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एमपी की सियासत पर पढ़िए ये व्यंग



हमका माफी दई दे ( सिंहराज, क्यों हुए नाराज )



जंगल में था हड़कंप, हर कोई था घबराया
कारण, शेर घूम रहा था तमतमाया
अगल-बगल खड़े अनुयाई कारण रहे थे खोज
शेर के चरणों में लगा रहे थे लोट
सियार बोला, हुजूर आपको हम नहीं देख सकते बेहाल
आप आदेश तो करें, कुएं में कूद जाएंगे आपके लाल

बस इतना बताएं क्या है बात
आपकी परेशानी में किसका है हाथ
शेर बोला, तुम्हें तो पता है हमारे लिए व्यर्थ मलाई मेवा है
राजनीति का अर्थ हमारे लिए सिर्फ जनसेवा है

लेकिन जैसे तैसे हमारे ही कारण तेंदुए और बाघ ने दूसरे शेर को जंगल से खदेड़ा
अब वह और उनके लोग खाऐ बटर चिकन और तुम्हारे नसीब में सिर्फ कार सेवा

खुद कभी अपनी गुफा से निकल तक नहीं आए
और हमसे कहते हैं जाए सड़क पर उतर जाए
अरे तुम्हें तो पता है,हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा था

हमारा चेहरा देखकर ही तो जनता ने पिछले शेर को पछाड़ा था

तुम ही बताओ लोमड़ी की चालाकी पर अंकुश का किसने किया था वादा
किसने कहा था कि गधों का वजन कर दिया जाएगा आधा
शहद के लिए नहीं तोड़ेगा कोई भी भालू छत्ता
किसी शाकाहारी को नहीं टेकना होगा मांसाहारी के आगे मत्था
किसने कहा था नहीं चलेगी अब किसी बंदर की घुड़की

किसने कहा था दूर करेंगे पूरे जंगल की कड़की
क्या तुम्हें अभी नजर आती है उम्मीद की कोई किरण

रोजाना मारे जा रहे धड़ाधड़ हिरण

और उस पर सितम यह कि पूछते हैं क्यों नाराज हो

आप तो हमारे नेता हो, महाराज हो
इनसे तो पिछला वाला शेर था बेहतर लाख गुना

इसीलिए जंगल ने उसे तीन तीन बार चुना
अब तुम बताओ क्या उससे से हाथ मिलाने में कोई बुराई है

मुझे तो लगता है इसी में हम सब की और जंगल की भलाई है
यहां बनी रहने दो तेंदुए और बाघ की जुगलबंदी

चलो पुरानी शेर के पास बनाए भाई बंदी

(लेखक वीरेन्द्र शर्मा, एक वरिष्ठ पत्रकार है)

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