भारत कई धर्मों का देश है। सभी धर्मों की अपनी-अपनी मान्यताएं और रीति-रिवाज होते हैं। ज्यादातर धार्मिक आयोजन कुछ इस तरह के होते हैं जिसमें केवल उस धर्म को मानने वाले व्यक्ति ही शामिल होते हैं परंतु सिख धर्म के गुरुद्वारों में लंगर एक ऐसा आयोजन है जिसमें सिख समाज के लोग तो भोजन करते ही हैं लेकिन दूसरे धर्मों के लोगों को आग्रह करके आदर पूर्वक भोजन कराया जाता है। सवाल यह है कि गुरुद्वारों में साल भर लंगर क्यों चलते हैं। क्या कारण है कि वह दूसरे धर्म के लोगों को ज्यादा स्नेह और आदर के साथ भोजन कराते हैं। आइए भारत की एक महान परंपरा के बारे में जानते हैं:
सिख धर्म में लंगर की परंपरा किसने शुरू की
लंगर की परंपरा सिख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने शुरू की थी। इसके पीछे गुरु श्री गुरु नानक देव जी की मानव जाति के प्रति प्रेम और करुणा की भावना प्रदर्शित होती है। कथा कुछ इस प्रकार है कि गुरु नानक देव जी को उनके पिता श्री कालु मेहता ने व्यापार करने के लिए 20 रुपये दिये (उस समय यह काफी बड़ी रकम थी)। नानक जी ने अपने फकीरी स्वभाव के कारण व्यापार तो नहीं किया परन्तु उन 20 रुपयों से एक भुखे साधुओं के जत्थे को भरपेट भोजन जरूर करवा दिया।
क्या लंगर का आयोजन सिर्फ गुरुद्वारों में किया जाता है
इसके अलावा नानक जी अपनी उदासियों (यात्राएं) के दौरान जब भी अपने श्रद्धालुओं से मिलते तो संगत के साथ 'पंगत' मे बैठ कर भोजन किया करते थे। श्री गुरु नानक देव जी के अनुयायियों ने इसे परंपरा बना दिया। इसी का नाम लंगर रखा गया। यह केवल गुरुद्वारों में संचालित नहीं होता बल्कि प्रत्येक उस स्थान पर लंगर लगाने की कोशिश की जाती है जहां लोगों के भूखे होने की संभावना होती है।
क्या सिख समाज के लंगर समानता के अधिकार का समर्थन करते हैं
लंगर मे सभी मनुष्य साथ मे बैठ कर भोजन करें सिक्ख धर्म के इस अनुठे विचार से अधिकतर जनमानस की सिखी मे आस्था बहुत बढी। संदेश सीधा सीधा यह था अव्वल अल्लाह नुर उपाये कुदरत के सब बंदे। एक नुर ते सब जग उपजया कौन भले कौन मंदे।। अर्थात उस मेहरबान अल्लाह/ईश्वर/जीसस/भगवान की अपार कृपा से प्रकृति की कोख से प्रत्येक मनुष्य का जन्म हुआ है इसलिए सभी मनुष्य एक समान है।

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