2019
, शिवपुरी। सिंधिया राजपरिवार के गहरे प्रभाव वाली गुना-शिवपुरी सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए 1999 से दूर की कौड़ी बनी हुई है। 1989 से 1999 तक यहां भाजपा के टिकट से राजमाता विजयाराजे सिंधिया काबिज रहीं, उसके बाद माधवराव सिंधिया फिर उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट पर काबिज हैं। मौजूदा स्थिति में उन्हें यहां का प्रबलतम दावेदार माना जा रहा है। उधर सिंधिया राजपरिवार के किसी भी सदस्य के सामने रहने की स्थिति में भाजपा से कोई दमदार प्रत्याशी फिलहाल मैदान में नहीं है।
2001 में सांसद माधवराव सिंधिया की एक दुर्घटना में हुई मौत के बाद से उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट पर आ गए थे। हर बार चुनाव में उनके हाथों पराजय के बाद भाजपा नया प्रयोग करने का प्रयास करती है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली है। स्थिति यह रही कि 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब पूरे देश में मोदी के नाम की लहर चली और प्रदेश में कांग्रेस सिर्फ दो सीट बचा पाई, उस स्थिति में भी यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया जीत गए थे।
महल से जुड़ाव पर हर रंग फीका
इस सीट के 75 प्रतिशत मतदाता शहरी और 25 प्रतिशत ग्रामीण हैं। सभी के मन में महल के प्रति श्रद्धा है। यही कारण है कि भाजपा की हर रणनीति यहां विफल हो जाती है।
इस बार कौन?
इस सीट पर भाजपा की स्थानीय इकाई स्थानीय नेताओं की मांग कर रही है। हकीकत यह है कि स्थानीय स्तर तो दूर की बात बाहरी सीटों पर भी कोई ऐसा प्रत्याशी भाजपा को नहीं मिला है जो यहां कब्जा वापस दिला सके।
केवल एक उम्मीद
ले-देकर भाजपाई इस उम्मीद में हैं कि यदि कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया को इंदौर भेजने की चल रही कवायद सफल हो गई तो भाजपा यहां परचम लहरा सकती है। फिलहाल कोई बड़ा नाम यहां चुनावी समर के लिए सामने नहीं आया है।
भाजपा का लगभग हर प्रयोग हुआ फेल
कांग्रेस से इस सीट को कब्जे में वापस लेने भाजपा ने उप चुनाव -2002 में राव देशराज सिंह को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन करारी शिकस्त खाई। 2004 में हरिवल्लभ शुक्ला, 2009 में नरोत्तम मिश्रा, 2014 में जयभानसिंह पवैया जैसे दिग्गज नेता को भी भाजपा




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