Music

BRACKING

Loading...

मार्शल आर्ट की पूजा ही मेरी जीवन शैली- वरुण पाण्डेय


*जांजगीर-चाम्पा।* आत्मरक्षा मार्शल आर्ट कराटे कला की मुद्राओं और प्रशिक्षण के द्वारा एक कुशल प्रशिक्षक की अपेक्षाओं को साकार करने में जिले के वरुण पाण्डेय की अभिव्यक्ति में उन्मुक्त भाव उभरकर सामने आती है। पारम्परिक युद्ध शैलियों में अपना दावा और उसे दर्शाने वह विगत 30 वर्षों से जुटा हुआ है और इस बीच लाखों बालक-बालिकाओं सहित महिलाओं को इस कला का निःशुल्क प्रशिक्षण देकर एक अनोखा कदम उठाया है जुडो, कराटे, कुंगफू, बॉक्सिंग, ताइक्वांडो, तलवारबाजी आदि अनगिनत मार्शल आर्ट्स विधाओ में उपलब्धियाँ संचित कर चुके वरुण पाण्डेय ने बताया कि कला और संस्कृति को पृथक कर नही देखा जाना चाहिए क्योंकि कुछ लोग इसे विदेशी कला कहते हैं जो निर्थक है, वास्तव में यह भारत के प्राचीन बौद्ध भिक्षुओ की देन है कला और संस्कृति एक दूसरे के पूरक ही नहीं बल्कि हृदय के स्पंदनाओँ के साथ जुड़ा हुआ है विश्व प्रसिद्ध गुरुओं में शिहान दादी बलसारा, काँचो हंसी गोगेंन यामा गुच्ची, शिहान ईशीकावा जापान सहित नामी गिरामी प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके वरुण आज न केवल छत्तीसगढ़ अपितु पूरे भारत वर्ष में मार्शल आर्ट्स शिविरों, प्रतियोगीताओं, सेमिनार व प्रदर्शनों के माध्यम से देश के कोने कोने में संचालित कर, जापानी, कोरियाई, अन्य विदेशी भाषाओं में मौलिक शब्दों का ज्ञान तथा प्रयोगात्मक बौद्धिक सन्तुलन से बच्चे, युवा, बूढ़े सभी वर्गों को इसके प्रति आकर्षित करके हजारों मार्शल आर्ट्स खिलाड़ियों के आदर्श बन चुके हैं। अपने 47 वे जन्म दिवस पर मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने बताया की वे रोजाना इन कलाओं का एक घण्टा अभ्यास करतें हैं। उनका मानना है कि कला को कभी शौक या समय व्यतीत करने का जरिया नही समझना चाहिए बल्कि इसे पूजा और साधना के रूप में लेना चाहिए और यह एकाग्रचित्त पूरे मन और आत्मा से की जाती है, कला का एक निश्चित अनुपात में व्यवसायिक उचित है परंतु इसकी अंधी दौड़ से नैतिक मूल्यों का ह्रास हो सकता है, यह मेरे लिए कोई खेल नही है यह सिर्फ और सिर्फ मेरी जीवन शैली है। मार्शल आर्ट्स के सरकारी और गैर सरकारी आयोजनों में वरुण का योगदान तथा जिले सहित प्रदेश में क्वालीफाई मास्टर के रूप में इन्होंने जिले को एक नई पहचान दिए हैं

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ