शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में पदस्थ एक चिकित्सक को मंगलवार की दोपहर उनके परिवार के साथ होम क्वारंटाइन किया गया है। चिकित्सक अपने परिवार के साथ भोपाल से लौटकर आए हैं।
शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में पदस्थ सर्जरी के प्रोफेसर डॉ. अनंत रोखंडे का परिवार भोपाल में रह रहा था। कुछ समय पहले वह भोपाल गए, भोपाल में कोरोना के बिगड़ते हालातों को ध्यान में रखते हुए वह कुछ समय पहले भोपाल गए और वहां से अपने परिवार के साथ वापिस शिवपुरी लौटकर आए। इस बात की सूचना उन्होंने मेडिकल कॉलेज के नोडल ऑफिसर डॉ. राजेश अहिरवार को दी, जिस पर डॉ. राजेश अहिरवार ने उनके यहां अपनी सर्वे टीम को भिजवा कर उनकी स्क्रीनिंग करवाई तथा प्रोफेसर सहित उनके परिवार को होम क्वारंटाइन कर दिया।
डॉ. अहिरवार ने बताया कि प्रोफेसर व उनके परिवार को अहतियातन होम क्वारंटाइन करने का निर्णय लिया गया है। उनके अनुसार भोपाल में जिस तरह से कोरोना ने पैर पसारे हैं, उसके चलते होम क्वारंटाइन अनिवार्य था। हालांकि उक्त परिवार में फिलहाल कोरोना के कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहे हैं।
मुम्बई से लौटे ट्रक ड्रायवरों को घर पहुंचकर किया क्वारंटाइन
मेडिकल कॉलेज की टीम ने कंट्रोल रूम से मिली सूचना, कि इमामबाड़ा व ग्राम विलोकलां में दो ट्रक चालक मुम्बई लौट कर आए हैं। कंट्रोल रूम को मिली सूचना के अनुसार उन्हें हल्की सर्दी खांसी भी थी।
मेडिकल कॉलेज की टीम ने कंट्रोल रूम से मिली सूचना, कि इमामबाड़ा व ग्राम विलोकलां में दो ट्रक चालक मुम्बई लौट कर आए हैं। कंट्रोल रूम को मिली सूचना के अनुसार उन्हें हल्की सर्दी खांसी भी थी।
सूचना पर डॉक्टरों की टीम इमामबाड़ा निवासी असफाक पुत्र अमानत खान के घर पहुंची और उसकी स्क्रीनिंग करने के बाद उसे अगले १४ दिन तक घर में रहने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा ग्राम विलोकलां में प्राण सिंह पुत्र शंकर परिवार की स्क्रीनिंग करने के उपरांत उसे भी कहा गया है कि वह अगले १४ दिन तक सिर्फ घर के अंदर ही रहें।
अधिकतर क्षेत्रों में सिर्फ कागजों में होम क्वारंटाइन
स्वास्थ्य महकमे द्वारा होम क्वारंटाइन किए जा रहे अधिकतर ग्रामीण व आदिवासी मजदूर सिर्फ कागजों में ही होम क्वारंटाइन हैं। अगर उनकी वास्तविकता देखी जाए, तो वह न सिर्फ घर से बाहर निकल रहे हैं, बल्कि अन्य लोगों से मिल जुल रहे हैं। यह लोग सोशल डिस्टेंसिंग का कोई पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसे में इन लोगों को होम क्वारंटाइन किए जाने का आखिर क्या औचित्य है।
स्वास्थ्य महकमे द्वारा होम क्वारंटाइन किए जा रहे अधिकतर ग्रामीण व आदिवासी मजदूर सिर्फ कागजों में ही होम क्वारंटाइन हैं। अगर उनकी वास्तविकता देखी जाए, तो वह न सिर्फ घर से बाहर निकल रहे हैं, बल्कि अन्य लोगों से मिल जुल रहे हैं। यह लोग सोशल डिस्टेंसिंग का कोई पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसे में इन लोगों को होम क्वारंटाइन किए जाने का आखिर क्या औचित्य है।
पत्रिका ने जब आदिवासी बस्ती में जाकर होम क्वारंटाइन के हालातों को समझने का प्रयास किया, तो जो स्थिति सामने आई, वह बेहद चौंकाने वाली थी। लोगों का कहना था कि कई दिनों तक २४ घंटे घर में घुसे रहना आसान नहीं है।
पलट कर नहीं देख रहे जिम्मेदार
प्रशासन द्वारा लगातार होम क्वारंटाइन किए गए लोगों की मॉनीटरिंग की बात कह रहा है, परंतु वास्तविकता यह है कि विभाग द्वारा जिन लोगों को होम क्वारंटाइन किए गए लोगों की मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी सौंपी है, वह पलट कर यह भी नहीं देख रहे हैं कि संबंधित व्यक्ति वास्तविकता में होम क्वारंटाइन हैं भी या नहीं।
प्रशासन द्वारा लगातार होम क्वारंटाइन किए गए लोगों की मॉनीटरिंग की बात कह रहा है, परंतु वास्तविकता यह है कि विभाग द्वारा जिन लोगों को होम क्वारंटाइन किए गए लोगों की मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी सौंपी है, वह पलट कर यह भी नहीं देख रहे हैं कि संबंधित व्यक्ति वास्तविकता में होम क्वारंटाइन हैं भी या नहीं।
ऐसे में जो लोग मॉनीटरिंग के लिए लगाए गए हैं, उनकी मॉनीटरिंग और रिर्पोटिंग भी बेहद अनिवार्य है।
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