शिवपुरी-माननीय न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, शिवपुरी श्री उमेश भगवती के द्वारा चैक बाउंस के मामले में आरोपी को एक माह के सश्रम कारावास की सजा सहित ली गई राशि को बतौर 9 प्रतिशत ब्याज दर से वापिस करने के निर्देश दिए गए। इस मामले में परिवादी की ओर से पैरवी जिला न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व सचिव अभिभाषक संघ दीपक भार्गव ने की।प्रकरण के अनुसार परिवादी गुलाब सिंह पुत्र हनुमंत सिंह कुशवाह उम्र 53 वर्ष व्यावसाय पीएचई नौकरी, निवासी नारायण सिंह का मकान, सुभाष कॉलोनी शिवपुरी के द्वारा अपनी पहचान वाले रामवीर पुत्र कल्याण सिंह गुर्जर आयु 43 वर्ष व्यवसाय भृत्य वन विभाग, निवासी वन विद्यालय कैम्पस के अंदर छत्री रोड़ शिवपुरी को 07.12.2018 को राशि 1 लाख रूपये की बतौर उधार ऋण के रूप में आवश्यकता पडऩे पर दी थी जिसके एवज में परिवादी गुलाब सिंह को तत्समय रामवीर के द्वारा एक रसीद और चैक बैंक जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक शिवपुरी का दिया था और 15 दिन बाद उसे प्राप्त करने हेतु बैंक में लगाने की कहा था जिस पर परिवादी गुलाब सिंह के द्वारा उक्त चैक की राशि को प्राप्त करने हेतु 10.12.2018 को संबंधित बैंक में लगाया तो राशि अपर्याप्त होने के कारण चैक बाउंस हो गया। जिस पर गुलाब सिंह के द्वारा अपनी राशि को प्राप्त करने हेतु अभियुक्त रामवीर से कहा तो वह अपनी बातों से मुकर गया और जिस पर परिवादी गुलाब सिंह के द्वारा अपनी राशि को प्राप्त करने के लिए अधिवक्ता दीपक भार्गव के माध्यम से अभियुक्त रामवीर गुर्जर को नोटिस भेजा और जब नोटिस का जबाब नहीं आया तो मामला माननीय न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, शिवपुरी श्री उमेश भगवती के न्यायालय में चला जहां दोनों पक्षों को सुनने के बाद अभियुक्त रामवीर गुर्जर को दोषी पाया गया और अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अधीन दण्डनीय अपराध के आरोप में दोष सिद्धि पर एक माह के सश्रम कारावास से दण्डित किया जाता है। अभियुक्त परिवादी को चैक राशि 1,00,000/- (एक लाख रूपए मात्र) एवं उक्त राशि पर बैंक में चैक प्रस्तुत करने की दिनांक 07.12.2018 से 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से संकलित राशि 28750/- एवं अधिवक्ता शुल्क एवं परिवाद के संबंध में अन्य शुल्क मिलाकर कुल 1,40,000/-(एक लाख चालीस हजार रूपए मात्र) का प्रतिकर भी द.प्र.सं.की धारा 357(3) के अनुसार अदा करेगा। प्रतिकर अदा करने के व्यतिक्रम मेें अभियुक्त को तीन माह का साधारण कारावास पृथक से भुगताया जाए।
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