अखिलेश वर्मा
ये बात सत्य है कि सोना जलता नहीं है । कुछ तथ्य आप के सामने रख रहा हूं ।
ये बात सत्य है कि सोना जलता नहीं है । कुछ तथ्य आप के सामने रख रहा हूं ।
ये सभी जानते है कि श्री हनुमान जी ने लंका को जलाया था । इस बात को विज्ञान के हिसाब से वेद विज्ञान मंडल, पुणे के डॉक्टर वर्तक ने वालमिकी रामायण में वर्णित ग्रहों नक्षत्रों की स्थिति और उन्ही ग्रहों नक्षत्रों की वर्तमान स्थति पर गहन शोध कर रामायण काल को लगभग 7323 ईसा पूर्व अर्थात आज से लगभग 9336 वर्ष पूर्व का बताया था और कार्बन रीडिंग के हिसाब से भी लंका या फिर राम सेतु आज से 7000 ईसा पूर्व ही बनाया गया था ।
सोने की लंका सिर्फ सोने से नहीं बनी थी । उस में और भी कई धातु को मिला कर बनाया गया था । आप को ये भी समझा चाहिए कि जब लंका को जलाया गया तो सोने के साथ और भी अन्य समान भी जैसे कि लोहे का सामान, कपड़े और बहुत सी धातु भी साथ में जल गई थी ।
ये सब जानते है कि सोना तब तक काम आता है जब तक वो शुद्ध हो ।
जैसे कि पहले भी बताया गया है ये घटना को हुए बहुत समय हो चुका है । पता नहीं कितने ही हमले और गुलामी में सब नष्ट होना और उस बात के होने का सबूत होना भी बहुत मुश्किल से आप को मिलेगा पर हमे उन लोगो का धन्यवाद देना चाहिए जिन्होने इतना कुछ हो जाने के बाद भी कुछ ना कुछ सम्भाल कर रखा ।
नोट : इस सवाल को किसी और सवाल के जवाब में पूछा गया था परंतु मैंने इस का जवाब पहले भी लिखा था शायद उन को मेरा जवाब पसंद नहीं आया उन्होंने मेरा जवाब के साथ अपना सवाल भी हटा दिया । इस लिए मैंने इस सवाल को अपने सवाल की सूची में रख लिया ताकि उन सब को भी इस का जवाब मिल सके जो इस के बारे में जानना चाहते है ।
एक और जवाब
यह भी हो सकता हैमहोदय ,आप का प्रश्न है की लंका को जलाने के बाद के उस सोने का क्या हुआ ? जबकी सोना जलता नहीं है ।
एक और जवाब
यह भी हो सकता हैमहोदय ,आप का प्रश्न है की लंका को जलाने के बाद के उस सोने का क्या हुआ ? जबकी सोना जलता नहीं है ।
महावीर हनुमान जी ज्ञानियों में अग्रणी है । अवगुण को छोड़ कर जितने भी गुण है , हनुमान जी उन गुणों में भी सर्वश्रेष्ठ है । हनुमान जी ने रावण की सोने की लंका की लंका को नाही जलाया नाही फूँका । हनुमान जी से रावण की सोने की लंका को भस्म कर दिया था । किसी भी चीज को भस्म करने के लिए उस चीज को जलाना भस्म करने की प्रथम क्रिया है । हमारे यहाँ आर्युवेद में भस्म से दवाइया भी बनाई जाती है ।
आप के प्रश्न का उत्तर तुलसी दास जी ने रामचरित्र मानस की निम्लिखित चौपाई में साफ साफ दे दिया है ।
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास ।अट्ठहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग् आकाश । हनुमान जी जब लंका दहन कर रहे थे तब परमात्मा की कृपा से उनचास प्रकार की हवाएं चली थी । जिनके सहयोग से सोने की लंका जल कर भस्म यानी राख में बदल गयी थी । उन उनचास प्रकार की वायु के अपने अलग अलग गुण थे ,जिनके सहयोग से सोना जल कर राख में बदल गया था । और जब हवा चली तो राख भी उड़ कर लंका के महासागर में मिल गई । कारण चाहे जो भी हो विषय वैज्ञानिक शोध का है , क्यों को वायु को अंरेजी भाषा में गैस भी कहते है और सांस लेने वाले गैस के साथ उनचास प्रकार की और गैसों के सहयोग से सोने की लंका जल कर भस्म हो गई थी । लोगो के अपने अपने तर्क हो सकते है ,हमारा अपना तर्क है सहमत होना या असहमत आप की इच्छा पर निर्भर है ।
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