पौराणिक मान्यता के अनुसार
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव के माता-पिता से जुड़े रहस्य को जानने के लिए ऋषियों ने एक बार उनसे सवाल किया और पूछा कि हे महादेव आपको किसने जन्म दिया है?
शिव के माता-पिता से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए भगवान शिव ने ऋषियों की इस जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा कि मुझे इस सृष्टि को निर्माण करनेवाले भगवान ब्रह्मा ने जन्म दिया है.
ऋषियों की जिज्ञासा इतने पर शांत नहीं हुई तो उन्होंने फिर एक सवाल करते हुए भगवान शिव से पूछा कि अगर ब्रह्मा आपके पिता हैं, तो फिर आपके दादाजी कौन हैं ?
भगवान शिव ने जवाब देते हुए कहा कि इस सृष्टि का पालन करनेवाले भगवान विष्णु ही मेरे दादाजी हैं.
भगवान की इस लीला से अंजान ऋषियों ने फिर से सवाल किया कि अगर आपके पिता ब्रह्मा है और दादाजी विष्णु हैं तो फिर आपके परदादा कौन हैं ?
ऋषियों के इस सवाल को सुन भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा कि खुद भगवान शिव ही हैं मेरे परदादा.
श्रीमद् देवी महापुराण के मुताबिक
श्रीमद् देवी महापुराण के मुताबिक कहा जाता है कि एक बार नारद ने अपने पिता ब्रह्मा से सवाल किया कि इस सृष्टि का निर्माण किसने किया है? आपने, विष्णु भगवान ने, या फिर स्वयं भगवान शिव ने ?
आप तीनों को किसने जन्म दिया है अर्थात आपके माता-पिता कौन हैं ?
तब परमपिता ब्रह्मा ने त्रिदेवों के जन्म की गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि प्रकृति स्वरुप दुर्गा और काल-सदाशिव स्वरुप ब्रह्म के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है.
अर्थात प्रकृति स्वरुप दुर्गा ही माता हैं और ब्रह्म यानि काल-सदाशिव पिता हैं.
बहरहाल पुराणों में भगवान शिव और आदिशक्ति की महिमाओं के अलग-अलग उल्लेख मिलते हैं.
लेकिन ईश्वर की लीला तो वही जानें, उनकी लीलाओं को समझना हम इंसानों के बस की बात नहीं है क्योंकि भगवान शिव तो देवों के भी देव हैं वहीं आदि हैं वही अंत भी हैं
पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण तीसरा स्कन्द अध्याय 1.3(गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी जी, पृष्ठ नं. 114 से)
पृष्ठ नं. 114 से 118 तक विवरण है कि कितने ही आचार्य भवानी को सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली बताते हैं। वह प्रकृति कहलाती है तथा ब्रह्म के साथ अभेद सम्बन्ध है जैसे पत्नी को अर्धांगनी भी कहते हैं अर्थात् दुर्गा ब्रह्म (काल) की पत्नी है। एक ब्रह्मण्ड की सृष्टी रचना के विषय में राजा श्री परीक्षित के पूछने पर श्री व्यास जी ने बताया कि मैंने श्री नारद जी से पूछा था कि हे देवर्षे ! इस ब्रह्मण्ड की रचना कैसे हुई? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में श्री नारद जी ने कहा कि मैंने अपने पिता श्री ब्रह्मा जी से पूछा था कि हे पिता श्री इस ब्रह्मण्ड की रचना आपने की या श्री विष्णु जी इसके रचयिता हैं या शिव जी ने रचा है? सच-सच बताने की कृपा करें। तब मेरे पूज्य पिता श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि बेटा नारद, मैंने अपने आपको कमल के फूल पर बैठा पाया था, मुझे नहीं मालूम इस अगाध जल में मैं कहाँ से उत्पन्न हो गया। एक हजार वर्ष तक पृथ्वी का अन्वेषण करता रहा, कहीं जल का ओर-छोर नहीं पाया। फिर आकाशवाणी हुई कि तप करो। एक हजार वर्ष तक तप किया। फिर सृष्टी करने की आकाशवाणी हुई। इतने में मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस आए, उनके भय से मैं कमल का डण्ठल पकड़ कर नीचे उतरा। वहाँ भगवान विष्णु जी शेष शैय्या पर अचेत पड़े थे। उनमें से एक स्त्री (प्रेतवत प्रविष्ट दुर्गा) निकली। वह आकाश में आभूषण पहने दिखाई देने लगी। तब भगवान विष्णु होश में आए। अब मैं तथा विष्णु जी दो थे। इतने में भगवान शंकर भी आ गए। देवी ने हमें विमान में बैठाया तथा ब्रह्म लोक में ले गई। वहाँ एक ब्रह्मा, एक विष्णु तथा एक शिव और देखा फिर एक देवी देखी,उसे देख कर विष्णु जी ने विवेक पूर्वक निम्न वर्णन किया (ब्रह्म काल ने भगवान विष्णु को चेतना प्रदान कर दी, उसको अपने बाल्यकाल की याद आई तब बचपन की कहानी सुनाई)।
पृष्ठ नं. 119-120 पर भगवान विष्णु जी ने श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी से कहा कि यह हम तीनों की माता है, यही जगत् जननी प्रकृति देवी है। मैंने इस देवी को तब देखा था जब मैं छोटा सा बालक था, यह मुझे पालने में झुला रही थी।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं. 123 पर श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर हम सभी तुम्हारी क पा से ही विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है अर्थात् हम तीनों देव नाशवान हैं, केवल तुम ही नित्य (अविनाशी) हो, जगत जननी हो, प्रकृति देवी हो।
भगवान शंकर बोले - देवी यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट (उत्पन्न) हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए। फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्हीं हो।
विचार करें:- उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी नाशवान हैं। म त्युंजय (अजर-अमर) व सर्वेश्वर नहीं हैं तथा दुर्गा (प्रकृति ) के पुत्र हैं तथा ब्रह्म (काल-सदाशिव) इनका पिता है।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं. 125 पर ब्रह्मा जी के पूछने पर कि हे माता! वेदों में जो ब्रह्म कहा है वह आप ही हैं या कोई अन्य प्रभु है ? इसके उत्तर में यहाँ तो दुर्गा कह रही है कि मैं तथा ब्रह्म एक ही हैं। फिर इसी स्कंद के पृष्ठ नं. 129 पर कहा है कि अब मेरा कार्य सिद्ध करने के लिए विमान पर बैठ कर तुम लोग शीघ्र पधारो (जाओ)। कोई कठिन कार्य उपस्थित होने पर जब तुम मुझे याद करोगे, तब मैं सामने आ जाऊँगी। देवताओं मेरा (दुर्गा का) तथा ब्रह्म का ध्यान तुम्हें सदा करते रहना चाहिए। हम दोनों का स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे कार्य सिद्ध होने में तनिक भी संदेह नहीं है।
उपरोक्त व्याख्या से स्वसिद्ध है कि दुर्गा (प्रकृति ) तथा ब्रह्म (काल) ही तीनों देवताओं के माता-पिता हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी नाशवान हैं व पूर्ण शक्ति युक्त नहीं हैं।
तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी) की शादी दुर्गा (प्रकृति देवी) ने की। पृष्ठ नं. 128-129 पर, तीसरे स्कंद में।
गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 12
ये, च, एव, सात्विकाः, भावाः, राजसाः, तामसाः, च, ये,
मतः, एव, इति, तान्, विद्धि, न, तु, अहम्, तेषु, ते, मयि।।
मतः, एव, इति, तान्, विद्धि, न, तु, अहम्, तेषु, ते, मयि।।
अनुवाद: (च) और (एव) भी (ये) जो (सात्विकाः) सत्वगुण विष्णु जी से स्थिति (भावाः) भाव हैं और (ये) जो (राजसाः) रजोगुण ब्रह्मा जी से उत्पत्ति (च) तथा (तामसाः) तमोगुण शिव से संहार हैं (तान्) उन सबको तू (मतः,एव) मेरे द्वारा सुनियोजित नियमानुसार ही होने वाले हैं (इति) ऐसा (विद्धि) जान (तु) परन्तु वास्तवमें (तेषु) उनमें (अहम्) मैं और (ते) वे (मयि) मुझमें (न) नहीं हैं।
शिव महापुराण‘‘
‘‘श्री शिव महापुराण (अनुवादक: श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार। प्रकाशक:
गोबिन्द भवन कार्यालय, गीताप्रैस गोरखपुर) मोटा टाइप, अध्याय 6, रूद्रसंहिता,
प्रथम खण्ड(स ष्टी) से निष्कर्ष‘‘
गोबिन्द भवन कार्यालय, गीताप्रैस गोरखपुर) मोटा टाइप, अध्याय 6, रूद्रसंहिता,
प्रथम खण्ड(स ष्टी) से निष्कर्ष‘‘
अपने पुत्रा श्री नारद जी के श्री शिव तथा श्री शिवा के विषय में पूछने पर श्री ब्रह्मा जी ने कहा (प ष्ठ 100 से 102) जिस परब्रह्म के विषय में ज्ञान और अज्ञान से पूर्ण युक्तियों द्वारा इस प्रकार विकल्प किये जाते हैं, जो निराकार परब्रह्म है वही साकार रूप में सदाशिव रूप धारकर मनुष्य रूप में प्रकट हुआ। सदा शिव ने अपने शरीर से एक स्त्राी को उत्पन्न किया जिसे प्रधान, प्रक ति, अम्बिका, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु, शिव की माता) कहा जाता है। जिसकी आठ भुजाऐं हैं।
‘‘श्री विष्णु की उत्पत्ति‘‘
जो वे सदाशिव हैं उन्हें परम पुरुष, ईश्वर, शिव, शम्भु और महेश्वर कहते हैं। वे अपने सारे अंगों में भस्म रमाये रहते हैं। उन काल रूपी ब्रह्म ने एक शिवलोक नामक (ब्रह्मलोक में तमोगुण प्रधान क्षेत्रा) धाम बनाया। उसे काशी कहते हैं। शिव तथा शिवा ने पति-पत्नी रूप में रहते हुए एक पुत्रा की उत्पत्ति की, जिसका नाम विष्णु रखा। अध्याय 7, रूद्र संहिता, शिव महापुराण (प ष्ठ 103, 104)।
”श्री ब्रह्मा तथा शिव की उत्पत्ति“
अध्याय 7, 8, 9(प ष्ठ 105-110) श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि श्री शिव तथा शिवा (काल रूपी ब्रह्म तथा प्रक ति-दुर्गा-अष्टंगी) ने पति-पत्नी व्यवहार से मेरी भी उत्पति की तथा फि मुझे अचेत करके कमल पर डाल दिया। यही काल महाविष्णु रूप धारकर अपनी नाभि से एक कमल उत्पन्न कर लेता है। ब्रह्मा आगे कहता है कि फिर होश में आया। कमल की मूल को ढूंढना चाहा, परन्तु असफल रहा। फिर तप करने की आकाशवाणी हुई। तप किया। फिर मेरी तथा विष्णु की किसी बात पर लड़ाई हो गई। (विवरण इसी पुस्तक के प ष्ठ 549 पर) तब हमारे बीच में एक तेजोमय लिंग प्रकट हो गया तथा ओ3म्-ओ3म् का नाद प्रकट हुआ तथा उस लिंग पर अ-उ-म तीनों अक्षर भी लिखे थे। फिर रूद्र रूप धारण करके सदाशिव पाँच मुख वाले मानव रूप में प्रकट हुए, उनके साथ शिवा (दुर्गा) भी थी।
फिर शंकर को अचानक प्रकट किया (क्योंकि यह पहले अचेत था, फिर सचेत करके तीनों को इक्कठे कर दिया) तथा कहा कि तुम तीनों स ष्टी-स्थिति तथा संहार का कार्य संभालो।
रजगुण प्रधान ब्रह्मा जी, सतगुण प्रधान विष्णु जी तथा तमगुण प्रधान शिव जी हैं। इस प्रकार तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (काल रूपी ब्रह्म) गुणातीत माने गए हैं (प ष्ठ 110 पर)।
सार विचार:- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि काल रूपी ब्रह्म अर्थात् सदाशिव तथा प्रक ति (दुर्गा) श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव के माता पिता हैं। दुर्गा इसे प्रक ति तथा प्रधान भी कहते हैं, इसकी आठ भुजाऐं हैं। यह सदाशिव अर्थात् ज्योति निरंजन काल के शरीर अर्थात् पेट से निकली है। ब्रह्म अर्थात् काल तथा प्रक ति (दुर्गा) सर्व प्राणियों को भ्रमित रखते हैं। अपने पुत्रों को भी वास्तविकता नहीं बताते। कारण है कि कहीं काल (ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मण्ड के प्राणियों को पता लग जाए कि हमें तप्तशिला पर भून कर काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) खाता है। इसीलिए जन्म-म त्यु तथा अन्य दुःखदाई योनियों में पीडि़त करता है तथा अपने तीनों पुत्रों रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी से उत्पत्ति, स्थिति, पालन तथा संहार करवा कर अपना आहार तैयार करवाता है। क्योंकि काल को एक लाख मानव शरीरधारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है, क पया श्रीमद् भगवत गीता जी में भी देखें ‘काल (ब्रह्म) तथा प्रक ति (दुर्गा) के पति-पत्नी कर्म से रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव की उत्पत्ति।
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