श्रीगोपाल गुप्ता
कांग्रेस ने मप्र में लोकसभा चुनाव -2019 के समर में उतरते हुये जिस चतुराई और चालाकी से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को काफी पहले भोपाल से मैदान में उतारा, उससे भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्यंम सेवक संघ के केन्द्रीय नेताओं की बांछे खिल गई! उनको लगा कि यही सही समय है, जब कांग्रेस में संघ के खिलाफ कठोर विरोध करने वाले दस्ते का नेतृत्व करने वाले दिग्विजय सिंह को भोपाल में ही घेर लिया जाये! चूंकी भोपाल भाजपा का अभेद किला है तो संघ की हिन्दुत्व की प्रयोगशाला है, इसलिये शीर्ष नेतृत्व को लगा की भोपाल लोकसभा क्षेत्र से दिग्विजय सिंह को हराना काफी आसान और सहज होगा। मगर जब भाजपा के प्रदेश के कद्दावर नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सुश्री उमा भारती और बाबूलाल गौर ने भी दिग्विजय सिंह से दो-दो हाथ करने से स्पष्ट इनकार कर दिया और संभावित उम्मीदवारों का सिलसिला करीब एक माह तक चला तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के माथे पर सिलवटें उभर आंई। मगर भोपाल को अपनी हिंदुत्व की प्रयोगशाला समझने वाला संघ आगे आया और उसने कांग्रेस विशेषकर दिग्गी राजा को परास्त करने के लिए धुर्बीकरण का खेल खेलते हुये सन् 2008 में मालेगांव बलास्ट की मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार घोषित कर दिया। चूकी भोपाल में 19.50 लाख मतदाताओं में से साढ़े चार लाख मुस्लिम मतदाता हैं और दिग्विजय सिंह अनेक मौकों पर मुस्लिम हितों की बात करते आये हैं, इसलिये भाजपा और संघ को विश्वास था कि यहां आसानी से मुस्लिम-हिंदू करके आसानी से धुर्बीकरण किया जा सकता है!मगर अब जब भोपाल पूरी तरह से चुनावी रंग में रंग गया है, तब लग रहा है कि संघ की मंशा धरासायी हो रही है, क्योंकि दिग्गी की चालाक रणनीति के कारण कोई धुर्बीकरण की हवा न बनकर चुनाव हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व बनकर सामने आया है।
हालांकि जमानत पर रिहा मालेगांव बम बलास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने अपनी उम्मीदवारी का ऐलान होते ही भोपाल आगमन पर 26/11 के मुंबई आंतकवादी हमले में आंतकियों की गोलियों के शिकार होकर शहीद हुये अशोक -चक्र से सम्मानित हेंमत करकरे को बुरा कहते हुये अपने श्राप की बजह मरना बताया, उससे महाराष्ट्र सहित पूरे देश में भारी हो-हल्रा होने लगा। बड़ी साफो-सफाई, मांफी इत्यादि मांग कर ठाकूर और भाजपा ने अपनी जान छुड़ाई ही थी कि कभी शिवराज सिंह चौहान सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री कंप्यूटर बाबा आ धमके! नामदेव उर्फ कंप्यूटर बाबा 'राम मंदिर नहीं तो मोदी सरकार नहीं' के नारे के साथ करीब डेढ़ हजार साधूओं के साथ लेकर भोपाल आकर दिग्विजय सिंह के समर्थन में कूंद गये। भोपाल में उन्होने अपने करीब डेढ़ हजार साधुओं के साथ भारी गर्मी में अपने चारो तरफ जलते कंडे लगाकर धूनी जमा ली और हठयोग सहित कई योगों अंजाम दिया। इतना ही नहीं कंप्यूटर बाबा ने अगले दिन 9 मई को भोपाल की सड़कों पर दिग्विजय सिंह को प्रज्ञा ठाकूर से बड़ा हिन्दू बताते हुये मतदाताओं से उन्हें जिताने की अपील की। दरअसल जब प्रज्ञा अपना नामांकन भरने गई तो साथ में साधुओं का जमावाड़ा साथ ले ग ई। उसी समय दिग्गी राजा ने तय कर लिया था कि भाजपा और संघ की धुर्बीकरण करने की कोशिशों को नाकाम करना है तो कांग्रेस की तरफ से भी संतों का बड़ा जमाववाड़ा होना आवश्यक है। बैसे भी दिग्गी राजा को राजनीतिक का चाणक्य कहा जाता है। इसलिये भोपाल भाजपा में भी उनके समर्थकों की बड़ी संख्या है, इसी को देखते हुए संघ ने भाजपा के दिग्गजों को किनार कर खुद को प्रज्ञा ठाकूर को जिताने में झोंक दिया है। बहरहाल कोन किसको मात देगा और कोन जीतेगा? यह तो 23 मई को जाना जा सकेगा, मगर दिग्गी राजा ने अपनी एक चाल से चुनाव को हिंदू-मुस्लिम होने के बजाय हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व पर ला खड़ा कर दिया। सन् 89 से निर्विवाद जीतती आ रही भाजपा के सामने दिग्विजयी सिंह कड़ी चुनौती तो हैं।

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