शिवपुरी. जिले में कई ऐसे गांव हैं, जहां रहने वाले 80 से 90 फीसदी परिवार दुग्ध उत्पादन करते हैं। कोरोना संक्रमण काल के चलते जिले में होने वाले दूध उत्पादन की खपत बाजार में घट गई थी, जिसके चलते घर में बच रहे दूध से घी व पनीर सहित अन्य प्रोडक्ट बना रहे हैं। चूंकि घी व पनीर की मांग बाजार की दुकानों पर अधिक होती है, इसलिए दूधियों ने घर में बने यह प्रोडक्ट दूध देने के लिए शिवपुरी आते समय वो प्रोडक्ट भी बेचे। 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस के संबंध में दूध कारोबारियों का कहना है, लॉकडाउन के दौरान मिठाई की दुकानें व होटल आदि बंद होने से दूध के इस कारोबार में न केवल बड़ा नुकसान झेलना पड़ा, बल्कि सस्ते दामों में भी दूध देकर घाटा उठाना पड़ा।
लॉकडाउन से पहले तक जिले में सभी मिठाई की दुकानें व चाय के होटल आदि खुले होने की वजह से शहर सहित तहसीलों में हजारों क्विंटल दूध की खपत होती थी। इसके अलावा डेयरी संचालक भी बड़ी मात्रा में दूध लेते थे। जिले में लगभग 2 लाख लीटर प्रतिदिन दूध का उत्पादन होता है, जो शहर सहित जिले में हर दिन खपने के अलावा चॉकलेट फैक्ट्रियों पर भी भेजा जाता था। लॉकडाउन के फेर में जब दुकानें व फैक्ट्रियां बंद हुईं तो होने वाला दूध खरीदने के लिए ग्राहक नहीं मिले। एक तरफ जहां चारा महंगा हो गया, वहीं दूध की मंाग लगभग खत्म हो जाने की वजह से दूधियों ने कुछ दिन तक तो सस्ते रेट में दूध बेचा और फिर उन्होंने मांग के अनुरूप शहर में दूध बेचने के बाद शेष दूध का घी, क्रीम, पनीर, मही आदि निकालना शुरू कर दिया। क्योंंकि दूध के कई बायप्रोडक्ट बनाए जाते हैं, इसलिए दूध के धंधे में होने वाले घाटे को किसी तरह दूधियों ने पूरा करने का प्रयास किया। अब जबकि मिठाई की दुकानें तथा चाय के होटल खुल गए हैं, इसलिए अब उन्हें उम्मीद है कि अब उनकी दूध की मांग बढ़ेगी तथा उन्हें अच्छे रेट भी मिल सकेंगे।
लॉकडाउन से पहले तक जिले में सभी मिठाई की दुकानें व चाय के होटल आदि खुले होने की वजह से शहर सहित तहसीलों में हजारों क्विंटल दूध की खपत होती थी। इसके अलावा डेयरी संचालक भी बड़ी मात्रा में दूध लेते थे। जिले में लगभग 2 लाख लीटर प्रतिदिन दूध का उत्पादन होता है, जो शहर सहित जिले में हर दिन खपने के अलावा चॉकलेट फैक्ट्रियों पर भी भेजा जाता था। लॉकडाउन के फेर में जब दुकानें व फैक्ट्रियां बंद हुईं तो होने वाला दूध खरीदने के लिए ग्राहक नहीं मिले। एक तरफ जहां चारा महंगा हो गया, वहीं दूध की मंाग लगभग खत्म हो जाने की वजह से दूधियों ने कुछ दिन तक तो सस्ते रेट में दूध बेचा और फिर उन्होंने मांग के अनुरूप शहर में दूध बेचने के बाद शेष दूध का घी, क्रीम, पनीर, मही आदि निकालना शुरू कर दिया। क्योंंकि दूध के कई बायप्रोडक्ट बनाए जाते हैं, इसलिए दूध के धंधे में होने वाले घाटे को किसी तरह दूधियों ने पूरा करने का प्रयास किया। अब जबकि मिठाई की दुकानें तथा चाय के होटल खुल गए हैं, इसलिए अब उन्हें उम्मीद है कि अब उनकी दूध की मांग बढ़ेगी तथा उन्हें अच्छे रेट भी मिल सकेंगे।
कोरोना ने तो मार लिया
बाजार व फैक्ट्रियां बंद हो जाने से दूध की मांग बहुत कम हो गई थी, इसलिए हमने बचने वाले दूध से घी-मही बनाना शुरू कर दिया था। अब मिठाई की दुकानें व चाय होटल खुल गए हैं, तो फिर दूध की मांग बढऩे की उम्मीद है। कोरोना ने तो हमें मार लिया।
- कोकसिंह गुर्जर, अध्यक्ष दुग्ध संघ शिवपुरी
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