फॉल आर्मी वर्म एक बहुभक्षी कीट है, यह 80 से अधिक प्रकार की फसलों की क्षति करता है। इस कीट का मक्का सबसे पंसदीदा फसल है। इसके साथ ही यह कीट ग्रेमिनी कुल की फसलों जैसे-ज्वार, बाजरा, धान आदि को क्षति पहुंचाता है। किसान भाई मक्का बीज की बोनी से पहले सायनट्रेनिलीप्रॉल 19.8 प्रतिशत एवं थायोमिथॉक्जाम 19.8 प्रतिशत को 4 मि.ली.प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास ने बताया कि यह कीट झुंड में आक्रमण कर पूरी फसल को कुछ ही समय में नष्ट करने की क्षमता रखता है फालआर्मी वर्म का जीवन चक्र ग्रीष्मकाल में लगभग 30 दिनों का होता है, बसंत एवं शरद ऋतु में 60 दिनों का होता है। इस कीट की प्रजनन क्षमता भी बहुत ज्यादा है। मादा कीट अपने जीवनकाल में करीब 1.5 से 2 हजार अण्डे दे सकती है। पड़ोसी राज्यों में इस कीट के प्रकोप को देखते हुए मध्यप्रदेश में भी प्रकोप होने की प्रबल संभावना है। अण्डों से निकली छोटी-छोटी इल्लियां पत्तियों के हरे भाग को खुरच-खुरच कर खाती हैं। इल्लियां पौधों की पोगली के अंदर छुपी रहती हैं। बड़ी इल्लियां पत्तियों को खाकर उसमें छोटे से लेकर बडे़-बड़े गोल छेद कर नुकसान पहुंचाती है। इल्लियां की विष्ठा भी पत्तियों पर साफ दिखाई देती है। बड़ी अवस्था की इल्लियां भुट्टों एवं मंजरियों को भी खाकर नुकसान पहुंचाती है।
उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास ने बताया कि यह कीट झुंड में आक्रमण कर पूरी फसल को कुछ ही समय में नष्ट करने की क्षमता रखता है फालआर्मी वर्म का जीवन चक्र ग्रीष्मकाल में लगभग 30 दिनों का होता है, बसंत एवं शरद ऋतु में 60 दिनों का होता है। इस कीट की प्रजनन क्षमता भी बहुत ज्यादा है। मादा कीट अपने जीवनकाल में करीब 1.5 से 2 हजार अण्डे दे सकती है। पड़ोसी राज्यों में इस कीट के प्रकोप को देखते हुए मध्यप्रदेश में भी प्रकोप होने की प्रबल संभावना है। अण्डों से निकली छोटी-छोटी इल्लियां पत्तियों के हरे भाग को खुरच-खुरच कर खाती हैं। इल्लियां पौधों की पोगली के अंदर छुपी रहती हैं। बड़ी इल्लियां पत्तियों को खाकर उसमें छोटे से लेकर बडे़-बड़े गोल छेद कर नुकसान पहुंचाती है। इल्लियां की विष्ठा भी पत्तियों पर साफ दिखाई देती है। बड़ी अवस्था की इल्लियां भुट्टों एवं मंजरियों को भी खाकर नुकसान पहुंचाती है।
समन्वित कीट की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु उक्त विधियां अपनाए
किसान भाई गर्मी में खेत की गहरी जुताई कर 250 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर नीम की खली मिलावे, बोनी समय से करें, मक्के के साथ अरहर, मूंग, उड़द आदि की अंतरवर्तीय फसलें लें, हाथों से अंड गुच्छों एवं इल्लियों को नष्ट करें। जैविक नियंत्रण हेतु प्रारंभिक अवस्था में नीम तेल 10 हजार पीपीएम या एनएसके 5 प्रतिशत का एक लीटर छिड़काव करें। जैविक कीटनाशक जैसे विबैरिया, बेसियाना, मैटारायजियम एनीसोपोली या एन.पी.वायरस का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। रासायनिक नियंत्रण हेतु सिन्थेटिक कीटनाशकों में थायोडीकार्प 75 डब्ल्यू पी. 1 किलोग्राम या फ्लूबैन्ण्डामाइट 482 एस.सी.का 150 मि.ली.या क्लोरेन्टनीलीप्रोली 18.5 एस.सी.150 मि.ली. या इमामेक्टीन वेन्जोएट 5 एस.जी. का 200 ग्राम या स्पीनोसेड 45 एस.सी.का 200 मि.ली./हेक्टेयर उपयोग करें। साथ ही जहरीला चुग्गा का प्रयोग करें। इसके लिए 10 मि.ग्राम धान के चोकर में 2 किलोग्राम गुड तथा 2-3 लीटर पानी में 100 ग्राम थायोडिकार्व मिलाकर पौधों की पोंगली में डाले।
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