचार अन्नदाता किसानों के साथ किस तरह खुली लूट का गोरख धंधा धड़ल्ले से चल रहा है, जो अत्यंत ही लज्जाजनक और शर्मशार कर देने वाला है। निरीक्षण के दौरान उन्होने पाया कि कहीं तौल से 400 ग्राम तो कहीं-कहीं दो-दो किलो पूरी बेईमानी के साथ सरसों खरीदी जा रही है। इससे यह साफ हो गया कि किसान जो कई वर्षों से खरीदी केन्द्र के कर्मचारी और अधिकारियों पर तौल में बेईमानी का जो आरोप लगा रहे थे वो बिल्कुल सत्य थे और उनके साथ हकीकत में ठगी का गंदा खेल खेला जा रहा है। 52 किलो के सरसों के बौरे का पचास किलो की तोल में धड़ल्ले से लिया जा रहा है। हालांकि मत्रीं जी के आदेश पर क्लेक्टर प्रियंका दास ने तत्काल सोसायटी प्रबंधक दीनबंधु तोमर को सस्पेंड कर एफ आई आर दर्ज कराने के निर्देश दिए। इसके अलावा भी उन्होने और भी कई पर छापे-मारी जैसी कार्यवाही को अंजाम दिया। इसके अलावा खाद्य मंत्री ने जिला कलेक्टेरेट में आयोजित समीक्षा बैठक में भी हिस्सा लिया।
उस बैठक में निकल कर आया कि सरकार और गरीब जनता के बीच सार्वजनिक वितरण प्रणांली के तहत बटने वाला खाद्यान्न 799 किंवटल का तीन महिने से मेल नहीं खा रहा है कि आखिरकार इतना बड़ा अंतर क्यों? किसी बड़े घोटाले की आंशका को देखते इसके लिए जांच के आदेश दिये हैं। इसका अलावा भी कई महत्वपूर्ण बिंदुयों पर चर्चा कर आदेश पारीत किये गये। यहां महत्वपूर्ण यह है कि आखिर कितने दिनों तक मंत्री जी छापा-मारी ओर अचानक निरीक्षण करते रहेंगे? आखिर कब तक वे किसानों से बेईमानी करने वालों के खिलाफ निलंबन और एफ आई आर के आदेश देते रहेंगे? यह कोई स्थाई व्यवस्था तो है नहीं। फिर वे अधिकारी कहां हैं? जिनको यह जिम्मेदारी से नवाजा गया कि वे मौके पर देंखे की अन्नदाता किसानों के साथ कोई ठगी या फिर बेईमानी की घटना न हो सके। जब मंत्री जी केवल एक दफा के निरीक्षण में बेईमानी का खेल आसानी से पकड़ सकते हैं तो वे अधाकारी क्यों नहीं पकड़ पा रहे हैं। दरअसल ये सारा खेल मिलकर खेला जा रहा है। नहीं तो क्या कारण हैं कि सोसायटी प्रबंधक व उसके होते -सोतों के खेत की क्षमता से सरसों सरकारी ऊंची कीमत पर खरीदी जा रही है। खेत की क्षमता 50 किंवटल सरसों है और सोसायटी पर खरीद के दौरान 200-250 किंवटल हो रही है। सब मिलकर सरकार को अरबो का चूना लगा रहे हैं। मंत्री जी और राज्य सरकार को इस फर्जी खरीद को भी संज्ञान में लेना चाहिए कि आखिर ये टनों सरसों आ कहां से रही है? क्या वास्तव में यह सरसों मप्र की पैदावार और किसानों की है या फिर भ्रष्ट अधिकारी और बेईमान व्यापारीयों की अन्य राज्यों से लाई जा रही सरसों है? राज्य की सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आखिर इन बेईमानों का ईलाज क्या है
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