
मध्यप्रदेश के नागरिकों के सामने बड़ा संकट है, जो जनादेश उनने 5 साल के लिए दिया था उसकी शक्ल बदल गई है। इस शक्ल को बदलने में जो अक्ल लगाई गई, उसके कारण विधानसभा में अध्यक्ष नहीं है। सदन में प्रतिपक्ष का नेता नहीं है। कुर्सी पर काबिज मंत्रियों में से कोई किसी का है तो, किसी के पृष्ठ भाग पर किसी की सील लगी है। इनमें कोई एक ऐसा नहीं है, जिसे नागरिक अपना कह सकें। पहले हर दल में कुछ भीष्म पितामह हुआ करते थे, जिनसे कुछ कहा-सुना जा सकता था। अब तो कब कौन कौरव- पांडव हो जाये और कब कौन सा कर्ण कवच कुंडल दान कर निहत्था हो जाये कहना मुश्किल है। अमृत मंथन की पौराणिक कथा के सन्दर्भ को दूषित कर खुद को विषपायी कहने वालों असली ‘गरल-पान’ तो प्रदेश के नागरिक कर रहे हैं।
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