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अमेरिका ने भारत से कहा है कि अंतरिक्ष को कूड़ेदान न बनायें.
अमेरिका ने भारत से कहा है कि अंतरिक्ष को कूड़ेदान न बनायें.
शुक्रवार, फ़रवरी 21, 2020
अमेरिका ने भारत से कहा है कि अंतरिक्ष को कूड़ेदान न बनायें.
एक तस्वीर देखिए।
यह लाल चिन्हित बिंदु, सभी मनुष्यों द्वारा बनाए गए उपग्रहों आदि का एक ३डी चित्र है। अब ज़ाहिर-सी बात है कि इनमें सबसे अधिक योगदान किसका होगा, बेशक रूस और अमेरिका का।
अमेरिका वह दयालु देश है जो खुद तो तरक्की करता है लेकिन वही तरक्की कोई दूसरा देश करे, तो उसे यह श्लोक याद आ जाता है-
“विश्व: शान्ति, अंतरिक्ष: शान्ति, वनस्पतयः शान्ति, सर्वज्ञाम शान्ति।”
इसने खुद यह परीक्षण एक नहीं, दो बार सबको करके दिखाया है, और कई बार छिपा कर कर चुका है। कब? अमेरिका ने पहली बार वर्ष १९५९ में पहला ए-सॅट परीक्षण किया था, और फिर २००७ में जब चीन ने यह परीक्षण किया, उसकी कड़ी निंदा करने के साथ साथ अमेरिका ने फिर से यह परीक्षण किया था, बस चीन को दिखाने के लिए कि अभी भी विश्व की महाशक्ति अमेरिका ही है।
विश्व में आतंकवाद को जन्म दिया किसने? अमेरिका ने।
फिर इसको एशिया की समस्या कहकर नज़रअंदाज़ किया, तब तक, जब तक भस्मासुर बनकर इसी आतंकवाद ने उसकी ही ऊंची इमारत को ध्वस्त कर दिया। तब जाकर उसे पता चला कि आतंकवाद विश्व की समस्या है।
दुनिया में परमाणु अस्त्र का प्रयोग केवल एक ही देश ने किया है, कौन? अमेरिका।
जापान के दो शहरों को सदियों के लिए ध्वंस करने के बाद आज यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो लेकर बैठा है। जबकि हमेशा शान्ति का नारा देने वाला भारत आज भी स्थायी सदस्य नहीं बन पाया।
पॅरिस प्रोटोकॉल से सबसे पहले कौन सा देश निकला? अमेरिका। और फिर वह प्रगतिशील देशों पर प्रदूषण का दोष लादता है, जबकि सबसे अधिक कार्बन यही छोड़ता है दुनिया में।
तो इसमें कोई हैरानी नहीं कि भारत जैसे राष्ट्र जहां अमेरिका को बस्तियों और गरीबी के अलावा कुछ और नहीं दिखता, वहां के वैज्ञानिकों ने सम्पूर्ण स्वदेशी कौशल से एन्टी-सॅटेलाइट मिसाइल बनाई और बिना किसी हिचकिचाहट खुद इसका सफल परीक्षण भी किया। इस पर अमेरिका को कूड़ादान नहीं दिखेगा तो और क्या दिखेगा?
इस बात पर मंगलयान को लेकर एक पुराना वाकया याद आता है। जब भारतीय संस्थान इसरो ने नासा के पास मंगल यात्रा में शामिल होने के लिए प्रस्ताव रखा था तब अमरीकी अख़बार 'न्यूयॉर्क times' ने इसका भद्दा मज़ाक उड़ाया था।
उन्होंने भारतीय वैज्ञानिक संस्थानों को गाय जैसा बेवकूफ करार दिया।
फिर भारत ने दुनिया का सबसे सस्ता मिशन बनाकर मंगलयान भेजा। फिर एक साथ कई सारे सॅटेलाइट भी भेजे, कम खर्च पर, और पूरी दुनिया इस बात पर भारत की वाहवाही करने लगी। सारे देश अपने-अपने सॅटेलाइट भारतीय संस्थान द्वारा सस्ते में भेजने के लिए आगे आए।
और भारतीय अख़बारों ने उसका बढ़िया बदला लिया।
फिर क्या! न्यूयॉर्क टाइम्स ने माफी मांगी। :)
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Dr द्वारका धाकड़
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