Music

BRACKING

Loading...

सिंधिया परिवार के अपराजित गढ़ में मोदी की विजय

लोस सीट गठन के बाद पहली बार हारा महल, ज्योतिरादित्य सवा लाख वोटों से पराजित

भारत में लोकतंत्र बहाली के बाद से गुना शिवपुरी सीट ऐसी सीट रही है, जहां हमेशा राजनीतिक दलों का नहीं, बल्कि राज परिवार यानि सिंधिया परिवार का बोलबाला रहा। फिर चाहे राजनीतिक दल कोई भी हो, यहां 2014 तक जीतते आए प्रत्याशी या तो सिंधिया परिवार के सदस्य रहे या फिर उनके द्वारा समर्थित उम्मीदवार, लेकिन इस बार सिंधिया परिवार के इस अपराजित गढ़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मिथक को तोड़ दिया। सिंधिया परिवार का गढ़ कहे जाने वाली गुना-शिवपुरी सीट पर विजय हासिल की। परिणाम अचंभित करने वाले रहे। पिछले चार चुनावों से लगातार जीत रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के केपी यादव से बड़े अंतर से शिकस्त झेलनी पड़ी है।
केपी 2018 के विधानसभा चुनाव से पूर्व तक न केवल कांग्रेस के कार्यकर्ता थे, बल्कि सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि भी थे। चुनाव से ऐन पहले भाजपा में शामिल हुए थे। सिंधिया की इस पराजय को लेकर अब तमाम तरह की समीक्षाओं का दौर शुरू हो गया है। अधिकांश लोग इसे भाजपा प्रत्याशी के प्रभाव से ज्यादा मोदी के प्रभाव को मान रहे हैं।
1957 से 2014 तक सिंधिया परिवार का रहा गढ़
देशभर में खासी लोकप्रिय गुना शिवपुरी लोकसभा सीट को यूं नहीं अब तक सिंधिया परिवार का गढ़ नहीं कहा जाता रहा। आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं। इस चुनाव से पहले तक इस सीट पर कांग्रेस को 9 बार जीत मिली है। वहीं बीजेपी को 4 बार और 1 बार जनसंघ को यहां पर जीत हासिल हुई है। गुना लोकसभा सीट के अंतर्गत शिवपुरी, कोलारस, पिछोर, गुना, अशोकनगर, चंदेरी, मुंगावली, बमौरी 8 विधानसभा सीटें आती हैं। 1957 में इस सीट में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। जब कांग्रेस की विजयाराजे सिंधिया ने हिंदू महासभा के वीजी देशपांडे को हराया था। इसके बाद अगले चुनाव में यहां से कांग्रेस ने रामसहाय पांडे को मैदान में उतारा और उन्होंने भी हिंदू महासभा के वीजी देशपांडे को हरा दिया। लेकिन 1967 में ही इस सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में स्वतंत्रता पार्टी के जेबी कृपलानी ने कांग्रेस उम्मीदवार को हरा दिया। वर्ष 1971 में विजयाराजे सिंधिया के बेटे पूर्व मंत्री माधवराव सिंधिया मैदान में उतरे। वे यहां पर जनसंघ की सीट से चुनाव लड़े और उन्होंने जीत हासिल की। इतना ही नहीं 1977 में तो सिंधिया परिवार के सदस्य माधवराव सिंधिया यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे फिर भी उन्होंने यहां से बड़ी जीत दर्ज की। माधवराव सिंधिया 1980 में कांग्रेस में शामिल हो गए और फिर से उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होंने लगातार तीन चुनावों में जीत दर्ज की। 1984 में वे ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ खड़े हुए। उन्होंने सभी को चौंकाते हुए वाजपेयी को हरा दिया, लेकिन माधवराव के ग्वालियर से चुनाव लड़ने पर गुना में कांग्रेस कमजोर होने लगी। इसके चलते 1999 में एक बार फिर माधवराव सिंधिया गुना लोकसभा सीट से मैदान में उतरे और उन्होंने यहां पर कांग्रेस की वापसी करवाई। वर्ष 2001 में माधवराव सिंधिया के निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यहां से उपचुनाव लड़कर जीत दर्ज की। तब से लेकर आज तक गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद थे, लेकिन इस बार वे इस सीट की कथित परंपरा को कामयाब नहीं रख पाए।
7 मंत्री महीने भर डाले रहे डेरा फिर भी नहीं दिला पाए जीत
महज 7 माह पहले प्रदेश विस चुनाव में सिंधिया ने पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा 23 सीटें ग्वालियर चंबल संभाग से जिताकर अपनी इस क्षेत्र में पकड़ को सिद्ध कर दिया था। उनके खेमे से आने वाले अंचल के प्रदेश सरकार में शामिल 7 मंत्री करीब एक महीने तक डेरा डाले रहे और बागडोर संभालकर सिंधिया की चुनावी रणनीति तैयार की, लेकिन यह 7 मंत्री भी सिंधिया को उनके इस गढ़ में जीत नहीं दिला सके। इन मंत्रियों में तुलसी सिलावट, गोबिंद सिंह राजपूत, इमरती देवी, प्रघुम्नसिंह तोमर, प्रभुराम चौधरी, बाला बच्चन, महेन्द्र सिसौदिया सहित अन्य मंत्री भी शामिल रहे।
किला मैंने नहीं, जनता ने ढहाया हैः केपी यादव
अप्रत्याशित जीत दर्ज करने वाले भाजपा प्रत्याशी केपी यादव ने कहा कि यह किला मैंने नहीं, बल्कि जनता ने ढहाया है। मैंने कहा था कि मैं डमी प्रत्याशी नहीं हूं और जीत जनता लाखों में कराएगी। वैसा ही हुआ है। अब मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। यहीं जन्मा हूं, बड़ा हुआ हूं, पूरा समय क्षेत्र को दूंगा। यह चुनाव मेरे और ज्योतिरादित्य के बीच में नहीं था। चुनाव देश हित में था। पीएम नरेन्द्र मोदी के कार्य और सेवा को लेकर था। गरीब से गरीब व्यक्ति का जीवन स्तर सुधारा है और हमने वोट भी उन्हीं के नाम पर मांगा था। इसलिए चुनाव जनता ने लड़ा। क्षेत्र में जितने काम होने थे, वह नहीं हुए। इसलिए जनता में सिंधिया के प्रति आक्रोश था।
-------------------------
सबसे ज्यादा गुना जिले से 58 हजार तो अशोकनगर से 49 हजार से हारे
शिवपुरी जिले से हार का अंतर सिर्फ 16 हजार
शिवपुरी। नईदुनिया प्रतिनिधि
8 विधानसभा सीटों वाली इस सीट पर परिणामों की समीक्षा करें तो सिंधिया की हार की नींव का पत्थर गुना जिला साबित हुआ। इस जिले की आने वाली गुना सीट से सिंधिया को सबसे ज्यादा 47106 वोटों से हार मिली। वहीं इसी जिले की बमौरी सीट से उन्हें 11080 वोटों से पिछड़ना पड़ा। इस तरह अकेले गुना जिले से उनकी 58 हजार 186 वोटों से हार हुई। हार का दूसरा बड़ा श्रेय अशोकनगर जिले को है। यहां अशोकनगर सीट से सिंधिया 21770 तो चंदेरी सीट से 11007 वोटों से वहीं भाजपा प्रत्याशी के ग्रह विधानसभा सीट मुंगावली से 17101 वोट से हार मिली। इस तरह सिंधिया अशोकनगर जिले से कुल 49878 वोटों से हार मिली, जबकि शिवपुरी जिले की बात करें तो कोलारस सीट से महज 2938 वोट से सिंधिया हारे। वहीं शिवपुरी विस क्षेत्र से उन्हें 29708 वोटों से पराजय का सामना करना पड़ा, जबकि पूरे लोस क्षेत्र में शिवपुरी जिले की पिछोर सीट ऐसी रही, जहां सिंधिया ने लगातार बढ़त हासिल की और यहां वे 15780 वोटों से जीते। इस तरह शिवपुरी जिले की तीन विधानसभा सीटों से सिंधिया की हार का अंतर 16866 रहा, जो लोकसभा क्षेत्र के तीनों जिलों में सबसे कम रहा। सिंधिया को समग्र रूप से 1 लाख 24 हजार 930 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।
शिवपुरी
केपी यादव 87691
सिंधिया 57983
हारे-29708
-
कोलारस
केपी यादव 73546
सिंधिया 70608
हारे-2938
-
पिछोर
केपी यादव 69453
सिंधिया 85233
जीते-15780
-
गुना-
केपी यादव 94263
सिंधिया 47157
हारे-47106-
बमोरी-
केपी यादव 75137
सिंधिया 64057
हारे-11080
-
अशोकनगर-
केपी यादव 75271
सिंधिया 53501
हारे-21770-
चंदेरी-
केपी यादव 63956
सिंधिया 52949
हारे-11007
-
मुंगावली-
केपी यादव 70937
सिंधिया 53836
हारे-17101
----------------------------------
2014 में 6 विधानसभाओं में जीत तो 2 में मिली थी हार
- 2019 में 7 विधानसभाओं में हार तो 1 में मिली जीत
शिवपुरी। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को पिछोर, कोलारस, बमौरी, अशोकनगर, चंदेरी व मुंगावली विधानसभा सीट से जीत हासिल हुई थी तो वहीं शिवपुरी व गुना विधानसभा सीट से सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार साल 2019 के लोकसभा चुनावों में सिंधिया को 8 विधानसभाओं में से सिर्फ पिछोर विधानसभा में 15780 वोटों के अंतर से जीत हासिल हुई। वहीं पिछोर को छोड़कर लोकसभा क्षेत्र की सातों विधानसभा क्षेत्रों से उनको पराजय का सामना करना पड़ा। इसमें सबसे अधिक हार का अंतर गुना विधानसभा से 47106 वोटों का रहा।
विधानसभावार
2014 गुना शिवपुरी लोकसभा विधानसभावार परिणाम
स्थानभाजपाकांग्रेस
शिवपुरी6338958893
पिछोर5115873913
कोलारस4402272779
बमौरी5129766010
गुना6438452203
अशोकनगर4458264432
चंदेरी3903560386
मुंगावली3730067684
कुल वोट396244517036
-
विधानसभावार
2019 गुना शिवपुरी लोकसभा विधानसभावार परिणाम
स्थानभाजपाकांग्रेस
शिवपुरी8769157983
पिछोर69453 85233
कोलारस7354670608
बमौरी7513764057
गुना9426347157
अशोकनगर7527153501
चंदेरी6395652949
मुंगावली7093753836
कुल वोट610256485324

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ