शिवपुरी। मैं पहले शहर के एक होटल में काम करता था, जहां से मुझे हर महीने 12 हजार रुपए पगार मिलती थी, लेकिन अब लॉक डाउन में होटल ही बंद हो गया। घर में चार बच्चे व पत्नी है, ऐसे में रोजगार छिन जाने के बाद उनका पेट भरना तो जरूरी था, इसलिए अब सब्जी का ठेला गली-मौहल्लों में घूम रहा हूं, हर दिन 200 से 250 रुपए की व्यवस्था हो जाती है तो किसी तरह परिवार की भूख मिटा पा रहा हूं।
यह कहना था अशोक धानुक का, जो सब्जी के ठेले पर अपने बेटे को भी मदद के लिए साथ लेकर चलता है। अशोक ने बताया कि एक बार मैं ठेला लेकर बाजार की सडक़ से एक गली में जा रहा था, तभी पुलिस वालों ने तीन-चार डंडे मार दिए। इस कोरोना ने कमाई तो छीन ही ली, पुलिस के डंडे ब्याज में पड़ रहे हैं। ज्ञात रहे कि कोरोना वायरस संक्रमण को ब्रेक करने देश भर में किए गए लॉक डाउन में कई दिहाड़ी मजदूर पूरी तरह से बेरोजगार हो गए। परिवार की स्थिति बिगड़ती जा रही है, क्योंकि बांटने वाले भी आखिरकार कब तक ऐसे परिवारों का भरण पोषण कर पाएंगे। यही वजह है कि इन दिहाड़ी मजदूरों ने मंगलवार की सुबह 10 बजे देश के प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश इस उम्मीद में सुना था कि शायद लॉकडाउन खुल जाएगा और वे अपने काम पर वापस लौट जाएंगे।
करते थे कारीगरी, एक माह से बैठे हैं घर
हम घर-मकान बनाने का काम करते हैं और उसमें हर दिन 500 रुपए तक की व्यवस्था हो जाती थी। लेकिन जबसे लॉक डाउन हुआ है, तबसे सभी कामकाज ठप हो गए और हम भी अपने घरों में कैद होकर रह गए। सरकार ने तो कह दिया कि घर से बाहर न निकलें, लेकिन घर में रहकर अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे? यह कोई नहीं देख रहा।
गजराज जाटव, मजदूर निवासी सिरसौद
हम घर-मकान बनाने का काम करते हैं और उसमें हर दिन 500 रुपए तक की व्यवस्था हो जाती थी। लेकिन जबसे लॉक डाउन हुआ है, तबसे सभी कामकाज ठप हो गए और हम भी अपने घरों में कैद होकर रह गए। सरकार ने तो कह दिया कि घर से बाहर न निकलें, लेकिन घर में रहकर अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे? यह कोई नहीं देख रहा।
गजराज जाटव, मजदूर निवासी सिरसौद
अब सब्जी खरीदने को भी पैसा नहीं
पुराने बस स्टैंड पर मनिहारी की दुकान लगाने वाली वृद्धा रामकली जोगी ने बताया कि दुकान से हर दिन इतना कमा लेते थे कि परिवारजनों को दो वक्त की रोटी मिल जाती थी। कोरोना के चक्कर में हमारी दुकान बंद हो जाने से हमारी कमाई का रास्ता ही बंद हो गया। पिछले चार माह से पेंशन भी नहीं मिली, तो सब्जी खरीदने को भी पैसे नहीं है।
रामकली जोगी, जोगी मौहल्ला शिवपुरी
पुराने बस स्टैंड पर मनिहारी की दुकान लगाने वाली वृद्धा रामकली जोगी ने बताया कि दुकान से हर दिन इतना कमा लेते थे कि परिवारजनों को दो वक्त की रोटी मिल जाती थी। कोरोना के चक्कर में हमारी दुकान बंद हो जाने से हमारी कमाई का रास्ता ही बंद हो गया। पिछले चार माह से पेंशन भी नहीं मिली, तो सब्जी खरीदने को भी पैसे नहीं है।
रामकली जोगी, जोगी मौहल्ला शिवपुरी
हर दिन करते थे काम, अब घर पर बेकाम
कोरोना से पहले हम हर रोज सुबह शहर के माधव चौक पर जाते थे और वहां से हमें कोई न कोई मजदूरी का काम मिल जाता था और शाम को अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए मिलने वाली मजदूरी से राशन आदि ले आते थे। देश बंद हो जाने से हमारा काम भी बंद हो गया और हम घर पर बेकाम होकर परिवार की गुजर-बसर नहीं कर पा रहे।
जसरथ जाटव, लालमाटी क्षेत्र शिवपुरी
कोरोना से पहले हम हर रोज सुबह शहर के माधव चौक पर जाते थे और वहां से हमें कोई न कोई मजदूरी का काम मिल जाता था और शाम को अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए मिलने वाली मजदूरी से राशन आदि ले आते थे। देश बंद हो जाने से हमारा काम भी बंद हो गया और हम घर पर बेकाम होकर परिवार की गुजर-बसर नहीं कर पा रहे।
जसरथ जाटव, लालमाटी क्षेत्र शिवपुरी
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