अब तो फिर भी ये तीन ही बचे, पूरा उम्मा गायब है। इनमें से कुछ को भारत की शक्ति का आभास हो चुका है, कुछ को बाजार का, कुछ को यहाँ प्रतिभावान लोगों का और कुछ बाकियों की तरह नहीं दिखना चाहते, इसलिए अलग हो लिये। इसमें भारत के नये नेतृत्व और नई छवि का भी कुछ योगदान है। आज हम इज़राइल का समर्थन करते हैं और वो हमारा।
तुर्की की कहानी कुछ अलग है। ये ऑटोमन साम्राज्य के सपने लिए बैठे हैं। बेचारे यूरोप में हैं तो खाने पीने का उतना संकट नहीं है, छीना झपटी भी करते हैं तो यूरो हाथ लगता है। दूसरी बात ये है कि आधे साइप्रस पर इन लोगों ने कब्जा कर रखा है और भारत के सम्बंध साइप्रस से बहुत ही प्रगाढ़ हैं जो तुर्की को चुभता है। भारत जिस क्षण साइप्रस वाले मामले में तुर्की के लिए थोड़ा नरम हो जाएगा, तुर्की तुरंत गधे की तरह पाकिस्तान को जोर की दुलत्ती मारेगा। यद्यपि ये सब करने की आवश्यकता नहीं है, ये सब किये बिना भी ये अपनी औकात में आएँगे।
मलेशिया को ताजा ताजा मलेरिया हुआ है उस पैसे के कारण, जो उसे हमने ही दिया है उनके पाम तेल के बदले में। मलेशिया में कट्टर सोच बढ़ रही है और जाकिर मियाँ के वहाँ भागने का यही कारण भी रहा है। मलेशिया अबतक एक शांति के साथ कमाता खाता था, अब अचानक से मरने की कगार पर पहुँच चुके महातीर मोहम्मद अपनी सस्ती राजनीति के चक्कर में पूरे देश को कट्टर जिहादियों के हवाले करना चाहते हैं।
समझने वाली बात ये है कि ये तीन ही नहीं, सारे के सारे भी हुआँ हुआँ करें तो भारत का कुछ बना बिगाड़ नहीं सकते। भारत ने इनकी प्रवृत्तियों को समझकर इनसे निपटना सीख लिया है। वैसे भी आज के दिन सारा उम्मा अमेरिका के रहमोकरम पर बना हुआ है। अंकल सैम जब चाहता है, इन्हें काटता है, छाँटता है, जोड़ता है, बाँटता है। भारत का लीग अलग है, किसी के रोकने से अब हाथी नहीं रुकने वाला
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