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विश्व महिला दिवस पर विशेष आलेख नारी ईश्वर की अद्भुत एवं अनुपम कृति- रविंद्र द्विवेदी

 


बिर्रा -भारत देश तो विलक्षणताओं का देश है। इस देश की नारी भी विश्व में महान है। भारतीय नारी सर्वदा आदर्श-प्रिय रही है और उसने हमेशा ही अपने आदर्श का संरक्षण किया है। क्या घर और क्या बाहर क्या मनोरंजन तो क्या राजनीति संस्कार-संस्कृति के क्षेत्र को उसने अपनाया,वहीं पर इसने अपने आदर्श त्याग और लगन से अपनी छवि की अमिट छाप छोड़ी हैं। संस्कार व शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार चलकर जहां इसने एक आदर्श गृहिणी और आदर्श पत्नी के रूप में अपने को दर्शाया वहीं गृहिणी की छवि में रहते हुए पतिव्रत धर्म का पालन करने के लिए उसने बड़े से बड़े कष्टों को सहा। अपने निश्छल प्रेम में कोई अंतर आने नहीं दिया।

 धन्य है भारत की देवियां! जिनकी गाथाओं से ग्रंथ भरे पड़े हैं और जिनके चरित्र,संसार की सभी स्त्रियों के लिए गीत स्तंभ के समान है। भगवत भजन,आराधना,भावभक्ति द्वारा जिन्होंने सर्वशक्तिमान ईश्वर को अपने वशीभूत कर लिया। उदाहरण स्वरुप है- माता कौशल्या, यशोदा, देवकी, रोहिणी, मीराबाई, जगत जननी माता सीता, ब्रज की गोपियां आदि ऐसे चरित्र है जो संसार की स्त्रियों के लिए सदैव वंदनीय, अनुकरणीय रहेंगे।जिस प्रकार मकान की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है, उसी प्रकार किसी भी राष्ट्र की  सुदृढ़ता वहां की नारियों पर निर्भर करती है। जिस प्रकार धूरी के बिना पहिया नहीं चल सकता, उसी प्रकार नारी सम्मान के बगैर कोई राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता।


प्राचीन काल में कोई भी कार्य या धार्मिक अनुष्ठान नारी के बिना पूरा नहीं होता था उनके लिए कोई भी क्षेत्र वर्जित नहीं था। नारी यदि गृहस्थ जीवन के पतवार है तो पुरुष उसका खेवनहार। परिवार की सुख शांति, आनंद, खुशी, व्यवस्था संचालन, कल्याण हित इन दोनों पर ही निर्भर है। इन्हीं कारणों से हमारी संस्कृति में नारी को गृहलक्ष्मी, गृहदेवी,सहधर्मिणी,अर्धांगिनी, जीवनसंगिनी आदि कहा गया है। मनु ने लिखा है यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता अर्थात जहां नारियों, स्त्रियों, महिलाओं की पूजा होती है वहां सभी देवता निवास करते हैं। नारी दया, ममता, स्नेह, त्याग, करुणा, प्रेम, वात्सल्य, क्षमा की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं। इसलिए हम कहते हैं कि धरती का सिंगार है नारी करूणा का संसार है नारी। मां, बहू और बेटी के रूप में ईश्वर का उपहार है नारी।पृथ्वी की तरह क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की तरह गंभीरता, चंद्रमा जैसे शीतलता, भारतीय नारियों के गुणों की मणिमाला है। ये घर में नहीं अपितु घर के बाहर भी सम्मान की अधिकारिणी है। सीता, सावित्री, अनुसूइया, शकुंतला, दुर्गा, काली, यशोदा सभी माताएं हमारे लिए परम वंदनीय पूज्यनीय हैं। पुरातन युग और आज भी नारी की क्षमता,योग्यता, विवेक तथा कार्य ने यह सिद्ध कर दिया है कि नारी किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। आज वह अबला नहीं सबला हैं। वह पुरुष के सहयोगिनी हैं तथा सामाजिक जीवन की आधारशिला है।जिस प्रकार एक दीपक अंधेरे को दूर करने में सक्षम है। उसी प्रकार एक शिक्षित नारी अपने परिवार, समाज को रोशन कर सकती है। एक नारी के शिक्षित होने से उनके तीन कुल शिक्षित हो जाते हैं मायके पक्ष, ससुराल पक्ष, एवं आने वाले संतान पक्ष। नारी परिवार बनाती है, परिवार घर बनाता है और घर समाज बनाता है एवं समाज ही देश बनाता है। इसका सीधा-सीधा अर्थ यही है कि नारियों का योगदान हर जगह है। विश्व प्रसिद्ध भारतीय संस्कृति के अनुसार नारी दुर्लभ वरदान हैं। सभी नारियों को देवी स्वरूप में यथोचित सम्मान दिया जाना चाहिए, क्योंकि नारी ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ, अद्भुत एवं अनुपम कृति हैं

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