शिवपुरी,
बालिका दिवस के उपलक्ष्य में 24 जनवरी को प्रधान जिला न्यायाधीश एवं अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्रीमान विनोद कुमार के मार्गदर्शन में तथा श्रीमती अर्चना सिंह जिला न्यायाधीश एवं सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की अध्यक्षता में शासकीय कन्या महाविद्यालय की छात्राओं के साथ वर्चुअल माध्यम से कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें श्रीमती अर्चना सिंह द्वारा छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि सबसे पहले सभी छात्राओं को अपने माता पिता को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने समाज की कुरीतियों से परे जाकर उन्हें जन्म दिया एवं शिक्षित किया। भारत देश के कई राज्यों में ऑनर किलिंग के नाम पर कई लड़कियों की हत्या कर दी जाती है तथा कई राज्यों में दहेज के नाम पर बेटियों को गर्भ में ही खत्म कर दिया जाता है या जन्म देते ही दूध में डुबोकर या अन्य तरीकों से उनकी हत्या कर दी जाती थी। इसलिए कई कानूनों की व्यवस्था की गई जोकि बेटियों को समाज में अच्छा स्थान दिलाने के लिए आवश्यक थे। एम टी पी अधिनियम १९८१ एवं पीसीपीएनडीटी एक्ट १९९४ के बारे में जानकारी देते हुए उनके द्वारा बताया गया कि यदि गर्भ में पल रहे बच्चे में कोई शारीरिक अथवा मानसिक विकृति होती है तो ऐसी स्थिति में अल्ट्रासाउंड मशीन द्वारा बच्चे का परीक्षण किए जाने के लिए इस प्रकार की मशीनों का आविष्कार किया गया, किंतु लोगों ने उक्त मशीन का उपयोग लिंग जांच के लिए किया और गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता होने पर स्त्री भ्रूण को गर्भ में ही समाप्त किया जाने लगा इसलिए इस कानून की आवश्यकता पड़ी क्योंकि इस कारण समाज में लड़कियों का अनुपात दिन प्रतिदिन घटता जा रहा था। इस कारण अनुचित रूप से होने वाले भ्रूण जांच को दंडनीय बनाया गया और ऐसा करने वाले मेडिकल प्रैक्टिशनर का पकड़े जाने पर दो वर्ष के लिए लाइसेंस सस्पेंड कर दिया जाता है।दोबारा ऐसा करने पर लाइसेंस रद्द कर दिए जाने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त जांच करने वाले के लिए भी सजा का प्रावधान है।केवल उसी परिस्थिति में भ्रूण समाप्त किया जा सकेगा यदि वह गर्भवती अथवा गर्भ में पल रहे बच्चे के जीवन को खतरा हो या किसी प्रकार की अनुवांशिक बीमारी हो।वर्तमान में उक्त कानून के सुखद परिणाम प्राप्त हो रहे हैं और लड़कियों का अनुपात भी सुधर गया है।
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