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पानी को जमा कर हम बर्फ बनाते हैं। पानी से बर्फ बनने की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब तापमान चुने की तरफ बढ़ता है। यानी ठंड बढ़ती है। हाथ से छूने पर भी महसूस होता है और विज्ञान के सूत्र भी कहते हैं कि बर्फ ठंडी होती है। सवाल यह है कि जब बर्फ ठंडी होती है तो उसमें से गर्म पानी की तरह भाप क्यों निकलती है।
पानी को जमा कर हम बर्फ बनाते हैं। पानी से बर्फ बनने की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब तापमान चुने की तरफ बढ़ता है। यानी ठंड बढ़ती है। हाथ से छूने पर भी महसूस होता है और विज्ञान के सूत्र भी कहते हैं कि बर्फ ठंडी होती है। सवाल यह है कि जब बर्फ ठंडी होती है तो उसमें से गर्म पानी की तरह भाप क्यों निकलती है।
भारत की नौसेना से रिटायर हुए श्री परिमल कुमार घोष बताते हैं कि बर्फ जल का कठिन रूप है और उसका तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस होता है। जब वह वायुमण्डल के संस्पर्श में आता है तब आसपास के माहौल के अधिक तापमात्रा से प्रभावित होता है एवं बाहरी हिस्से के बर्फ पिघलने लगता है। यह भाव और कुछ नहीं है बल्कि जलीय वास्प ही हैं। जैसे हम अपने रसोईघर में पानी उबालते समय वाष्पीकरण के प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकते हैं। धीरे धीरे वह घनीभूत वाष्प आसपास के वायुमण्डलीय स्थानों में फैल जाते हैं एवं अदृश्य भी। पर बादल तो वाष्प के ही घनीभूत रूप है।
पहले शून्य डिग्री के बर्फ (कठिन अवस्था) से शून्य डिग्री के जल (तरल अवस्था) में रूपान्तरण होने के लिए प्रति ग्राम बर्फ को 80 कैलोरी ऊर्जा चाहिए। इसे बर्फ के लेटेन्ट हिट कहा जाता हैं। पक्षान्तरे शून्य डिग्री के जल को भी कठिन बर्फ में परिवर्तित होने के लिए भी 80 कैलोरी ऊर्जा घटाना पडता है।
यह केवल बर्फ में ही सीमित नहीं है। अधिकतर लोगों को ऐसे लगते हैं कि बर्फ पिघलने में या शून्य डिग्री तापमान में जलाशय से वाष्पीकरण नहीं हो सकते हैं परन्तु यह सही नहीं है। जल शून्य तापमात्रा में भी जलीय वास्प यानि भाप बन सकते हैं
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