मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. रत्नेश कुरारिया का दावा है कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत, एडवोकेट, नागरिक शब्द की परिभाषा में नहीं आता। उसे सूचना प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। डा. रत्नेश कुरारिया ने कोई बयान नहीं दिया बल्कि लिखित उत्तर में यह दावा किया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में उन्होंने लिखित उत्तर में बताया कि, कोई संगठन, संघ, प्रतिष्ठान, एसोसिएशन, एडवोकेट नागरिक शब्द की परिभाषा में नहीं आता है। एडवोकेट जो कि बार काउंसिल में पंजीकृत होने पर विधिक व्यवसाय करता है तथा अपने मुव्वक्किल के पक्ष में फीस प्राप्त कर न्यायालय में विधिक पैरवी करता है। अत: धारा 11 में पर-व्यक्ति की सूचना अनुक्रम में सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के तहत धारा 24 के अंतर्गत 3, जो छह उप कंडिकाएं हैं के बिंदु क्रमांक-2 के अनुरूप अधिवक्ता को नियमानुसार जानकारी प्रदाय करने का प्राविधान नहीं है...।’
मामला क्या है
ला स्टूडेंट एसोसिएशन से जुड़े अधिवक्ता विशाल बघेल ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय से कुछ जानकारियां मांगी थीं। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत उन्होंने सीएमएचओ कार्यालय से दो निजी अस्पतालों को मान्यता प्रदान करने की समस्त प्रक्रिया पूछी थी। जिसमें मदनमहल स्थित श्री शुभम अस्पताल तथा नेपियर टाउन स्थित सर्वोदय हास्पिटल शामिल है। दूसरी आरटीआइ में उन्होंने लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा वर्ष 2021 में निजी अस्पतालों के लिए जारी निर्देशों के पालन के संबंध में लगाई थी। उन्होंने समस्त निजी अस्पतालों की सूची मांगी थी। जिसमें निजी अस्पतालों की जांच से संबंधित समस्त कार्रवाई, निरीक्षण दल के गठन से संबंधित आदेश की सत्यप्रति, निरीक्षण किए गए समस्त अस्पतालों के निरीक्षण की चेक लिस्ट शामिल है।
फर्जीवाड़ा उजागर न हो इसलिए अपना रहे हथकंडे
अधिवक्ता बघेल ने कहा कि सीएमएचओ डॉ. रत्नेश कुरारिया सवालों का जवाब देने से बच रहे हैं। इसलिए आरटीआइ के जवाब में नए-नए तर्क दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि पूर्व में भी उनकी एक अन्य आरटीआइ का जवाब देने से आनाकानी की गई थी।
परंतु प्रथम अपील में अपना पक्ष रखते हुए सीएमएचओ के उत्तर को निरस्त कराते हुए उन्होंने जानकारी प्राप्त कर ली थी। परिणाम स्वरूप दो निजी अस्पतालों की मान्यता निरस्त करनी पड़ी थी। तमाम निजी अस्पतालों के पास फायर एनओसी नहीं है। भवन का स्वीकृत नक्शा व अन्य अनुमतियां नहीं हैं। फिर भी अस्पतालों के संचालक को खुली छूट दी गई है। स्वास्थ्य विभाग की कारगुजारियां उजागर न होने पाएं इसलिए आरटीआइ का जवाब नहीं दिया जा रहा है। उनका कहना है कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत वर्ष 2010 में स्पष्ट किया था कि कोई भी संगठन, नागरिक आरटीआइ के तहत सवाल पूछ सकता है। विशाल ने कहा कि सीएमएचओ के इस जवाब से वे आहत हैं। वे अधिवक्ता संगठनों में सीएमएचओ की शिकायत करेंगे।
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