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मरीजों के हक की दवा रखी-रखी एक्सपायर हो गईं की आग के हवाले shivpuri news


शिवपुरी. जिला अस्पताल में हर रोज होने वाले किसी न किसी कारनामे के चलते अस्पताल प्रबंधन खबरों में छाया रहता है। बुधवार को जो मामला सामने आया है, वह मरीजों के हक की दवा उन्हें देने की बजाय एक्सपायरी कर आग के हवाले करने का है।
बुधवार सुबह जिला अस्पताल के केंद्रीय भंडार गृह से लाखों रुपए की एक्सपायरी दवाएं सफाई में निकलने और उन्हें आग के हवाले करने की सूचना मरीजों द्वारा पत्रिका संवाददाता को दी गई। पत्रिका ने जब अस्पताल परिसर में स्थित उक्त जगह पर जाकर देखा तो खबर सही थी, दवाओं के ढेर में आग लगाई गई थी, जो दवाएं आग के हवाले की गई थीं वह अस्पताल में उपचार के लिए आने वाले मरीजों के हक की थीं, परंतु दवाएं उन्हें न देकर भंडार गृह में एक्पायरी कर दी गईं। जली दवाओं की पहचान करने की कोशिश की गई तो उनमें क्लोरोफेनिरामाइन टेबलेट, पोविडोन आयोडिन, कम्पाउंड रेंजोइक एसिड, डॉसेटेक्सल कॉन्सेन्ट्रेट, एंटासिड टेबलेट, ओलान्झापाईन टेबलेट, एस्प्रिन गेस्ट्रो रेसिसटेंट टेबलेट, डॉक्सीटेक्सल इंजेक्शन सहित तमाम तरह के इंजेक्शन, टेबलेट, ट्यूब, सिरप सहित कई दवाएं शामिल थीं। इसके अलावा इन आग में सिपला जैसी कई बड़ी कंपनियों की महंगी दवाएं भी जलाई जा रहीं थीं, जिनके एक-एक इजेंक्शन की कीमत सवा सौ से डेढ़ सौ रुपए तक थी। जिला अस्पताल में लंबे समय से दवाओं की कमी का रोना रोया जाता है। स्किन रोग सहित तमाम तरह की दवाएं मरीजों के लिए बाहर से लिखी जा रही हैं, जबकि इस आग में कई दवाएं स्किन रोग की भी थीं। खास बात यह है कि जब मरीजों को बांटने के नाम पर दवा की कमी बताई जा रही है तो फिर यह दवाएं एक्सपायर कैसे हो रही हैं? जो दवाएं बाजार से खरीदी की गई हैं, वह दवाएं स्वभाविक रूप से दवाओं की कमी के कारण ही क्रय की गई होंगी, फिर वह दवाएं आखिर कैसे एक्सपायर हो गईं? स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों की मानें तो इसका अर्थ सीधा सा यह है कि दवाएं स्टोर में होने के बावजूद मरीजों को उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। जब जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. एमएल सक्सेना से उनका पक्ष जानने के लिए फोन लगाया गया तो उन्होंने भोपाल मिटिंग में होने की बात कहकर कुछ भी कहने से मना कर दिया।

दवाएं जलाने से मरीजों को खतरा
एलोपैथी दवाएं कई तरह के केमिकल से बनाई जाती हैं, जिन्हें गलत तरीके से लेने से शरीर में इन्फेक्शन हो सकता है। इन दवाओं को अस्पताल परिसर में जलाया गया तो उससे उठने वाला धुआं मरीजों के लिए बड़ा खतरा है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बावजूद इसके अस्पताल प्रबंधन ने लापरवाही पूर्ण तरीके से अस्पताल परिसर में ही इन दवाओं को जला दिया।
बायोमेडिकल बेस्ट के साथ होती हैं डिस्पोज
जब जिला कमेटी के माध्यम से दवाओं को डिस्पोज करने की अनुमति मिल जाती है, इसके बाद दवाओं को बायोमेडिकल बेस्ट के लिए निर्धारित की गई एजेंसिंयों के माध्यम से डिस्पोज करने के लिए भिजवाई जाती हैं। यह एजेंसियां एक निर्धारित प्रोसेस के माध्यम से दवाओं को डिस्ट्रॉय करती हैं, ताकि इनके केमिकल से किसी भी प्रकार का नुकसान किसी को न हो।

एक्सपायर दवाओं के डिस्पोजल की यह है प्रोसेस : एक्सपायर दवाओं के डिस्पोजल के लिए एक प्रोसेस तय की गई है। इसके तहत संबंधित अस्पताल में एक्सपायर दवाओं का रिकॉर्ड रखा जाता है। रिकॉर्ड में दवाओं की लिस्टिंग की जाती है। इसमें दवाओं के एक्सपायर होने के कारणों का उल्लेख किया जाता है। इसके बाद यह लिस्ट जिला स्तर पर गठित कमेटी के समक्ष भेजी जाती है। यह कमेटी दवाओं के एक्सपायर होने के कारणों पर विचार कर उनके डिस्पोजल की अनुमति प्रदान करती है। इसका पूरा रिकॉर्ड सीएमएचओ कार्यालय में भी रखा जाता है।
दवाओं को जलाए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। अगर दवाएं जलाई गई हैं तो सख्त एक्शन लूंगा। दवाओं के डिस्पोजल से पहले एक प्रोसेस फॉलो करना होता है, वह फॉलो हुआ या नहीं, इसका पता करवाता हूं। - डॉ. एएल शर्मा, सीएमएचओ शिवपुरी

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