राजधानी तक है हसौद के ननकीदाऊ के पेड़े की पूछ परख
हसौद। हसौद के ननकीदाऊ के पेड़ा राजधानी तक मशहूर है नाम इतना है कि एक दिन में ही 2 क्विंटल से अधिक पेड़ा घर से ही बिक जाता है। उठाए बेचने या मार्केटिंग करने के लिए कहीं जाने की जरूरत अब तक नही पड़ी।स्थिति यह है कि पर्व त्यौहार में पेड़ा कम पड़ जाता है। प्रतिदिन वह 1200 लीटर दुष के पहले खोवा तैयार कराता है इसके बाद उसका पेड़ा बनाया जाता है , इस काम में उसने 22 लोगों को रोजगार भी दिया है।
जैजैपुर ब्लॉक के हसौड़ गांव की पहचान वहां के ननकीदाऊ साहू के पेड़े से है।राजधानी रायपुर तक इसकी मांग है वहीं जांजगीर , सारंगढ़ , रायगढ़ , बिलासपुर व अन्य शहर व आसपास के गांवों में इनकी बिक्री होती है। लगभग 50 साल पहले ननकीदाऊ साहू ने दूध से पेड़ा बनाकर बेचने का काम छोटे पैमाने पर शुरू हुआ तब पावड़े की कीमत मात्र 40 रुपए किलो थी। वर्तमान में बिना शक्कर का 350 रुपए किलो और शक्कर युक्त 300 रुपए है। ननकीदाऊ के बेटे अशोक कुमार साहू ने बताया कि उनके पिता ननकीदाऊ साहू के नाम से पेड़े की बिक्री होती है एक दिन में 12 सौ लीटर दूध मिरौनी , नरियरा , चिस्दा, अमोदा और परसदा के पशुपालकों से 35 रुपए किलो के हिसाब से खरीदा जाता है। उन्होंने बताया कि इस काम में 22 लोगों को रखा गया है जो दूध से खोवा व उसके बाद पेड़ा बनाने व पैकेट तैयार करने का काम करते हैं।इससे आसपास के गांवों का दूध अच्छे दाम में खप जाता है 20 साल के उम्र में ननकीदाऊ ने यह काम शुरू किया था , तब वह घर के ही दूध से ही बनाते थे। धीरे धीरे मांग बढ़ने लगी और इस आधार पर पेड़ा भी अधिक बनाया जाने लगा।दूध की जरूरत भी बढ़ी तब आसपास के लोगों से दूध खरीदना शुरू किया और हसौद के आसपास के गांव से भी लोग दूध बेचने उनके पास पहुंचते है।इस तरह लोगों को दूध की सही कीमत मिल जाती है।
राजनाथ भी पेड के दीवाने
हसौद के पेड़े की प्रसिद्ध इतनी है कि केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह , मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित और अन्य कई बड़े नेताओं को यहां के पेड़े से तौला जा चूका है। इन नेताओं ने पेड़े का स्वाद चखा और उसकी तारीफ भी की।
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