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पर्यावरण बचाने आदिवासी बनाएंगे सरई के पत्तों से दोने-पत्तल


भोपाल। पर्यावरण बचाने के लिए अब डिस्पोजल दोने-पत्तल की जगह बाजार में सरई के पत्तों से बने दोने-पत्तल उतारे जाएंगे। इसे बनाने का काम आदिवासी करेंगे। सरकार दोने-पत्तल बनाने के उद्योग लगाने के लिए उन्हें एक करोड़ तक की ऋण देगी। ये उद्योग उन क्षेत्रों में लगाए जाएंगे, जहां पर्याप्त मात्रा में सरई के जंगल हैं। वहीं वन विभाग सरई के जंगल तैयार करने के लिए आदिवासी समितियों को भूमि उपलब्ध कराने का काम करेगा। आदिम जाति कल्याण विभाग इस संबंध में पूरी कार्ययोजना तैयार कर रहा है।
प्रदेश के सीधी, सिंगरौली, होशंगाबाद, डिंडोरी, छिंदवाड़ा, मंडला और शहडोल सहित कई जिलों में सरई के जंगल सबसे ज्यादा हैं। इसके पत्ते से आदिवासी दोने-पत्तल बनाकर स्थानीय स्तर पर उपयोग करते हैं, लेकिन व्यावसायिक उपयोग अभी नहीं हो पा रहा है। सरकर अब इसके पत्ते का बने दोने-पत्तल को व्यावसायिक उपयोग करने की तैयारी कर रही है। आदिमजाति कल्याण विभाग का मनना है कि जितने मात्र में सरई के जंगल हैं उसके पत्ते से दोने-पत्तल बनाकर आदिवासी लाखों रुपए कमाई कर सकते हैं। विभाग उन्हें पत्ते से दोने-पत्तल बनाने के लिए प्रशिक्षण और उद्योग लगाने के लिए रियायती दर पर कर्ज उपलब्ध कराने का काम करेगा।

बांस के भी बनाएंगे जाएंगे दोने-पत्तल
जिन आदिवासी क्षेत्रों में बांस की मात्रा ज्यादा है वहां के आदिवासी बांस के दोने-पत्तल बना सकेंगे। बांस के पत्ते तोडऩे की अनुमति वन विभाग द्वारा आदिवासियों को दिया जाएगा। पत्ते तोड़ाई का काम समितियों के माध्यम से तेंदूपत्ता की तर्ज पर करने पर विचार किया जा रहा है। पत्ते और दोने-पत्तल रखने के लिए उन्हें गोदाम बनाने के लिए अनुदान दिया जाएगा। जिससे बारिश में उसे सुरक्षित रखा जा सके।
आदिवासी खुद करेंगे व्यवसाय
आदिवासी इससे बने दोने-पत्तल का व्यवसाय खुद करेंगे। इसे सहकारी समितियों के माध्यम से इसे बजार में उतारा जाएगा। मार्केटिंग सोसायटियां बड़े-बड़े कैटरों से संपर्क कर दोने-पत्तल के लिए ऑडर लेंगी और माल सप्लाइ करेंगे। दोने-पत्तल में फिनिसिंग के लिए आदिवासी विभाग निजी कंपनियों से एमओयू करके आदिवासियों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करेगा।

मैंने सरई के पत्ते से दोने-पत्तल बनाने का उद्योग लगाने के लिए आदिवासियों को आर्थिक सहायता देने का प्रस्ताव दिया है। मंत्री ने सहमति भी दी है। प्रदेश में सरई के पर्याप्त मात्रा में जंगल हैं। आदिवासी क्षेत्रों में इसकी छोटी-छोटी यूनिटें लगाने से लाखों आदिवासी युवाओं को रोजगार से जोड़ जा सकेगा। वहीं पत्ते के दोने-पत्तल से पर्यावरण को भी बचाया जा सकेगा। - नारायण सिंह पट्टा, विधायक बिछिया, जिला मंडला

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