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लोग कहते रहे- वोट तो मोदी को दिया लेकिन जीतेंगे सिंधिया... बाजी पलट गई

लोग कहते रहे- वोट तो मोदी को दिया लेकिन जीतेंगे सिंधिया... बाजी पलट गई2014 की मोदी लहर में जितने वोटों से जीते, 2019 उससे ज्यादा से हार गए सिंधिया भास्कर संवाददाता | शिवपुरी/गुना ...


2014 की मोदी लहर में जितने वोटों से जीते, 2019 उससे ज्यादा से हार गए सिंधिया 

भास्कर संवाददाता | शिवपुरी/गुना 

गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से सिंधिया परिवार का कोई सदस्य हार भी सकता है, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। उनके जीतने पर किसी को शक नहीं था। बहस इस बात की थी कि अंतर क्या रहेगा। लेकिन बाजी पलट गई। आमतौर पर सत्ता पक्ष की लहर होती है और विपक्ष का अंडर करंट। पर इस चुनाव में उलटा हुआ। यहां मोदी फैक्टर का अंडर करंट चल रहा था, जिसे कांग्रेस नेता नहीं भांप पाए। लोगों की जुबान पर था कि जीतेंगे तो सिंधिया लेकिन हमने वाेट मोदी को दिया है। और यही अंडर करंट अंत में भारी पड़ गया। बीते 6 दशक में हुए 14 चुनावों में से 12 जीतने वाले सिंधिया परिवार को आखिरकार गुना में हार का सामना करना पड़ा। 

सिंधिया के हारने की दूसरी वजह चुनाव को लेकर उनकी रणनीति रही। उन्होंने स्थानीय टीम से ज्यादा बाहर के विश्वासपात्र नेताओं पर ज्यादा भरोसा किया। यह ऐसे लोग थे, जिनका क्षेत्र से कोई ज्यादा वास्ता नहीं था। दूसरी ओर स्थानीय नेता इसे लेकर भीतर ही भीतर नाराज रहे। उनकाे लगने लगा कि अगर सिंधिया जीते तो इसका श्रेय बाहरी विश्वासपात्र ले जाएंगे। अगर उम्मीद के मुताबिक परिणाम न रहे तो ढीकरा उनके सिर पर फोड़ा जा सकता है। 

बिजली जाने के मुद्दे ने भी पूर्व सीएम के कार्यकाल की याद दिलाई 

तीसरा मसला प्रदेश की हाल में बनी कांग्रेस सरकार को लेकर रहा। ऋण माफी को लेकर भाजपा ने ग्रामीण स्तर पर किसानों का वोट खींचा। कांग्रेस की ओर से उनके प्रचार का बहुत ताकतवर जवाब नहीं आ पाया। या आया भी तो वह मुद्दे की काट नहीं बना। संयोग से इसी दौरान बिजली ने भी खूब आंख मिचौली खेली। इससे भाजपा समर्थकों ने बार-बार पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के बिजली संकट वाले कार्यकाल को याद कराया। 

जिस प्रत्याशी को सबसे कमजोर आंका, उसी ने दी मात 
हालांकि इन सभी वजहों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा मोदी की लहर। यही वजह है कि भाजपा के जिस प्रत्याशी को पिछले चार चुनावों में सबसे कमजोर आंका जा रहा था, वह 1999 से कांग्रेस के इस सबसे मजबूत गढ़ को गिराने में कामयाब हो गए। हैरानी की बात यह थी कि उनके पास प्रचार के लिए मुश्किल से 10 दिन का समय था। इनमें से गुना और शिवपुरी जिले की 5 सीटों के मतदाताओं के लिए तो वे अजनबी ही थे। इन सभी दुश्वारियों के बावजूद वे जीते। 

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