पियून होते हुए इस नन्हे बच्चे को ख़ुद कपड़े उठाने जाना पड़ा, जो अपने आप में गंभीर विषय तो था ही, सबसे ज्यादा गंभीर तब था जब, इस मामले की गंभीरता का पता छात्रावास अधीक्षक, सहायक, एवम पियून को पता होने के बाद भी नन्हे बच्चे को न तो कोई फर्स्ट एड दिया गया, न दर्द निवारक दवा दी गई और न ही टिटनेस का इंजेक्शन लगवाया गया।
30 घंटे बाद, जब इस बच्चे के गार्जियन आए तब जाकर उन्होंने इस बच्चे को ट्रीटमेंट दिलवाया।
: ये कैसी लापरवाही जो नौनिहाल नहीं दिखाई देते?
: ये महज 6 साल का बच्चे जो न इस दर्द के सह सकता है और न ही डर से कुछ का सकता है।
क्या सारी रात इस दर्द के साथ सो पाया होगा?
: कितनी हल्के में लिया इस मामले को अधीक्षक ने, और कितनी आसानी से कह दिया पियून ने बच्चे के पिता को कि हमारे पास इलाज कराने को पैसा नहीं है?
: क्या सरकारी अस्पताल और सारी सरकारी व्यवस्था ध्वस्त थीं?
: अगर बच्चा ऊधम भी करता होगा तो क्या तुम्हारा जमीर इतना हल्का है कि उसके दर्द को तुमने हल्के में लिया?
: अगर तुम्हारा बच्चा होता तो क्या ऐसे ही ट्रीट करते उसको?
जब इस एक बच्चे के साथ ऐसा हो सकता है तो औरों के साथ कैसा-कैसा व्यवहार होता होगा!
विषय चिंता और चिंतन दोनों का!
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