शिवपुरी शासकीय कन्या महाविद्यालय शिवपुरी में गुरुवार को 'विश्व एड्स दिवस' के अंतर्गत महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा मानव श्रृंखला बनाते हुए एड्स जागरूकता का संदेश दिया गया।
प्रोफेसर डॉ. रेनू राय ने बताया कि हर वर्ष महाविद्यालय में एड्स दिवस पर कई जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। हर वर्ष मानव श्रृंखला बना कर लोगों को जागरूक किया जाता है। एड्स छुआछूत की बीमारी नहीं है जिन्हें एड्स की बीमारी हो भी जाती है उनके साथ व्यवहार में बदलाव नहीं लाना चाहिए। उनके साथ अच्छे से बर्ताव करना चाहिए। आज विश्व एड्स दिवस के अवसर पर महाविद्यालय में कई कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है। आज छात्राओं को शपथ भी दिलाई गई है कि वह समाज में फैली भ्रांतियों को दूर कर लोगों को एड्स फैलने के सही कारण बताएंगीं और छात्राएं स्वयं भी जागरूक होंगी।
बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा रितु शर्मा ने बताया कि आज एड्स दिवस के अवसर पर उन्हें कई जानकारियां प्राप्त हुई है कि किस तरह एड्स के मरीज के साथ व्यवहार करना चाहिए। उन्हें बताया गया है कि इस बीमारी की कई भ्रांतियां समाज में फैली हुई हैं। जिन्हें दूर करने के लिए सभी छात्रा समय समय पर जागरूकता अभियान चलाते हुए लोगों को जागरूक करेगी।
एड्स एक जानलेवा बीमारी है, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं है। एचआईवी से संक्रमित होने वाला पीड़ित जीवनभर के लिए इस वायरस से ग्रसित हो जाता है। हालांकि कम्युनिटी हैल्थ ऑफिफर श्रद्धा साहू ने एचआईवी से बचने के कुछ उपाय बताएं हैं। वहीं एड्स रोगी के लिए कुछ दवाएं भी हैं, जिसके माध्यम से रोग की जटिलता को कम किया जा सकता है। अधिक जानकारी देते हुए कार्यक्रम संयोजक रवि गोयल ने बताया कि शक्ति शाली महिला संगठन एवम स्वास्थ विभाग ने संयुक्त रूप से मिलकर हाईवे पर बसे आदिवासी बाहुल्य ग्राम पतारा में विश्व एड्स दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जिसमे की रवि गोयल ने अपने विचार में कहा की एड्स को लेकर कई सारे मिथक और गलत जानकारियां भी व्याप्त हैं, जिसे दूर करने और एचआईवी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल दुनियाभर में विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को जानकारी दी जाती है कि एड्स को लेकर बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। इस बीमारी में औसत आयु भले ही कम हो जाती है लेकिन पीड़ित सामान्य जिंदगी जी सकता है।
विश्व एड्स दिवस मनाने की शुरुआत कब, क्यों और किसने की ?
पहली बार एड्स की पहचान 1981 में हुई। लाॅस एंजेलिस के डॉक्टर ने पांच मरीजों में अलग अलग तरह के निमोनिया को पहचाना। प्रोग्राम में सामाजिक कार्यकर्ता प्रमोद गोयल ने कहा की एड्स से ग्रसित मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अचानक कमजोर पड़ गई थी। हालांकि पांचों मरीज समलैंगिक थे। इसलिए चिकित्सकों को लगा कि यह बीमारी केवल समलैंगिकों को ही होती है। इसलिए इस बीमारी को 'गे रिलेटेड इम्यून डिफिशिएंसी' (ग्रिड) नाम दिया गया। लेकिन बाद में दूसरे लोगों में भी यह वायरस पाया गया, तब जाकर 1982 में अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने इस बीमारी को एड्स नाम दिया।पहली बार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1987 में विश्व एड्स दिवस मनाया। हर साल 1 दिसंबर को एड्स दिवस मनाने का फैसला लिया गया। इस दिन को मनाने का उद्देश्य हर उम्र और वर्ग के लोगों को एड्स के बारे में जागरूक करना है
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