भोपाल में 9 साल का एक मासूम आरुष लखेरा जानलेवा बीमारी ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से जूझ रहा है। उसका जन्म सामान्य हुआ। वह आम बच्चों की तरह चलता था। मस्ती में झूमता। उसकी मस्ती देखकर घर के लोग भी झूम उठते थे, लेकिन आज वह खुद खड़ा तक नहीं रह सकता। तीन साल की उम्र में उसके पैरों में तकलीफ शुरू हुई। उसे उठने-बैठने से लेकर खड़े होने तक में परेशानी होने लगी। हालत ऐसे हैं कि उसे खड़े करने के लिए किसी चीज से रस्सी से बांधकर खड़ा रखना पड़ता है। इस बीमारी से लड़ने के लिए प्रारंभिक खर्च ही करीब 2 करोड़ रुपए बताया जाता है।
आरुष के पिता धर्मेंद्र लखेरा बताते हैं कि जब से उन्हें इसकी बीमारी के बारे में पता चला, तभी से वे उसका इलाज करा रहे हैं। जयपुर के डॉक्टर ने भी उसका इलाज किया है। इसके अलावा भोपाल में हर रोज तीन से चार घंटे तक आरुष की फिजियोथेरेपी भी की जाती है। धर्मेंद्र कहते हैं कि बीमारी का इलाज के लिए अब तक कई लोग आर्थिक मदद भी कर चुके हैं।
आरुष जल्दी खड़े होने के लिए हर दर्द झेलता है
धर्मेंद्र बताते हैं कि आरुष 4-5 साल की उम्र तक तो चल सकता था। मस्ती भी करता था, लेकिन फिर पैर में तकलीफ होने लगी। वर्ष 2020 तक भी वह अपने पैर पर खड़ा हो जाता था, लेकिन कोरोना में पहले लॉकडाउन में उसकी फिजियोथेरेपी बंद हो गई। उसके बाद ही की कमर से नीचे के हिस्सा ने पूरी तरह काम करना बंद कर दिया। अभी वह 9 साल का है और उसे खड़ा करने के लिए या तो पकड़े रहना पड़ता है या फिर किसी चीज से बांधकर खड़ा करते हैं। वह अक्सर पूछता कि पापा मैं कब चल पाऊंगा। दूसरे बच्चों के साथ दौड़कर कब खेल पाऊंगा। उसके सवालों के हमारे पास कोई जवाब नहीं है। धर्मेंद्र बताते हैं कि डॉक्टर के पास लेना जाना हो या फिर कोई बात उससे मनमानी, तो हम कहते हैं कि अगर वह उनकी बात मनेगा, तो जल्दी चलने लगेगा। बस चलने की बात सुनकर वह हर दर्द झेलने को तैयार हो जाता है।
आरुष को पढ़ना और खेलना पंसद
आरुष ने बताया कि वह रोज पढ़ाई करता है। उसे पढ़ना और पेंटिग करना पसंद है। पढ़ाई के बाद वह गेम खेलता है और टीवी देखता है। शाम को रोजाना वह एक्सरसाइज भी करता है। पापा कहते हैं कि वह एक्सरसाइज करेगा तो फिर से चलने लगेगा।
बीमारी इस तरह होती है
आरुष को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी मांसपेशियों की 80 तरह की बीमारियों से सबसे जानलेवा ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) है। इनमें समूह में कई प्रकार के रोग आते हैं। इस बीमारी का सबसे बुरा पहलू यह है कि 11 से 21 साल की उम्र तक ऐसे बच्चों की मौत तक हो जाती है। ऐसे बच्चों की पहचान के लिए जागरुकता बहुत जरूरी है। विशेष रूप से स्टेम सेल और बोन मैरो सेल-ट्रांसप्लांट के प्रयोग से इन मरीजों की आयु बढ़ाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
इस तरह सामने आती है
- शुरुआत में सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में दर्द होना
- पैर की पिंडलियों में सूजन होना
- बच्चा थोड़ा चलने पर ही थकने लगता है
- तेज चलने पर गिर जाना
- जमीन से उठने के लिए सहारा तक लेना पड़ता है
उम्र के साथ बढ़ती है बीमारी
शुरुआत में ही बच्चे में इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। शुरुआत में ही बच्चे को चलने में परेशानी होने लगती है। यह बीमारी सबसे पहले कमर के आसपास की मांसपेशियों और पैर की पिंडलियों को कमजोर करती है। उम्र के साथ ही कमर और बाजू की मांसपेशियों को भी प्रभावित करना शुरू कर देता है। करीब 9 साल की उम्र तक यह बीमारी फेफड़ों और दिल की मांसपेशियों को भी कमजोर करना शुरू कर देता है। इससे बच्चे की सांस फूलना शुरू हो जाती है, जिससे उसे सांस लेने तक में परेशानी होने लगती है।
इलाज बेहद मंहगा है
यह बीमारी को लाइलाज बीमारियों की श्रेणी में आती है। धर्मेंद्र बताते हैं कि यह बीमारी हजारों में से एक को होती है। भारत में अभी इसका इलाज नहीं है। कुछ जगह जैसे जयपुर में विदेशी डॉक्टरों की मदद से इस तरह का इलाज किया जाता है। इसका प्रारंभिक खर्च ही डॉक्टर 2 करोड़ रुपए बता रहे हैं। कोरोना के कारण मालिश आदि बंद होने के कारण आरुष में यह बीमारी तेजी से बढ़ी है। इसमें लगातार दवा, मालिश और एक्सरसाइज कराना जरूरी होता है।
हजार में से बहुत कम बच्चों को
फिजियोथेरेपिस्ट डॉक्टर रामेश्वर वर्मा ने बताया कि इस तरह की बीमारी हजारों में कुछ बच्चों को होती है। ऐसे बच्चे जन्म से 3 साल तक सामान्य रहते हैं, लेकिन फिर परेशानी बढ़ने लगती है। दो साल यह बीमारी ज्यादा बढ़ने लगती है। करीब 9 साल की उम्र में यह पूरी तरह असर दिखाना शुरू कर देती है। अभी भारत में इसका इलाज नहीं है। अमेरिका में एक दवाई तैयार की गई है। उसका तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। उसके रिजल्ट अच्छे हैं, लेकिन उसका इलाज बहुत मंहगा है। आरुष को ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है। उसे जीवत रहने के लिए ही लगातार मालिश, एक्सरसाइज और दवाईओं की जरूरत है।
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